सुरेंद्र किशोर : समान नागरिक संहिता पास करने पर अगले लोक सभा चुनाव पर कैसा प्रभाव होगा…

दैनिक भास्कर ने कल यह समाचार दिया है कि
‘‘यह माना जा रहा है कि सन 2024 के लोक सभा चुनाव से पहले भाजपा का अगला लक्ष्य समान नागरिक संहिता हो सकता है।’’
अखबार के अनुसार,
‘‘करीब 8 महीने मैराथन बैठकों के दौर के बाद लाॅ कमीशन ने यूनिफाॅर्म
सिविल कोड पर विस्तृत दस्तावेज तैयार कर लिया है।
एक -दो बैठकों में अंतिम मुहर के बाद इसे मौनसून सत्र से पहले कानून मंत्रालय को सौंपने की तैयारी है।
इस रिपोर्ट के आधार पर ही केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता का बिल तैयार करेगी।
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस बारे में विधेयक कब लाया जाएगा।

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सूत्रों का कहना है कि 22 वें विधि आयोग ने इस विषय पर मिशन मोड में काम किया।
आयोग ने 2 दर्जन से अधिक बैठकें कीं । प्रस्तावित कोड के तमाम पहलुओं पर विचार के बाद एक व्यापक दस्तावेज तैयार किया गया है।

इनमें से सिविल कोड से जुड़े तमाम धर्मों के विधि विधान और रीति रिवाजों पर गहराई से गौर किया गया।’’
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सन 1967 के आम चुनाव से ठीक पहले संवाददाताओं के पूछने पर डा.राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि ‘‘देश में समान नागरिक संहिता लागू की जानी चाहिए।’’
इस पर डा.लोहिया के समाजवादी मित्रों ने कहा कि अब तो आप चुनाव हार जाइएगा।
क्योंकि जिस क्षेत्र से आप चुनाव लड़ रहे हैं,वहां मुसलमानों की बड़ी आबादी है।
उस पर डा.लोहिया ने कहा
कि मैं सिर्फ चुनाव जीतने के लिए नहीं बल्कि देश बनाने के लिए राजनीति में हूं।
याद रहे कि सन 1967 में कन्नौज लोक सभा क्षेत्र से डा.लोहिया मात्र करीब चार सौ मतों से विजयी हुए थे।यानी, हारते -हारते बचे थे।
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समान नागरिक संहिता के बारे में हमारा संविधान क्या कहता है?
भारतीय संविधान के ‘‘राज्य के नीति के निदेशक तत्व’’ वाले अध्याय के अनुच्छेद-44 में कहा गया है कि
‘‘राज्य भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।’’
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आजादी के बाद से आज तक केंद्र की किसी भी सरकार ने इस दिशा में कोई काम नहीं किया।
यानी संविधान के इस अध्याय को लागू करने की कोशिश तक नहीं की।
कारण सिर्फ एक ही था-कोई सरकार अल्पसंख्यक मतदाताओं को नाराज करना नहीं चाहती थी।
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लगता है कि नरेंद्र मोदी सरकार को अल्पसंख्यकों की नाराजगी की परवाह नहीं है।
संभवतः भाजपा सरकार की यह राय है कि यदि इसे लागू नहीं किया गया तो देश नहीं बचेगा।
पर,यदि 2024 के लोस चुनाव से पहले लागू कर दिया गया तो
क्या होगा ?
मेरी समझ से इस मुद्दे पर मतदातागण साफ-साफ दो हिस्सों में बंट जाएंगे।
तीखा विवाद होगा और न जाने क्या-क्या होगा !
लगता है कि मोदी सरकार वह सब कुछ झेलने को तैयार है।

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