NRI अमित सिंघल : सरकारी बैंको को दिवालिया कर दिया…

मोदी सरकार के 9 वर्षो का आंकलन करे तो बहुत से ऐसे कार्य संपन्न हो चुके है जो एक समय असंभव लगते थे।

उदाहरण के लिए फारूक अब्दुल्लाह एवं उनके समर्थक सार्वजनिक रूप से कहते थे कि अनुच्छेद 370 एवं 35A कोई नहीं हटा सकता।

दूषित विचारधारा से प्रेरित हर सप्ताह राष्ट्रव्यापी आतंकी घटनाओं को नियति मान लिया जाता था।

राम मंदिर का पुनर्निर्माण असंभव लगता था। रक्षा हथियारों की खरीद में घूस लेना स्वीकार्य माना जाता था।

प्रति सप्ताह रेल दुर्घटना होती रहती रहती थी जिसमे सलाना सैकड़ो यात्री अकाल मर जाते थे; साथ ही हज़ारो करोड़ो की सार्वजानिक संपत्ति का नुक्सान होता था।

रेल ट्रैक एवं प्लेटफार्म पर मल-मूत्र का ढेर पड़ा रहता था।

भारत के एक-तिहाई 44 करोड़ नागरिको के पास बैंक अकाउंट नहीं था। 11 करोड़ के पास गैस कनेक्शन नहीं था। 16.25 करोड़ से अधिक घरों में (लगभग 80 करोड़ नागरिक) में नल से जल नहीं आता था I 21-22 करोड़ नागरिको के पास घर नहीं था जिनके लिए 4.5 करोड़ घर अगले वर्ष तक बन जाएंगे।

लाभार्थियों को सब्सिडी (अन्न, आयुष्मान, पेंशन इत्यादि) सीधे पहुंच रही है।

सोनिया सरकार ने सरकारी बैंको को दिवालिया कर दिया था। आज सारे बैंक लाभ की स्थिति में है। NPA (ऐसा लोन जो चुकाया नहीं जा सकता) अब दो प्रतिशत रह गया है ।

लेकिन फिर भी प्रधानमंत्री मोदी एवं उनकी टीम को कई बार चुनावी हार का सामना करना पड़ता है।

कारण यह है कि भाजपा एवं उसके सहयोगी दलों के विरोध में लगभग 52-53% लोग खड़े है । वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव में भाजपा को पूरे देश में कुल 37.76 प्रतिशत वोट मिले जबकि NDA को 45.43% वोट मिले थे । 13 राज्यों में भाजपा का कुल वोट प्रतिशत 50 प्रतिशत पार कर गया था । दो अन्य राज्यों में 49% के ऊपर था । लेकिन भाजपा ने 542 सीटों में से केवल 436 सीटों पे चुनाव लड़ा था, जिसमे भाजपा को कुल 47.34 प्रतिशत वोट मिले।

इन विरोधियों में ऐसे कई लोग है जो सनातन धर्म के सिद्धांतो पर चलते है । लेकिन फिर भी मोदी सरकार से विरोध के कारण राष्ट्र विरोध में भी खड़े हो जाते है ।

याद कीजिए कुछ भारतीयों ने जनरल बिपिन रावत की मृत्यु पर अपशब्द लिखा, हर्षोल्लास किया; भद्दी टिप्पणियां की। यहाँ मेरा जोर भारतीय नागरिको की टिप्पणियों को लेकर है क्योंकि उनसे शिष्टाचार की अपेक्षा थी। कुछ नहीं तो वे चुप रह सकते थे। इनमे से भी उन लोगो के अपशब्दों ने अधिक आघात पहुंचाया जो भारतीय सेना के पूर्व कर्मी थे। अधिकतर सनातन धर्म के अनुनायी थे।

मोदी सरकार के विरोध के कारण ऐसे ही लोग आतंकवाद, राम मंदिर, 370, कृषि सुधार, बैंकिंग रिफार्म, सेना इत्यादि विषयो पर भी द्वेषपूर्ण विचारो को अपना लेते है, जबकि मोदी समर्थक एक दूषित विचारधारा पर आधारित शक्तियों को ब्लेम करते है।

मूलभूत समस्या यह है कि हम अराजक, भ्रष्ट एवं अप्रत्याशित घटनाओं के दौर में एकतरफा एवं सरल कहानियों को सुनना चाहते है। जबकि एक मनुष्य के रूप में हम सभी अस्पष्टता और विरोधाभास के साथ रहते है (उदाहरण के लिए, हम रेल दुर्घटना भी नहीं चाहते; लेकिन यात्री भाड़े में वृद्धि भी नहीं चाहते । या फिर गैस के लिए 4 घंटे लाइन में नहीं लगना चाहते, ना ही घूस देना चाहते है; लेकिन गैस पर सब्सिडी चाहेंगे)। तभी हमारी समझ एवं कार्यवाई में खोट रह जाता है ।

अगर इस मानवीय विरोधाभास से निपटना है, तो मोदी सरकार के विज़न पर विश्वास बनाए रखना होगा । हो सकता है कि अत्यधिक विश्लेषण से, अति आलोचना से हम स्वयं लक्ष्य से ना भटके, लेकिन अन्य लोगो को विपक्षी खेमे में जाने के लिए कदाचित प्रेरित कर सकते है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *