सुरेंद्र किशोर : क्यों न मुख्यमंत्री का पद स्थानांतरणीय बने ?
ताकि, योगी आदित्यनाथ को जरूरत के अनुसार
किसी अन्य राज्य में तैनात किया जा सके।

कानपुर और इलाहाबाद में वकालत कर रहे कैलाशनाथ काटजू
को जवाहरलाल नेहरू ने मुख्य मंत्री बनाने के लिए विमान से मध्य प्रदेश भेज दिया था।
यह 1957 की बात है।
तब वहां स्वागत के लिए हवाई अड्डे पर पहुंचे लोगों में ऐसा कोई व्यक्ति मौजूद नहीं था जो काटजू साहब को पहले से जानता -पहचानता हो।
कैलाशनाथ काटजू ,अदमनीय मार्कंडेय काटजू के दादा थे।
यदि कोई आपात स्थिति आई तो वैसे में आदित्यनाथ को ,जिन्हें पिछले दिनों फ्रांस के दंगापीड़ित लोग याद कर रहे थे,
किसी अन्य राज्य बंगाल या केरल में जरूरत हो तो काटजू जैसे भेजा जा सकता है।
यदि बालकनाथ राजस्थान के मुख्य मंत्री बन गये तो उनका भी स्थानांतरण हो ही सकता है,यदि निकट भविष्य में संविधान में तत्संबंधी संशोधन हो जाए।
हर राज्य में ‘योगी’ या ‘बालक’ तो मिलेंगे नहीं।
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भागवत झा आजाद जब बिहार के मुख्य मंत्री बने तो उन्होंने मध्य प्रदेश से एक आई.पी.एस. अफसर को लाकर बिहार का डी.जी.पी.बनाया था।
वैसे कैलाथनाथ काटजू भी बहुत ही ईमानदार -कत्र्तव्यनिष्ठ नेता थे।
अब वैसे लोग राजनीति में विरल हैं।
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1948 से 1951 तक काटजू साहब पश्चिम बंगाल के गवर्नर थे।
कलकता के एक बहुत बड़े उद्योगपति ने काटजू साहब के वकील पुत्र विश्वनाथ काटजू को अपनी कंपनी का विधि सलाहकार बनाने का न्यौता दिया।
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मार्कंडेय जी के पिता जी ने अत्यंत हर्षित होकर, अपने पिता को पत्र लिखा।
पद स्वीकार करने की उनसे अनुमति मांगी।
पिता ने जवाब दिया-
बेटा,मुझे बड़ी खुशी है कि तुम्हें इतने बड़े पद के योग्य माना जा रहा है।
पर,ज्वाइन करने से पहले मुझे थोड़ा समय दो ताकि मैं अपना इस्तीफा भेज सकूं और वह स्वीकार भी हो जाए।
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विश्वनाथ बाबू ने वह पद ठुकरा दिया।
ऐसे नेता अब कितने हैं ?
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संभवतः जवाहरलाल जी ने इसी तरह के गुण को देखते हुए कैलाश जी को एम.पी. में एयरड्राॅप कराया था।
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आज आदित्यनाथ और बालकनाथ जैसे विरल नेताओं की इस देश के कई बिगड़ते यानी हाथ से निकलते राज्यों को जरूरत है।
