“नमामि हसदेव”-भाग-02.. महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण द्वारा पर्यावरण विभाग की भूमिका व औद्योगिक कचरों के इन बिंदुओ पर भी जांच न्यायसंगत..कोरबा-बसंतपुर दौरा 1 व 2 मई को…
- महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण नई दिल्ली के अध्यक्ष के साथ ओडिशा की टीम आएगी।
- सर्वे में हसदेव के घटते जलभराव के कारणों पर भी होगी न्यायदृष्टि..?
- हसदेव में बहाई जा रही राखड़ महानदी में समाहित होकर जलभराव क्षमता को घटा रही!
- हसदेव का जलस्तर जब औद्योगिक कचरों के कारण भविष्य में घटता जाएगा तब उड़ीसा को पानी की आपूर्ति किस प्रकार से होगी?
- केंद्रीय जल आयोग ने यह आंकड़े दिए थे। आयोग की रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि औद्योगिक प्रदूषण की वजह से ही हसदेव के जल भराव क्षमता में कमी आई है।
महानदी जल विवाद को लेकर बनी महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण नई दिल्ली और ओडिशा से अफसरों की टीम हसदेव नदी पर बने बांगो बांध, दर्री बराज व एनीकट को देखने आएगी। जानकारी के अनुसार 1 और 2 मई को उनके कोरबा जिले में आने का कार्यक्रम तय हुआ है। न्यायाधिकरण के अध्यक्ष जस्टिस एएम खानविलकर हैं। टीम में 38 सदस्य हैं, जिसमें जस्टिस,अफसर और विशेषज्ञ शामिल है।

ये है विवाद

ऐसे में केंद्रीय टीम जो भी निर्णय लेगी, उसमें इस बिंदु पर भी न्यायसंगत विचार किया जा सकता है कि अभी की स्थिति में जलभराव की क्षमता क्या है, पहले क्या स्थिति थी और आगे भविष्य में क्या स्थिति निर्मित हो सकती है? जलभराव की भविष्य की स्थिति के आधार पर कितना पानी उड़ीसा को दिया जा सकता है?
बांध निर्माण के समय 1992 में हसदेव की जलभराव क्षमता 3,046 मिलियन घन मीटर(एमसीएम) आंकी गयी थी। नदी में लगातार सिल्ट जमा होने की वजह से अब यह क्षमता घटकर 2,894 एमसीएम रह गई है। कुछ समय पूर्व किए गए केंद्रीय जल आयोग ने यह आंकड़े दिए थे। आयोग की रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि औद्योगिक प्रदूषण की वजह से ही हसदेव के जल भराव क्षमता में कमी आई है।
नदी में राखड़ है घटते जलस्तर का मुख्य कारक
कोरबा पर्यावरण विभाग की कार्यशैली की रिपोर्ट भी जांच में शामिल करना न्यायसंगत
- विगत वर्षों में जीवनदायिनी हसदेव में राख या अन्य विषैले तत्वों के निस्तारण पर अब तक क्या-क्या कार्यवाही पर्यावरण संरक्षण विभाग कोरबा के द्वारा की गई है?
- किन संस्थानों को अब तक कितने बार नोटिस जारी किए गए हैं?
- इन बिंदुओ पर भी जांच होनी चाहिये कि इस विभाग से जुड़े कौन लोग या उनके रिश्तेदार नदी को दूषित करने वाले संस्थानों से किस प्रकार से जुड़कर किस तरह से लाभान्वित हो रहे हैं?
हसदेव के उद्धार के लिए दिल्ली से
“भागीरथ” टीम का आगमन
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“नमामि हसदेव”-भाग-01.. ऊर्जा नगरी के मुर्दों में भागीरथी तलाश रही जीवनधारा.. डेंगू नाला में विषैला, केमिकलयुक्त पानी.. कांप रहें हैं हाथ…
कोरबा। वेदों, शास्त्रों में समस्त प्राणियों की पालनकर्ता नदी, नाले, तालाबों को मां की गौरवमयी उपाधि दी गई है। इसी सम्मान की परंपरा का निर्वाह करते पुराने बुजुर्ग आज भी स्नान करने के लिए सीधे पैर को पानी में नहीं रखते बल्कि हाथों में लेकर पहले सिर-माथे पर लगाकर क्षमा याचना करते हैं कि “हे मां तुझ पर पैर रख रहा हूं क्षमा करना, अपने आशीष से सदा हमारे जीवन को शीतलता प्रदान करना।”
नाले के अंतिम छोर पर दूसरी ओर दिख रही है कोरबा की जीवनदायिनी हसदेव और उसके आगे एनटीपीसी प्लांट।
अब यह गौरवशाली परंपरा इतिहास बन गई है। अब तो सीधे कंपनी प्रबंधन के लोग पानी में विषैला केमिकलयुक्त जल प्रवाहित कर अपनी समृद्धि की कामना करते हैं।
देशभर की नदियों को सम्मान वेदों, शास्त्रों के साथ राष्ट्रगान में भी दिया गया है। सारी नदियां आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही हैं, सभी को एक भागीरथी की तलाश है… ऐसे ही ऊर्जा नगरी कोरबा के मुर्दों के बीच जीवनदायिनी हसदेव को अपने उद्धार के लिए एक भागीरथी की आस है।
ऐसे में ऊर्जा नगरी बन जाएगी “बीमरहा” नगरी
विगत दो-तीन दिनों से डेंगु नाला का लगभग काला बहता दिखाई देता हुआ प्रवाहित हो रहा है। यह दूषित केमिकलयुक्त विषैला पानी आगे जिले की जीवनदायिनी-जीवनधारा हसदेव में मिलकर समूचे नदी को विषाक्त कर रहा है।
यही स्थिति आगे बनी रही तो ऊर्जा नगरी की वृहद जनसंख्या के स्वास्थ्य पर सीधे हमला कर “बी मरहा” नगरी बनने से कोई नहीं रोक सकता।
डेंगु नाले का यह काला गंदा पानी सीधे जाकर हसदेव नदी में मिल रहा है और हसदेव नदी के इसी पानी को कोहड़िया वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में भेजकर कथित रूप से फिल्टर किया जाता है और फिर इसी पानी को निगम क्षेत्र के वार्डों में सप्लाई किया जा रहा है। लाखों की संख्या में नगरवासी इस प्रदूषित पानी को पीकर दिन की शुरुआत कर रहें हैं। घरों में, होटलों में हर जगह इसी पानी का उपयोग किया जा रहा है।
कानूनी कार्यवाही क्यों नहीं..?
विषैला, केमिकलयुक्त पानी कहां से आ रहा है? इसकी चिंता पर्यावरण विभाग को नहीं है। आमजनमानस इस पानी को पीकर किस प्रकार की गंभीर बीमारियों से एक बार में ही एक साथ भारी संख्या में किस प्रकार से प्रभावित होगा ? इसकी चिंता पर्यावरण संरक्षण के कारिंदों को नहीं है। जल प्रदूषण (नियंत्रण एवं निवारण) अधिनियम 1974 की धारा 33 (क) के प्रावधानों की उपयोगिता आखिरकार क्या है ?
नाले के किनारे के लोग के पानी का उपयोग निस्तारी के लिए करते हैं। सबसे खराब स्थिति उन लोगों की ही है। अभी तक कागजी स्तर पर ही हसदेव को प्रदूषण मुक्त बनाने चर्चा हुई है। इसके लिए जिला प्रशासन को अब ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
जलजीवों के अस्तित्व पर गहरा रहा संकट
राख निस्तारण के विषय में बालको प्लांट फिसड्डी साबित हो रहा है। बालको प्रबंधन राख की उपयोगिता सुनिश्चित करना तो दूर की कौड़ी है, उसके द्वारा राखड़ डैम का संधारण भी उचित ढंग से नहीं किया जा रहा, जिसके चलते हसदेव नदी कि साथ-साथ जलजीवों के अस्तित्व पर भी संकट गहराता जा रहा है।
पर्यावरण विभाग के हाथ क्यों कांपते हैं..?
प्राकृतिक संपदा को लगातार अकारण नुकसान कई बार पहुंचाया गया है और अक्सर इस विषय पर शिकायतें भी दर्ज कराई जाती रही है लेकिन न जाने क्यों पर्यावरण विभाग कड़ी कार्रवाई करने में पर्यावरण विभाग के हाथ कांपते हैं !! क्यों पर्यावरण विभाग को गुस्सा नहीं आता !!
विस्तार के बाद स्थिति क्या और भयावह होगी..!!
वेदांता समूह की भारत एल्युमिनियम कंपनी भविष्य में अपनी उत्पादन क्षमता दोगुना करने की दिशा में काम कर कर रही है। बालको के विनिवेश के बाद यह तीसरा बड़ा विस्तार प्लांट का होने जा रहा है। 7500 करोड़ की लागत से यहां 5.10 लाख टन सालाना क्षमता का स्मेल्टर बनेगा। अभी तो मात्र बालको सालाना 5.75 लाख टन एल्युमिनियम बनाता है, जो इस स्मेल्टर के बनने के बाद बढ़कर 10.85 लाख टन हो जाएगा…तब आने वाले समय में स्थिति क्या होगी, इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है!!
“नमामि हसदेव” आंदोलन से बचेगा अस्तित्व
नदी जब मरणासन्न हो जाती है तब उसको पुनर्जीवित करने के लिए लोग चिंतित होते हैं, लेकिन ऐसे लोग उंगलियों में गिने जा सकते हैं। जब तक उंगलियों पर गिनी जाने वाली यह संख्या, यह चेतना व्यापक जनआंदोलन में नहीं बदलेगी तब तक हसदेव के संरक्षण की बात करना और हसदेव को बचाना संभव नहीं है। जिले के वरिष्ठ नागरिकों का एक संगठन बनाकर कानूनी लड़ाई लड़कर ही हसदेव के अस्तित्व पर ग्रहण लगने से बचाया जा सकता है। जिले के वरिष्ठ जागरूक लोग ही इस संबंध में सकारात्मक योगदान दे सकते हैं।
राख में आर्सेनिक, पारा यानी मरकरी, सीसा यानी लेड, वैनेडियम, थैलियम, मॉलीबेडनम, कोबाल्ट, मैंगनीज़, बेरीलियम, बेरियम सहित अन्य कई प्रकार के प्राणघातक तत्वों के संपर्क में लगातार आने पर कैंसर होने की संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता। बाकी छोटी- बड़ी बीमारियों की तो बात करना ही बेमानी है। शीघ्र ही अगर इस दिशा में सकारात्मक कड़े ठोस कदम पर्यावरण विभाग द्वारा नहीं उठाए गए तो निगम क्षेत्र की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त दिखेगा। वैसे भी प्रदूषण के कारणों को “कोरोना” से भी घातक माना गया है। प्रदूषण के कारण भारत में एक दिन में 6500 लोगों की मौत का आंकड़ा सामने आया है।
