सुरेंद्र किशोर : समाचार वाचन बुलेट ट्रेन दौड़ाने जैसी विधा नहीं
‘आकाशवाणी’ से कभी हम ‘धीमी गति के समाचार’ सुना करते थे।
(हालांकि आकाशवाणी से सामान्य गति के समाचार भी अलग से प्रसारित हुआ करते थे।)
अब हम निजी टी.वी.चैनलों पर द्रुत गति और कभी -कभी दु्रतत्तम गति के समाचार सुन रहे हैं।
जो चैनल एक साथ सौ समाचार देते हंै,उनकी ‘बुलेट गति’ के कारण उनमें से अनेक समाचार, दर्शकों-श्रोताओं के पल्ले ही नहीं पड़ते।
आज भी दूरदर्शन,जो इस देश की संस्कृति आदि का वास्तविक प्रतिनिधि है, सामान्य गति से समाचार प्रसारित करता है।
कुछ निजी चैनल तो कम से कम समय में, अधिक से अधिक समाचार लोगों तक पहुंचाने के लोभ में अनजाने में खुद के साथ और अंततः श्रोताओं के साथ अन्याय ही करते रहते हैं।
आप सौ की जगह 75 समाचार ही दीजिए,किंतु इस बात का ध्यान तो रखिए कि आपकी सारी बातें लोगों को ठीक ढंग से समझ में आ जाए।
निजी चैनलों के सामने जो लोग बैठते हैं,सामान्यतः उनके पास समय की कमी नहीं होती।
जिनके पास समय की कमी रहती है,वे तो अपने डेस्कटाॅप पर काम करते होते हैं।या कोई और काम।
वे लोग बीच-बीच में आॅनलाइन समाचार देख लेते हैं।हां,जब देश-दुनिया में बड़ी घटनाएं घटती हैं,तब वे जरूर अपने टी.वी.सेटों का रुख करते हैं।
मेरी बात नहीं माननी हो तो कोई बात नहीं।पर,निजी टी.वी.चैनल वाले खुद तो इस संबंध में एक सर्वे करा लें।
लोगों से पूछे कि उन्हें ‘‘हबड़ -हबड़’’ खबर मिले,यह पसंद है या समाचारों की गति सामान्य हो ?
निजी चैनलों के डिबेट्स में अशालीन व्यवहार से तो लोग ऊब ही रहे हैं।
खैर,वह तो चटनी,अचार है।
उसे देखना उतना जरूरी भी नहीं हैं ।
पर,‘मुख्य भोजन’ यानी मुख्य समाचार तो अनेक लोगों के लिए जरूरी हैं।
हां, टी.वी.डिबेट्स में राजनीतिक दलों के जो प्रतिनिधि शामिल होते हैं,यदि उनके नाम न भी बताए जाएं तो मैं आसानी से बता सकता हूं कि वे किस दल की ओर से भेजे गए हैं।
क्योंकि वे अपने साथ संबंधित दलों के मूल चाल,चरित्र, चिंतन के साथ -साथ बाॅडी लंग्वेज भी लेते आते हैं।आवाज में मिठास और कर्कशता भी।