गोरख वैचारिक रूप से कबीर के खेमे के…

गोरखनाथ कबीर से पहले हुए। कबीर ने गोरख की प्रशंसा में झड़ी लगा दी है।

कबीर ने लिखा है कि गोरख की साखी अमर है। मैं तो मन को ही गोरख बना देना चाहता हूँ।

कबीर ने लिखा है …. ” साखी गोरखनाथ ज्यूँ, अमर भए कलि माँहि”।

एक अन्य प्रसंग में कबीर ने गोरख के बारे में लिखा है …..” मन गोरख मन गोविंदौ, मन ही औघड़ होई “।

गोरख से तुलसी बहुत नाराज थे। वे मानते थे कि कलियुग लाने में गोरख की भी भूमिका है। ध्यान रखिए, तुलसी ने अपने पूरे साहित्य में हिंदी के सिर्फ एक कवि का नाम लिया है और वे कवि गोरख हैं। मगर तुलसी ने गोरख का नाम उनकी निंदा करने के लिए लिया है।

तुलसीदास ने सिर्फ कवितावली के कलि- वर्णन में गोरख का नाम लिया है – गोरख जगायो जोग, भगति भगायो लोग अर्थात गोरख ने योग जगाकर भक्ति को लोगों के बीच से भगा दिया है।

तुलसीदास का मानना है कि गोरखनाथ भक्ति विरोधी थे। गोरख की यह विचारधारा उन्हें पसंद नहीं थी। इसीलिए गोरख को उन्होंने कलि- वर्णन में स्थान दिया। हिंदी के किसी भी कवि का नाम नहीं लेने वाले तुलसीदास को गोरख का नाम लाचारी में लेना पड़ा। इससे गोरख की गरिमा को पहचानी जा सकती है।

शायद अब समझ गए होंगे कि गोरख वैचारिक रूप से कबीर के खेमे के कवि थे और यही कारण है कि हिंदी में गोरख को बदनाम करने के लिए गोरखधंधा जैसे शब्द का प्रचलन हुआ, जैसे कबीर के लिए कबीरा।

यह गोरखधंधा शब्द आगे चलकर यह साबित करेगा कि गोरखनाथ तिकड़मबाज कवि थे जो तिकड़म से अवैध कमाई किया करते थे। गोरखधंधा में यही भाव है।

कबीर ने जोगी गोरखनाथ की तारीफ के पुल बाँधे हैं, मगर फागुन में दोनों बदनाम हुए, ऐसे मानो दोनों गाली- गलौज के कवि हैं – एक कबीरा सा रा रा ऽ और दूसरा जोगीरा सा रा रा ऽ

-साभार

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