कलेक्टर संजीव झा पूर्ण करेंगे दो दशकों से रुका ये काम..
कोरबा। जिले के 16वें नवपदस्थ जिलाधीश संजीव झा ने पदभार ग्रहण करने के साथ ही आदिवासी जिले के सर्वांगीण विकास के लिए अपनी प्राथमिकताएं शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वरोजगार को तय करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि इन बिंदुओं पर किसी भी तरह की लापरवाही स्वीकार्य नहीं होगी।
देश के दो सुप्रसिद्ध शिक्षण संस्थानों संस्थाओं BHU और JNU में शिक्षा प्राप्त कर ग्रामीण परिवेश से प्रशासनिक सेवा में आएं जिलाधीश कलेक्टर संजीव झा की प्रथम प्राथमिकता only YOU (जनसेवा) हैं और जिलेवासियों की अपेक्षाएं भी उनके कार्यकाल के शुरुआती तरीके को देखकर बढ़ी है। अपने दीर्घ कार्यकाल के अनुभव से वे भी बेहतर तरीके से समझते हैं कि रोजगार और अपराध का संबंध चोली-दामन का है। अपराध के घटित होने का मुख्य कारण बेरोजगारी है और यही कारण है कि महिला समूहों को स्वरोजगार से जोडकर सशक्त बनाने की दिशा में कार्य करने के लिए कहा, जिससे आर्थिक दशा कमजोर होने की स्थिति परिवार में न आए।
स्वरोजगार, रोजगारमूलक कार्यों को जिले में बढ़ावा देना उनकी उनकी प्राथमिकता की सूची में है। स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए जिले में एल्युमिनियम पार्क की स्थापना के लिए किया गया नवपदस्थ ज़िलाधीश संजीव झा का प्रयास जिले के विकास को एक नई ऊंचाई पर ले जा सकता है, जहां रोजगार के नए अवसर होंगे।
उल्लेखनीय है कि एल्यूमिनियम पार्क की स्थापना से जुड़ी फ़ाइलें लगभग 2 दशक से अटकी हुई है। वर्ष 2001 में इस योजना को लेकर सुगबुगाहट शुरू हुई थी। तब उस मध्य बालको व राज्य सरकार के बीच एक समझौता भी हुआ था कि एल्युमिनियम पार्क में स्थापित लघु उद्योगो को बालको कच्चा माल कम लागत मूल्य पर उपलब्ध कराएगी और उद्यमियों को राज्य सरकार भी सब्सिडी देगी।
इसके बाद तत्कालीन जिलाधीश रीना बाबा कंगाले के निर्देश पर रुकबहरी की जमीन का चयन किया गया था। यहां पर भी जब बात नहीं तब देबू द्वारा अर्जित की गई ग्राम रिसदी की भूमि को भी चिन्हित किया गया था लेकिन बाद में यह भी विवादित हो गया था। जिलाधीश गौरव द्विवेदी ने अपने कार्यकाल के दौरान ग्राम नुनेरा में एल्यूमिनियम पार्क के लिए जमीन चिन्हांकित किया गया, परंतु बड़े झाड़ के जंगल का मामला सामने आ गया, जिससे मामला यहां भी अटक गया।
अपने कार्यकाल के दौरान ज़िलाधीश अब्दुल कैसर हक ने भी एल्युमिनियम पार्क की स्थापना के लिए काफी प्रयास किया और ग्राम दोन्द्रो की 152 हेक्टेयर भूमि को उन्होंने चिन्हित किया था, परन्तु NOC के लिए मामला वनविभाग नागपुर में जाकर अटक गया है।
यहां पर उल्लेखनीय है कि बीते 2 दशक में कई निजी उद्योगों को सैकड़ों एकड़ भूमि का आबंटन शासन द्वारा किया गया है, परंतु एल्युमिनियम पार्क के लिए दिया तले अंधेरा की स्थिति है।
नवपदस्थ जिलाधीश बेहतर समझतें हैं कि अपराध का मूल कारण रोजगार का नहीं होना है। इसलिए जिले के विकास को रोजगारमूलक उद्यमों के माध्यम से गति मिले और लोगों को वृहद में रोजगार मिले, ये उनका प्रयास रहेगा। जिले की जनता को भी उनसे आशा है कि एल्युमिनियम पार्क की स्थापना के प्रयास को मूर्त रूप देनें में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
जानकारी के अनुसार वर्तमान में भारत एल्यूमिनियम कंपनी कोरबा के संयंत्र से एल्युमिनियम की वार्षिक उत्पादन क्षमता वर्तमान में लगभग 5.70 लाख टन है। एल्युमिनियम से घर-खिड़की के ग्रिल, बर्तन, विद्युत तार, मूर्ति, गहने सहित अन्य घरेलू उपयोग के विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाये जाते हैं। जिससे एल्युमिनियम पार्क की स्थापना व्यवसाय के अवसर तो बढ़ेंगे ही और इसके साथ ही सैकड़ों परिवारों को रोजगार भी उपलब्ध होगा।
2 दशक से अब तक कोरबा में पदस्थ हुए लगभग सभी ज़िलाधीश एल्युमीनियम पार्क के लिए प्रयासरत रहे लेकिन सारी बातें मात्र घोषणाओं और स्थल चयन तक ही सिमटकर रह गया। ऐसे में लोगों के मध्य यह धारणा बनने लगी थी कि क्या यह सत्तापक्ष द्वारा जिले की जनता को दिवास्वप्न दिखाने जैसा है ? क्या एल्युमीनियम पार्क कभी बन पाएगा ?
जमीनी स्तर से संघर्ष कर प्रशासनिक सेवा में आए जिलाधीश द्वारा रोजगारोन्मुखी कार्यों को गति देने से एल्युमीनियम पार्क को लेकर जिलेवासियों की अपेक्षाएं बढ़ी है। जिलेवासियों को आशा है कि नवपदस्थ जिलाधीश जिलेवासियों के एल्युमीनियम पार्क निर्माण के सपने को टूटने नहीं देंगे और 2 दशक से कोने में पड़े एल्युमीनियम पार्क निर्माण को आकार,मूर्तरूप प्रदान कर कोरबा जिले में रोजगार, विकास को एक नई दिशा मिलेगी।
