वेदांता ग्रुप के अनिल अग्रवाल की 29,000 करोड़ के टैक्स छूट की मांग को सख्ती से ठुकराया था PMO ने..उसी वेदांता के हाथ उठे 201 करोड़ के बाद अब 150 करोड़ की मदद के साथ..
अनिल अग्रवाल ने बीते वर्ष कोविड संकट के मद्देनजर 201 करोड़ रुपये का योगदान दिया था और आज फिर 150 करोड़ रुपए की आपात स्वास्थ्य सहायता की घोषणा है।
मोदी सरकार पर अक्सर कारोबारियों के साथ सहयोग को लेकर सवाल विपक्ष खड़े करता है और अब उन्हें विराम दे देना चाहिए। कारोबारी अपनी जगह पर हैं सरकार के नीतिगत दिशानिर्देश अपनी जगह पर है। कारोबारियों के साथ मोदी सरकार के संबंधों को लेकर विपक्ष ने लगातार पब्लिक में भ्रम फैला रखा है। विपक्ष विदेशी कंपनी का विरोध नही करता उन्हें चीड़ है तो देशी कंपनियों से। देशी कंपनियां ही इस संकट में देश के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहीं हैं।
एक अरसे पूर्व मोदी सरकार ने देश के उद्योगपतियों को मिल रहे टैक्स छूट पर अपना रैवया साफ कर दिया था और पीएमओ ने साफ शब्दो में कहा था कि सरकार बड़े उद्योगों को टैक्स में किसी तरह की छूट नहीं देगी। 2015 में ये घटना सामने आई थी जिसमे वेदांता ग्रुप के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल ने पीएमओ से ब्याज सहित बढ़ चुके 29,000 करोड़ के टैक्स की छूट देने के लिए केंद्र सरकार से मांग की थी लेकिन उनकी लाख कोशिशों के बावजूद पीएमओ ने एक नहीं सुनी।
खबरों के अनुसार उनको सरकार ने साफ कहा किया कि पहले उन्हें केयर्न इंडिया के 10 हज़ार करोड़ रुपए से ज्यादा के टैक्स का ब्याज सहित भुगतान करना होगा तभी उन्हें केयर्न इंडिया को वेदांत ग्रुप में विलय करने की इजाजत मिलेगी। खबरों के मुताबिक तब वेदांता ग्रुप काफी लम्बे समय से केयर्न इंडिया को वेदांत ग्रुप में मर्ज करना चाहती थी।
अनिल अग्रवाल ने इस कंपनी को 2011 में ख़रीदा था, वित्त मंत्रालय ने वेदांता ग्रुप के मालिक अनिल अग्रवाल को निर्देश दिए थे कि पहले वो केयर्न इंडिया का बकाया टैक्स भरे जो तभी सरकार इस मामले में उनकी पहल को अनुमति देगी, जब तक वो पुरे टैक्स का भुगतान नहीं कर देते तब तक वित्त मंत्रालय इस मर्जर को सेबी को अधिकृत नहीं करेगी।
कहने का आशय यह है कि निजीकरण हो या कोई कड़ा फैसला..मोदी सरकार सिर्फ कुछ करने के लिए नही करती है, जो करती है सार्थक करती है। विपक्ष की स्थिति क्या है..कुत्ता जब एक बार भौंकता है तो मालिक खुश होता है। वो कुत्ता जब 4-5 बार भौंकता है तो अड़ोस-पड़ोस के लोग भी खुश होते हैं कि चलो बेहद सतर्क कुत्ता है लेकिन वही कुत्ता 24 घंटे जब बार-बार सिर्फ भौंकने के लिए ही भौंकता है तो मालिक लात मारकर निकाल देता है।
इस सकारात्मक पहलू पर विपक्षी पार्टियां पब्लिक को यह नहीं बताती कि सरकारी परिसंपत्तियों के निजी हाथों में जाने से उनके बेहतर इस्तेमाल और उनकी बेहतर सेवा से व्यवस्थागत लाभ होगा, जो कि निजीकरण का असली मकसद है। निजीकरण का मतलब सरकार द्वारा किसी सरकारी कंपनी में अपनी एक बड़ी हिस्सेदारी किसी प्राइवेट कंपनी को बेच देना है, वहीं विनिवेश का आशय सरकारी कंपनी में कुछ हिस्सा बेचना है।
मोदी सरकार का साफ तौर पर कहते आई है कि है कि उनका उद्देश्य सरकारी कंपनियों की संख्या कम करना और निजी क्षेत्र के लिए नए अवसर तैयार करना है। सरकार का काम बिजनेस करना नहीं है। मोदी सरकार ने निजीकरण की वजह भी स्पष्ट करते हुए पूर्व में कहा है कि सरकार का कहना है कि सरकारी बैंक या कंपनियां कई बार खजाने पर काफी बोझ डालते हैं क्योंकि सरकार को उन्हें समय समय पर संकट से उबारने के लिए पूंजी देनी पड़ती है।