वैदिक मान्यताएं : ईश्वर की सत्ता के प्रमाण (9)

( गतांक के आगे )

ix) अन्तरात्मा की आवाज़ ।

ईश्वर की सत्ता का मुख्य प्रमाण अन्तरात्मा में उठने वाली आवाज़ (Voice of Conscience) है। जिस समय मनुष्य कोई बुरा कर्म करने लगता है, उसके भीतर भय और लज्जा का भाव उमड़ता है। जब कोई शुभ कार्य करने लगता है, उसमें उत्साह और आनन्द का भाव उमड़ता है। इसके अतिरिक्त मनुष्य शुभ कार्य सब के सामने करना चाहता है और बुरे कार्य छुप कर करता है : “कोई मुझे देख तो नहीं रहा” ? बिना विचारे कि कोई अदृश्य शक्ति उसे देख रही है।

स्वामी दयानन्द सरस्वती ने कहा है कि जो चेतन शक्ति इन भावों का अनुभव करती है, वह व्यक्तिगत आत्मा है और जो चेतन शक्ति ऐसे भाव उमाड़ती है, वह परमात्मा है।

यजुर्वेद का मन्त्रंश (19.77) है
अश्रद्धामनृतेsदधाच्छ्रद्धाँ्सत्ये प्रजापतिः’

अर्थात् ईश्वर जीव में सत्य में श्रद्धा और अनृत (असत्य) में अश्रद्धा जगाता है।

किसी सूफ़ी सन्त ने भी कुछ ऐसा ही भाव व्यक्त किया है :

ईश्वर ने सब के हृदय में एक यन्त्र लगा रखा है;
जो निश्चित रूप से असत्य को सत्य से अलग कर देता है।

अन्तरात्मा के विषय में अनेकों विश्व-विख्यात दार्शनिकों के सारगर्भित शब्द अवलोकनीय हैं :

i) जब मैं अच्छा करता हूं, मुझे अच्छा महसूस होता है।
जब मैं बुरा करता हूं, मुझे बुरा महसूस होता है।
— इब्राहिम लिंकन

ii) ईश्वर सदा हम से बातें करता है। लगता है कि मानव जाति बहरी है।
— डान विलियम कनिष्ठ

iii) अपने मन को सजग करो कि वह अन्तरात्मा की ओर ध्यान दे। अन्तरात्मा आत्मा का प्रकाश है जो मनोवैज्ञानिक हृदयगुहा में उद्दीप्त है। जब भी कोई अनैतिक कार्य किया या सोचा जाता है, यह उसका विरोध करती है।
— डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

iv) अन्तरात्मा आपकी सास है जिसका आगमन (सुधारक सुझाव) कभी समाप्त नहीं होता।
— एच. एल. मेनचैन

कितनी अद्भुत बात है कि सभी उपरोक्त सुविख्यात विचारक एकस्वर में अन्तरात्मा की आवाज़ को ईश्वर की आवाज़ कह रहे हैं और उस आवाज़ का अनुकरण करने का उपदेश दे रहे हैं।

यहां यजुर्वेद (17.31) का मंत्रांश अवलोकनीय है :

अन्यद् युष्माकं अंतरं बभव।
अर्थात् दूसरा (परमात्मा) तुम्हारे अन्दर स्थित है।

पारसी धर्म में भी इसी प्रकार का कथन है :
व्यक्ति की फरवशी (अन्तरात्मा) मानव में अहुरा मज़दा (ईंश्वर) का प्रतिनिधित्व करती है।
— फिलो
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शुभ कामनाएं
विद्यासागर वर्मा
पूर्व राजदूत
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