वैदिक मान्यताएं
द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परि षस्वजाते।
तयोरन्य: पिप्पलं स्वाद्वत्तयनश्ननन्यो अभिचाकशीति ।।
— ऋग्वेद 1.164.20
दो पक्षी, सुन्दर पंखों वाले, सदा साथ रहने वाले, एक दूसरे के मित्र,एक ही वृक्ष पर बैठे हुए हैं। उन में से एक वृक्ष के फल को स्वाद से का रहा है और दूसरा न खाता हुआ साक्षी बना, सब ओर से देख रहा है
स इस स्थानेषु प्रत्याजायते यथाकर्म यथाविद्यम्।
— शांखायन आरण्यक 3.2
अर्थात् जीव अपने – अपने कर्म और ज्ञान के अनुसार संसार में विभिन्न स्थानों (परिस्थितियों एवं योनियों) में जन्म लेता है।
आनन्दं ब्रह्मणो रूपं तच्च मोक्षे प्रतिष्ठितम् ।
— विज्ञानभाक्षु (योगवार्तिकम्)
आनन्द ब्रह्म का स्वरूप है और वह आनन्द मोक्ष में प्रतिष्ठित है।
आमुख
वेद की मान्यता है : तीन सत्ताएँ अनादि हैं और तीन सिद्धान्त अटल। वे सत्ताएँ हैं : ईश्वर, जीव और प्रकृति; और सिद्धान्त हैं : कर्म बन्धन, पुनर्जन्म और मोक्ष
सृष्टि के संचालन के लिये ईश्वर,जीव और प्रकृति तीनों की सत्ता का होना अनिवार्य है। किसी एक के न रहने पर अन्य दो की सत्ता निरर्थक हो जाती है। श्वेताश्वतर उपनिषद् में इसे त्रिविध ब्रह्म कहा गया है।
कर्म बंधन, पुनर्जन्म और मोक्ष ,ये तीनों सिद्धान्त जीव के संदर्भ में हैं; प्रकृति जीव की सहायक है और ईश्वर अधीक्ष्यक।
इन सभी विषयों का सम्यक विवरण ही वैदिक दर्शन/वैदिक मान्यताएँ हैं। ये सभी विषय धारावाहिक रूप में प्रस्तुत किये जाएँगे।
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लेखक विद्यासागर वर्मा के वेदों पर आधारित लेख इस कॉलम में नियमित आप पढ़ सकते हैं। श्री वर्मा भारतीय विदेश सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। वे कज़ाख़स्तान में भारत के राजदूत, पापुआ न्यु गिनी में उच्चायुक्त, आस्ट्रेलिया में उप-उच्चायुक्त, भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद के उप-महानिदेशक एवं विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव रह चुके हैं। ईरान, फ़िजी, मिश्र तथा अफ़ग़ानिस्तान में राजनीतिक पदों पर कार्य कर चुके हैं।
उन्होंने स्नातक स्तर तक संस्कृत एवं दर्शन-शास्त्र का अध्ययन किया तथा पंजाब विश्वविद्यालय से आंंग्लभाषा में एम. ए. डिग्री प्राप्त की।
वैदिक दर्शन में उन्हें विशेष रुचि है।
राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान नव देहली द्वारा प्रकाशित उनकी पुस्तक “योगदर्शन काव्य व्याख्या” का लोकार्पण माननीय उपराष्ट्रपति श्री कृष्ण कान्त ने अप्रैल 2002 में किया।
अपने कार्यकाल में, उन्होंने ऋग्वेद के 1100 मंत्रों का, भगवद्गीता का एवं संक्षिप्त महाभारत का कज़ाख़ भाषा में काव्यानुवाद करवाया।
सम्प्रति वे योग एवं वैदिक दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। फेसबुक पर उनके छह पृष्ठ हैं जिन पर धारावाहिक रूप में इन विषयों पर लेख प्रसारित हो रहे हैं।