विमल कृष्णन : लात खाने के बाद कूटनीतिक मोर्चे पर उनका सामना ऐसे राजनेता से होगा जो कि किसी के दबाव में नहीं आता !
तमाम रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों और इंटेलीजेंस अधिकारियों के संस्मरण, उनकी लिखी किताबों को पढ़ने के बाद मेरा मानना है कि रणनीति और राजनीतिक इच्छाशक्ति के मामले में पाकिस्तान की सेना और वहाँ के नेता हमारे राजनेताओं से मीलों आगे रहे हैं, यहाँ ये डिस्क्लेमर लगाना जरूरी है कि ये स्थिति 2014 तक थी !
जिस तरह की सटीक और आक्रामक रणनीति पाकिस्तान ने 1947 से लेकर 1999 तक के युद्धों में अपनाई थी उससे ये लगभग तय था कि हम पूरा कश्मीर और पंजाब का एक बड़ा भाग खो चुके होते यदि हमारे सैनिकों ने अदम्य साहस और पराक्रम से पाकिस्तान के नापाक इरादों को नाकाम नहीं किया होता !
ये कहने और मानने में हमें कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि 1947 से लेकर 2014 तक हमारा राजनीतिक नेतृत्व बहुत ही अदूरदर्शी और दब्बू किस्म का रहा, इसी के कारण हमने पाकिस्तान के साथ युद्धभूमि में हुए हर युद्ध को जीता और और बातचीत की टेबल पर सब हार आए !
1947 से लेकर 2014 तक राजनेताओं की मूर्खता को हमारे सैनिकों ने अपने रक्त से धोया है !
मुझे पूरा विश्वास है कि पहलगाम और उसके बाद हुए “ऑपरेशन सिंदूर” से शुरू होने वाले वर्तमान युद्ध को भी हम अपनी सेनाओं के पराक्रम के बल पर जीत लेंगे, और पाकिस्तान के लिए दुर्भाग्य (हमारे लिए सौभाग्य) की बात ये है कि हमारी पराक्रमी सेना से लात खाने के बाद कूटनीतिक मोर्चे पर उनका सामना ऐसे राजनेता से होगा जो कि किसी के दबाव में नहीं आता !
इसलिए ये युद्ध निर्णायक होगा, भूराजनीतिक समीकरणों पर दूरगामी प्रभाव डालने वाला होगा !
