देवेंद्र सिकरवार : आंदोलन.. बुद्ध.. और हिंदुओं में जातिगत संघर्ष शुरू कराया जाये
समस्या यह है कि लोगों को इतिहास में जानकारी हो न हो लेकिन अपना व्हाट्सएपिया ज्ञान पूरा पेलना है।
लोगों को यह जानकारी ही नहीं कि प्रारंभिक संघर्ष के बाद वैदिक कर्मकांडवादी, सांख्यवादियों और बौद्धों का समन्वय गुप्तकाल में लगभग हो गया।
बौद्ध मंदिरों व विहारों में बुद्ध के साथ सूर्य, ब्रह्मा, इन्द्र, कुबेर आदि कई देवी देवताओं का अंकन होता था लेकिन प्रधान मूर्ति बुद्ध की होती थी।
इसी तरह विष्णु मंदिरों में भी यही पद्धति होती थी जिसमें बुद्ध का भी अंकन होता लेकिन प्रधान पूजा विष्णु या उनके किसी अवतार की होती थी।
महाबोधिमन्दिर में निःसंदेह प्रधान मूर्ति बुद्ध की ही थी लेकिन अन्य हिंदू देवताओं का अंकन भी उसी प्रकार था। आम हिंदू भी बुद्ध को विष्णु के दशम अवतार के रुप में पूजते थे।
कालांतर में इस्लाम के आक्रमण के बाद जब बौद्ध तिब्बत भाग गये तो हिंदुओं ने अपनी पूजा जारी रखी।
बाद में 1891-95 के जीर्णोद्धार के बाद विदेशी बौद्ध तीर्थयात्री पुनः पूजा करने आने लगे।
इसके बाद कोई विवाद न हो इसके लिए 1949 का समझौता किया गया जो अब तक जारी था लेकिन जातिगत विद्वेष से भरे पेरियारवादी जो हर हालत में हिंदुओं में फूट डालना चाहते हैं वह चाहते हैं कि बोधिमंदिर से हिंदुओं का सम्पर्क समाप्त किया जाये और हर हिंदू मंदिर में मौजूद बुद्ध की किसी न किसी प्रतिमा को आधार बनाकर मुस्लिमों के समर्थन से हिंदुओं में जातियुद्ध छेड़ा जाये।
यह आंदोलन मूलतः इसलिए किया जा रहा है ताकि दलित जातियों में फैल रहे हिंदू राष्ट्रवाद की आग को कमजोर किया जाये और हिंदुओं में जातिगत संघर्ष शुरू कराया जाये।
पिछले हजार साल से किसी की हिम्मत न होती थी इन बौद्ध मंदिरों में जाने की और तब ब्राह्मणों ने उनकी पूजा जारी रखी और आज भी उनके पूजा पर कोई एतराज नहीं है।
लेकिन अगर कोई कहे कि बुद्ध पर वैदिकों का कोई अधिकार नहीं और वें उनकी पूजा अपने तरीके से नहीं कर सकते, वह कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता।
तुम बुद्ध को कैसे पूजते हो यह तुम्हारा विषय है और इससे किसी को कोई एतराज नहीं लेकिन हम उस मंदिर में बुद्ध और उनके साथ अन्य देवताओं की आरती करें, स्तुति करें, इसका निर्देश कोई नहीं दे सकता जो कि परम्परागत रूप से होता भी आया है।
हाँ, यदि कोई पुजारी वहां से बुद्ध को विस्थापित करने या उनका अपमान करने की बात करे तो यह आंदोलन समझ आ सकता है लेकिन वास्तव में हिंदू बुद्ध को विष्णु का अवतार मानकर उनकी पूजा करते हैं जो उनका अधिकार है।
अब कुछ अतिरिक्त बुद्धिमान लोग मेरे घर में बुद्ध की मूर्ति को देखकर घर पर बौद्धों का अधिकार होने की बात करे तो वह थपड़ियाये जाने भर के योग्य है।
