हमारी आध्यात्मिक शक्ति आक्रमणों के बावजूद संरक्षित है, जो हजारों वर्षों से भारत के ‘सनातन मूल्यों’ के जरिए पहुंची है-उपराष्ट्रपति

  • प्राचीन सिद्धांत ‘अनेकान्तवाद’ आज की जटिल दुनिया में वैश्विक कूटनीति के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है
  • सच्चे ‘विकास’ के लिए भौतिक प्रगति और आध्यात्मिक विकास के बीच एक संतुलन होना चाहिए, यह संदेश भारत ‘विश्व गुरु’ के रूप में लेकर चलता है-वीपी
  • ‘भारत’ एक ऐसी भूमि है, जहां शाश्वत ज्ञान मार्ग को प्रकाशित करता है और मानवता को शांति मिलती है-वीपी

कोई भी प्रलोभन, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, नैतिक पथ से विचलित होने का आधार नहीं हो सकता-वीपी

उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज कहा कि भारत ने हजारों वर्षों से हमलों के बावजूद अपनी आध्यात्मिक शक्ति को सुरक्षित रखा है और हमारे मंदिर आध्यात्मिक शक्ति का एक नेटवर्क बनाते हैं।

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आज धारवाड़ में श्री नवग्रह तीर्थ क्षेत्र में ‘सुमेरु पर्वत’ के उद्घाटन के मौके पर बोलते हुए, श्री धनखड़ ने कहा कि, “हमारे मंदिर आध्यात्मिक शक्ति का एक नेटवर्क बनाते हैं, यह परमाणु शक्ति से बहुत आगे है। आध्यात्मिक शक्ति में अकल्पनीय अनुपात वाले आयामों में सकारात्मक बदलाव लाने की परिवर्तनकारी शक्ति है। हमने अपनी आध्यात्मिक शक्ति को संरक्षित किया है। हमने इसको पोषित किया है। आक्रमणों के बावजूद, यह खिल रही है, ये हजारों वर्षों से भारत के सनातन मूल्यों के जरिए पहुंचाया है। जहां शाश्वत ज्ञान पथ को रोशन करता है और जहां मानवता को शांति मिलती है। यह एक ऐसी जगह है, जहां शाश्वत ज्ञान प्रकाशित होता है। ‘भारत’ एक ऐसी भूमि है, जहां शाश्वत ज्ञान प्रकाशित होता है और यहीं पर मानवता को शांति मिलती है।”

भारत के प्राचीन ज्ञान पर रोशनी डालते हुए उपराष्ट्रपति महोदय ने कहा, “हीरे की तरह सत्य के भी कई पहलू हैं। अनेकांतवाद, हमारे कई दृष्टिकोणों का प्राचीन सिद्धांत, आज की जटिल दुनिया में वैश्विक कूटनीति के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। अनेकांतवाद अभिव्यक्ति और संवाद की भावना को समाहित करता है। हम लोगों की अधिकांश समस्याएं इसलिए उत्पन्न होती हैं, क्योंकि अभिव्यक्ति से समझौता कर लिया जाता है और संवाद नकारात्मक हो जाता है। आप अपनी अभिव्यक्ति के अधिकार को तभी सार्थक बना सकते हैं, जब आप संवाद में विश्वास करते हों। संवाद आपको दूसरा परिप्रेक्ष्य, दूसरा दृष्टिकोण देता है। हमें केवल अपने ही दृष्टिकोण को सही मानने का अहंकार नहीं करना चाहिए, ऐसा कभी नहीं हो सकता। हमें संवाद में शामिल होकर अपने आस-पास की विवेकपूर्ण सलाह को सुनना चाहिए और यही अनेकांतवाद द्वारा इंगित किया गया है।”

उन्होंने  आगे कहा, “ये तीन रत्न, ‘अहिंसा’, ‘अपरिग्रह’ और ‘अनेकान्तवाद’, केवल शब्द नहीं हैं। वे हमारे जीवन के तरीके को परिभाषित करते हैं। उन्होंने सभ्यता की उत्कृष्टता को परिभाषित किया। ये पृथ्वी पर अस्तित्व के लिए आधार और आधारभूत सिद्धान्त हैं। ये तीनों एक साथ मिलकर वैश्विक चुनौतियों, हिंसा, अत्यधिक उपभोग और वैचारिक ध्रुवीकरण के लिए सारगर्भित समाधान पेश करते हैं। हमारी सभ्यता, और यह 5,000 साल पुरानी है, हमारे लोकाचार, हमारा ज्ञान और बुद्धिमत्तता का खजाना, सदियों का ज्ञान समेटे हुए है। प्राचीन मंदिरों से लेकर आधुनिक प्रौद्योगिक केंद्रों तक, हमने ‘भौतिक उन्नति’ को ‘आध्यात्मिक विकास’ के साथ संतुलित किया है। संतुष्टि, शांति और सांत्वना से भरा जीवन जीने के लिए दोनों ही आवश्यक हैं।”

भौतिक और आध्यात्मिक विकास के बीच संतुलन की जरूरत पर रोशनी डालते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘सच्चे ‘विकास’ के लिए भौतिक प्रगति और आध्यात्मिक विकास के बीच संतुलन होना बहुत जरूरी है और यह वह संदेश है, जो भारत ‘विश्व गुरु’ के रूप में लेकर चलता है।

उन्होंने आगे कहा, “समय को घड़ियों से नहीं, बल्कि बदलाव के क्षणों से मापा जाता है। हर 12 साल में किया जाने वाला महामस्तकाभिषेक ‘प्राचीन ज्ञान’ और ‘आधुनिक चुनौतियों’ के बीच हमारा सेतु है। पर्यावरण संकट के इस दौर में, जो संकट पूरी मानवता के लिए अस्तित्व की चुनौती बन गया है, सभी जीवों के प्रति “अहिंसा” के जैन सिद्धांत और संसाधनों का सजग उपयोग 2047 में “विकसित भारत” की दिशा में सतत विकास के लिए समाधान प्रदान करता है। इस धर्म द्वारा हमें प्राकृतिक संसाधनों का इष्टतम और मितव्ययी उपयोग करना सिखाया जाता है। हम केवल इसलिए उनके बारे में लापरवाह या अति-अवधारणाशील नहीं हो सकते, क्योंकि हम उन्हें वहन कर सकते हैं।”

नैतिक आचरण बनाए रखने की आवश्यकता पर बल देते हुए, श्री धनखड़ ने कहा कि, “नैतिकता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। नैतिक मानदंड हमारी संस्कृति में अंतर्निहित हैं। कोई भी कमी, कोई भी विचलन आपकी आत्मा को जगा देगा, आपको शांति से वंचित कर देगा। हमें ईमानदारी से, सावधानी से उच्चतम नैतिक मानदंडों को बनाए रखना चाहिए, किसी भी प्रलोभन में नहीं आना चाहिए। कोई भी प्रलोभन, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, नैतिक मार्ग से विचलित होने का आधार या उचित आधार नहीं हो सकता। यह ऐसे केंद्र हैं, जो हमें नैतिकता का पालन करना सिखाते हैं। यह ऐसे केंद्र हैं, जो हमें इस भावना से भर देते हैं। हममें से हर एक का कर्तव्य है कि हम अपने युवाओं, अपने बच्चों को समाज में नैतिकता के महत्व के बारे में जागरूक करें।”

हमारे धार्मिक और पवित्र स्थानों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, श्री धनखड़ ने रेखांकित किया, “हमारे मठ और हमारे मंदिर केवल पूजा की जगहें नहीं हैं, वे इससे कहीं आगे हैं। वे सामाजिक परिवर्तन की जीवंत संस्थाएं हैं, जो समकालीन चुनौतियों को संबोधित करने के लिए प्राचीन ज्ञान को अपनाती हैं… हमारे पवित्र स्थान धार्मिकता से परे गतिशील केंद्र हैं, ये शिक्षा, चिकित्सा और सेवा के जीवंत केंद्र हैं।’’

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