पहली प्रति : विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत की विदेश नीति से महाशक्ति के रूप में अभ्युदय पर प्रकाश डालती पुस्तक ‘द इंडिया वे’ पी.एम. को सौंपी

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत की विदेश नीति के सामने मौजूद चुनौतियों और महाशक्ति के रूप में देश के उभरने का लेखा-जोखा लेने वाली अपनी पुस्तक ‘द इंडिया वे’ (भारत का रास्ता) की पहली प्रति मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सौंपी।

एस जयशंकर ने मोदी को पुस्तक सौंपे जाने के चित्र को साझा करते हुए एक ट्वीट में कहा कि अपनी पुस्तक की पहली प्रति प्रधानमंत्री को सौंपने को अपने लिए विशेष सम्मान मानते हैं। उन्होंने प्रेरणा देने और उत्साहवर्धन के लिए प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त किया।

विदेश मंत्री की पुस्तक ‘द इंडिया वे- स्ट्रैटेजिस ऑफ एन अनसर्टेन वर्ल्ड’ (भारत का रास्ता-अनिश्चित दुनिया में रणनीति) का विमोचन अगले महीने पहले सप्ताह में होना है।

भारत और दुनिया के कूटनीतिक हलकों में इस पुस्तक की उत्सुकता पूर्वक प्रतीक्षा की जा रही है।

विदेश मंत्री ने अपनी पुस्तक में देश की आजादी के बाद विदेशनीति के सामने आने वाली चुनौतियों का लेखा-जोखा लेने के साथ ही नई उभरती विश्व व्यवस्था में भारत की भूमिका का भी विश्लेषण किया है।

पुस्तक के अनुसार आजादी के बाद भारत को तीन प्रमुख समस्याओं का सामना करना पड़ा जिसके कारण विश्व मंच पर भारत अपनी क्षमता के अनुसार प्रभावी भूमिका नहीं निभा पाया। भारत को विरासत में देश के विभाजन का सामना करना पड़ा जिसके कारण भारत को भू-भाग और जनसंख्या की दृष्टि से नुकसान का सामना उठाना पड़ा। दूसरी कमी के रूप में विदेश मंत्री ने देश में आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया शुरू करने में 15 साल की देरी का उल्लेख किया है। भारत आर्थिक सुधारों के सिलसिले में चीन से 15 साल पिछड़ गया जिससे उसकी आर्थिक मजबूती पर असर पड़ा। इसके अतिरिक्त भारत ने परमाणु विकल्प को लेकर भी लम्बे समय तक अनिश्चित स्थिति बनी रही जिसका असर देश की सुरक्षा नीति पर पड़ा।

पुस्तक में वर्ष 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट से लेकर वर्ष 2020 के कोरोना महामारी के घटनाक्रम का लेखा-जोखा लिया गया है। दुनिया नई विश्व व्यवस्था की ओर बढ़ रही है, जिसमें भारत को प्रमुख भूमिका निभानी है। देश के राष्ट्रीय हित में है कि वह दुनिया की महाशक्तियों के साथ निकट संबंध स्थापित करे तथा अपने हितों को आगे बढ़ाए। पुस्तक में पड़ोंसी देशों के संबंध में मजबूत रवैया अपनाने की वकालत की गई है।