डॉ. भूपेन्द्र सिंह : कैप्टन अंशुमन ने अरेंज मैरेज किया होता तो..

यदि शहीद कैप्टन अंशुमन ने अरेंज मैरेज किया होता तो शायद उनके माँ बाप इतना बवाल नहीं कर रहे होते। हर व्यक्ति को अपना नॉमिनी चुनने का अधिकार है। कैप्टन ने अपना नॉमिनी अपनी पत्नी को चुना, यह उनका अधिकार था और उनके फ़ैसलों का सम्मान करना माँ बाप का धर्म भी है। ऐसा भी नहीं है कि माँ बाप गरीब हैं अथवा पैसे के लिए मोहताज हैं। उनके पिता को ख़ुद अच्छी ख़ासी पेंशन मिल रही है, ऐसे में पत्नी को नॉमिनी चुनना वैसे भी बिलकुल सही निर्णय था।

भारत में माँ बाप बच्चों से प्यार कम करते हैं और अधिकार अधिक रखना चाहते हैं। बच्चों को पालना माँ बाप का धर्म है और बूढ़े माँ बाप की देखरेख करना बच्चे का कर्तव्य है। लेकिन विवाह के बाद पुरुष पर पहला अधिकार पत्नी का ही है। हमारे यहाँ माँ बाप एक जन्म के साथी होते हैं जबकि पत्नी सात जन्मों की। पत्नी अपने पति के शरीर और उसके आत्मा का हिस्सा होती है। विवाह के उपरांत पुरुष पर उसके पत्नी का पहला अधिकार है। इसके ख़िलाफ़ इमोशनल ब्लैकमेलिंग करना नितांत मूर्खता और बेशर्मी है। कैप्टन अंशुमन का विवाह यदि उनके माँ बाप ने अपने मन से किया होता तो इस प्रकार की कोई नाटक नौटंकी नहीं हो रही होती, बल्कि कोई गलती रहती तो उसे ये लोग छिपा रहे होते। चुकी मामला प्रेम विवाह का है तो माँ बाप किसी भी क़ीमत पर यह समाज में साबित करने में जुट जाते हैं कि यदि हमसे पूछकर विवाह किया होता तो ये सब न होता। कुछ माँ बाप तो अपने अधिकार में इतने पागल हो जाते हैं कि साज़िश रचकर अपने ही बच्चों का घर तबाह करके अपनी जीत का जश्न मनाने की बेशर्मी करते हैं।

शहीद कैप्टन की माँ का यह भी कहना है कि मैंने तो कहा था कि छोटे बेटे से विवाह कर लो। क्या कोई महिला गाय भैस है जो आपके मन से इस खूटे से हटाकर दूसरे खूँटे में बाध दी जायेगी? आपने कुछ ऑफर किया अच्छी बात है पर सामने वाला स्वीकार नहीं करे तो इसमें नाराज़ होने जैसी कोई बात नहीं होनी चाहिए। यदि यह बात आपको कहनी भी थी तो कम से कम आठ महीने साल भर रुक जाते। किसी को भी ऐसे ट्रामा से निकलने में साल भर का समय लगता ही है। भले उनका विवाह कुछ माह पूर्व का हो लेकिन दोनों में प्रेम संबंध आठ साल पुराना है।
दरअसल जिस भी परिवार में काँग्रेडी परिवार की एंट्री हो जाती है, वह परिवार बड़े से बड़े गरिमापूर्ण मामलों में भी गलती करने और अपनी इज़्ज़त समाज के सामने गिराने को बाध्य हो जाता है।
माँ बाप को स्वीकार करना होगा कि विवाह के उपरांत व्यक्ति पर पहला हक़ पत्नी का ही है। कम से कम भारत के परिप्रेक्ष्य में तो ऐतिहासिक रूप से ऐसा ही है। पति पत्नी का रिश्ता दो दिन का हो या दस साल का, उसे एक बराबर का ही स्वीकारना चाहिए।

 

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