डॉ. भूपेन्द्र सिंह : पार्टी को डीलरों, दरबारियों और मैनेज़रो से..जल्द ही इनको मारो जूते चार के..
उत्तर प्रदेश में भाजपा के हार के बाद नेता, विश्लेषक, पत्रकार आदि यह कह रहे हैं कि इसमें ठाकुरों की गलती है, ब्राह्मणों की गलती है, पिछड़ों की गलती है, दलितों की गलती है, वह ये भूल रहे हैं कि इस देश में लोकतंत्र है।
राजतंत्र नहीं है जहां यदि किसी ने राजा के ख़िलाफ़ बोला तो वह ग़द्दार कहलायेगा। कुछ हारे हुए प्रत्याशी इतने निकृष्ट हो गये है कि वह अभी भी अपनी गलती स्वीकार करने के बजाय विभिन्न जातियों का नाम ले लेकर कह रहे हैं कि फला जाति ने ग़द्दारी की, फला सामाजिक समूह ने साथ छोड़ दिया। यदि किसी वर्ग ने, समूह ने साथ छोड़ा अथवा विरोध किया तो उनको आँख न दिखाओ, अपने तरफ़ देखो और सोचो कि तुमने क्या गलती की है? वो लोग जो कल तक तुम्हारे साथ थे आज अचानक क्यों छिटक गए?? किस प्रकार से हमारे प्रयासों में कमी रह गई??
गलती हिंदुओं ने की, ठाकुरों ने की, ब्राह्मणों ने की, पिछड़ों ने की, दलितों ने की, सब तर्क ला रहे हो लेकिन यह नहीं देखने की हिम्मत हो रही है कि हमने क्या गलती की?
नेताओं, ब्यूरोक्रेट के लड़कों को भर भर कर टिकट दिया। पार्टी फण्ड के पैसों को प्रत्याशियों ने खा लिया और यह सोचा कि मोदी जी के नाम पर जीत हासिल कर लेंगे। पैराशूट से पैसे वालों को टिकट देकर लाँच कर दिया। जिन प्रत्याशियों को जनता ने पीट पीटकर भगा दिया था उनको भी टिकट दे दिया। पत्रकारों ने दल्लो को टिकट दिलवा दिया। प्रदेश में नेतृत्व पैदा करने के बजाय वो लड़के जो एक दो संगठन के बड़े नेताओं के लिए गाड़ी, गेस्ट हाउस की व्यवस्था कर देते हैं, उनके पीछे पाँच सात साल घूम लिए उनको भर दिया। ऐसे लोग जिनको उनके विकास खंड तक के लोग न जानते हों वह बड़े बड़े पद पा गये।
ऐसे काम चलेगा नहीं। संगठन की संस्कृति में अमूल चूल परिवर्तन करना होगा। आयोगों में सदस्यों की सीट सालों साल ख़ाली हैं लेकिन अपने कार्यकर्ताओं को बैठाना नहीं है। अधिकारियों के पास शक्ति केंद्रित कर दिया गया है जो किसी की सुनते हैं। मण्डल अध्यक्ष कई जगह झापड़ खा कर लौट चुके हैं। भाजपा कार्यकर्ता गुंडा मवाली नहीं होते लेकिन उनके बुरे दिन में भी कोई खड़े होने वाला नहीं है। जब सहायता माँगने जाएँगे तो ज्ञान देकर वापस कर दिया जाएगा। पिछड़ों और दलितों के मुद्दों पर पार्टी के भीतर के नेता मौन रहेंगे, बाहर के सहयोगी पार्टी के नेता दहाड़ेंगे फिर प्रश्न उठायेंगे कि हमारे पार्टी के पिछड़े दलित नेताओं के साथ यह वर्ग जुड़ता क्यों नहीं??
भर्ती निकलती है तो आरक्षण के मुद्दे पर विवाद हो जाएगा और मामला कोर्ट पहुँच जाता है और वहाँ पता चलता है कि आरक्षण के चोरी का प्रयास हुआ है। जब पता है कि आज के समय में किसी भी वर्ग के आरक्षण में से एक सीट की भी चोरी नहीं हो सकती तो ऐसा प्रयास करने वाला सामान्य वर्ग का शुभचिंतक है या गाली दिलाने वाला??
जनता ने केवल सबक़ सिखाया है, सफ़ाया नहीं किया है। अभी भी 42% लोगों ने पार्टी को वोट दिया है। जल्द से जल्द पार्टी को डीलरों, दरबारियों और मैनेज़रो से मुक्त करना होगा। विपक्ष ने तैयारी कर ली है। जल्द ही मारो जूते चार के नारे उत्तर प्रदेश में बुलंद होंगे। जातियों का विभाजन का प्रयास बहुत तेज़ होगा। समाज को अगड़ा बनाम आल में विभाजित किया जाएगा। आत्मचिंतन और सुधार की आवश्यकता है। हिंदुओं को, अयोध्या वासियो को, ब्राह्मणों को, ठाकुरों को, पिछड़ों को, दलितों को ग़द्दार मत बताइये। वह आपके वफ़ादारी का शपथ नहीं लिए हैं और न ही आप राजा है। गलती सुधारिये, आगे बढ़िये। समाज जुड़ने के लिए तैयार है पर पार्टी और संगठन को उस लायक़ बनना होगा।
डॉ. भूपेन्द्र सिंह
लोक संस्कृति विज्ञानी