सुरेंद्र किशोर : नीति-रणनीति-सिद्धांत देश के लिए होता है,कोई देश किन्हीं कालबाह्य नीति-रणनीति -सिद्धांत के लिए नहीं होता।

कभी इस देश में टी.बी.-मलेरिया-प्लेग की दवा के आविष्कार की जरूरत थी।
हाल में कोरोना की दवा के इजाद की जरूरत हुई।
अब कैंसर की दवा पर दुनिया में काम चल रहा है।
—————–
जाहिर है कि टी.बी.की दवा से कोरोना का इलाज संभव नहीं।

इसीलिए किसी दल,देश या नेता को देश, काल, पात्र की मौजूदा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ही अपनी नीति-रणनीति -कार्यनीति तय करनी या बदलनी पड़ती है।
चीन की सरकार ने जब पूंजीवाद अपनाया तो सवाल उठा था।
उसके जवाब में चीन सरकार ने कहा कि ‘‘हम समाजवाद की रक्षा के लिए पूंजीवाद अपना रहे हैं।’’
रूस ने भी अपनी जरूरतों के अनुसार इसी तरह से नीति -रणनीति बदली।
दोनों देशों की कम्युनिस्ट पार्टियां अब भी अपने ढंग से काम कर रही हैं।वहां उनकी सरकारें हैं।
पर, देखते-देखते भारत की कम्युनिस्ट पार्टियों का क्या हाल हुआ ?
क्यों हुआ ?
जग जाहिर है।
दरअसल वे शीतयुद्ध के जमाने से अब भी बाहर निकलने को तैयार नहीं हैं।
उनके पास भारत की जनता की नई जरूरतों के अनुसार कोई दवा या इलाज नहीं है।कोई चिंतन भी नहीं।
——————
देश,काल, पात्र की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए
डा.राममनोहर लोहिया ने अपनी रणनीति बदल ली थी।
जयप्रकाश नारायण भी देश की पुकार पर सर्वाेदय-भूदान की एकांत दुनिया से निकल कर एकाधिकारवादी सत्ता के खिलाफ संघर्षरत हुए।
नतीजतन , लोहिया ने 1967 में प्रदेशों की सत्ता से कांग्रेस का एकाधिकार तोड़ दिया।
जेपी ने 1977 में केंद्र की सत्ता से कांग्रेस को उखाड़ फेंका।
दोनों एक बार फिर इतिहासपुरुष बने जिन्होंने लोगों को राहत पहुंचाई।आजादी की लड़ाई के दोनों अप्रतिम योद्धा थे ही।
दोनों व्यक्तिगत रूप से अत्यंत ईमानदार थे।वे न तो पैसावादी थे न ही जातिवादी और न ही परिवारवादी।
ऐसे नेताओं को देश की जरूरतों के अनुसार अपनी रणनीतियां बदलने में दिक्कत नहीं होती।
—————–
याद रहे कि डा.लोहिया पहले ‘एकला चलो’ के पक्षधर थे। पर,बाद में उन्होंने जनसंघ और सी.पी.आई.को एक साथ एक ही राज्य सरकार में शामिल होने के लिए राजी किया था।सन 1967 की यू.पी.-बिहार की गैर कांग्रेसी सरकारों में सोशलिस्टों के साथ-साथ सी.पी.आई.और भारतीय जनसंघ के नेता भी मंत्री बने थे।
1967 में लोहिया ने जेपी से कहा था कि सर्वोदय के एकांत से निकल कर देश को गरमाओ।तुम्हीं देश को गरमा सकते हो।
पर तब तो जेपी नहीं माने थे।
पर जब सत्तर के दशक में इंदिरा गांधी एकाधिकारवादी होने लगी तो जेपी ने अपनी रणनीति-कार्यनीति बदल ली।एक बार फिर योद्धा बन कर सड़कों पर उतर गये।
——————-
आज देश को किन राजनीतिक नीतियों,रणनीतियों व प्रशासनिक कार्रवाइयों की जरूरत है ?
जो राजनीतिक दल देश की आज की जरूरतों को पहचान पा रहे हैं और तदनुसार खतरा उठाकर भी काम कर रहे हैं,वे लगातार केंद्र की सत्ता में हैं।
सन 2024 के लोक सभा चुनाव के रिजल्ट आ जाने के बाद केंद्र का मौजूदा सत्ताधारी अपनी सत्ता गंवा देगा,ऐसी भविष्यवाणी कोई संतुलित व सुलझा दिमाग का व्यक्ति आज नहीं कर रहा है।
——————-
4 जून के बाद बनने वाली केंद्र की सरकार से लोग क्या उम्मीद कर रहे हैं ?
फिलहाल एक ही उम्मीद की चर्चा करना चाहता हूं।
पहला काम तो यह होना चाहिए कि भ्रष्टाचारियों के लिए फंासी की सजा का प्रावधान हो।
कल ही यह खबर आई कि चीन की एक अदालत ने एक पूर्व बैंक अफसर को रिश्वतखोरी के आरोप में फंांसी की सजा सुनाई।
सन 2013 में चीन के रेल मंत्री को भ्रष्टाचार के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गयी थी।बाद में उसे आजीवन कारावास में बदल दिया गया।
———————
चीन इसलिए ताकतवर हो सका क्योंकि उसने सार्वजनिक धन को भ्रष्टों के हाथों जाने से भरसक रोका।
रोकने का ठोस उपाय किया।पैसों से ही तो सारे काम संभव हैं।दुनिया में उससे इज्जत भी बढ़ती है।
दूसरी ओर 1947 के बाद से ही भारत सरकार ने लूट की छूट दे दी।नेहरू ने भ्रष्टाचार पर कार्रवाई के लिए अपने मंत्री सी.डी.देशमुख की सलाह को ठुकरा दिया था।
नतीजतन 100 सरकारी पैसों में से 85 पैसों की लूट होती रही।
1985 में यह रहस्योद्घाटन किसी और ने नहीं बल्कि प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने KIYA THA
कल्पना कीजिए यदि 1947 से 1985 के बीच के बजट में से 85 प्रतिशत लूट से बचा लिया गया होता तो क्या देश गरीब रहता ?
—————
नरेंद्र मोदी सरकार ने प्रधान मंत्री स्तर व केंद्रीय मंत्री स्तर से भ्रष्टाचार-घोटाले को भरसक समाप्त कर दिया है।
उसके नीचे के सरकारी स्तरों का हाल मैं नहीं जानता।
शायद बुरा है।शायद ही किसी सरकारी आॅफिस में घूस के बिना काम होता है।मेरा अनुभव बताता है कि राज्य सरकारों खास कर बिहार सरकार का हाल बहुत ही बुरा है।
फिर भी भारत सरकार का राजस्व 2013-14 की अपेक्षा आज तीन गुणा बढ़ चुका है।
इन्हीं पैसों से देश में विकास-कल्याण के काम हो रहे हैं जो दिखाई पड़ते हैं।
यदि भ्रष्टाचार के खिलाफ हर स्तर पर ठोस व कारगर कार्रवाई हो तो राजस्व बहुत बढ़ जाएगा।देश एक बार फिर सोने की चिड़िया बन सकता है।ं
————–
यानी भारत सरकार के हर स्तर से भ्रष्टाचार की समाप्ति की जरूरत है।तभी केंद्र सरकार इतना अधिक धन लूट SE बचा पाएगी जिससे आने वाले दिनों में वह आसन्न भीषण संकटों से मुकाबला कर पाएगी।
आंतरिक और बाह्य युद्ध का खतरा सामने है।उनसे निपटने ंमें काफी पैसे लगेंगे।
——————
देश में जेलों की संख्या अभी काफी कम है।तरह -तरह के भ्रष्टों और राष्ट्रद्रोहियों के खिलाफ जरूरत के अनुसार सजाएं हों तो जेलों की संख्या और भी कम पड़ जाएगी।
हजारों नये जेल बनाने पड़ंेगे।
जितने आरोपियों और आरोपितों के खिलाफ फिलहाल मुकदमे चल रहे हैं,उन्हें जल्द से जल्द निपटाना होगा।
क्योंकि नये- नये भ्रष्टों के खिलाफ भी तो कार्रवाई करनी होगी।
उम्मीद है कि मोदी सरकार उन हस्तियों को भी नहीं बख्शेगी जो उनके सत्ताधारी दलों से जुड़े हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *