कौशल सिखौला : बाबा साहेब ऐसी कोई व्यवस्था नहीं कर गए तो रुदन जारी है..
आइए ! आज एक बुनियादी प्रश्न उठाते हैं । संविधान कहता है कि देश की तमाम जनता के साथ समान व्यवहार किया जाए । शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री , मुख्यमंत्री सहित केन्द्र और राज्यों के तमाम मंत्री जाति धर्म से ऊपर उठकर बिना किसी भेदभाव के सभी देशवासियों की सेवा समान रूप से करने की शपथ लेते हैं , शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करते हैं । इन्हें सुरक्षित रखा जाता है।

जाहिर है हमारे संविधान निर्माताओं ने पहले ही इस बात का ख्याल रक्खा कि शासक पार्टी नागरिकों के बीच धर्म , जाती , ऊंच नीच , छोटे बड़े , अमीर गरीब किसी भी स्तर पर भेद न कर पाए । देश की पूरी जनता को देश के संसाधनों का सामान रूप से लाभ मिले । किसी से भी भेदभाव न हो ।
संविधान सभा में डाक्टर राजेंद्र प्रसाद और डाक्टर अंबेडकर जैसी हस्तियां मौजूद थी । बाबा साहेब ने ब्राह्मण और दलित के अधिकारों में कण भर अंतर नहीं किया । सच कहें तो लोकतंत्र के लोक और जनतंत्र के जन का सच्चा समान अर्थ बताता है हमारा संविधान । आजादी के बाद देश के नीति नियंता कर्णधारों ने सबसे अधिक जोर जिस बात पर दिया वह थी समानता और समरसता ।
वास्तव ने हमारे संविधान ने ही हमें विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र बनाया है । देश के राष्ट्रपति हों या प्रधानमंत्री ; संविधान की शपथ उन्हें समानता से बांधती हैं । वे न तो किसी जाति या धर्म को ज्यादा दे सकते हैं और न ही किसी को कम । हमारी संसद जितने भी कानून बनाती है वे देश की 140 करोड़ जनता पर समान रूप से लागू होते हैं । हमारे कर्तव्य भी समान हैं और अधिकार भी ।
सवाल यह है कि संविधान जब भारत के हर नागरिक को समानता देता है तो जातीय जनगणना कैसे संभव है ? जातीय जनगणना के बाद जातियों की संख्या के आधार पर कैसे किसी को अधिक और कैसे किसी को कम दिया जा सकता है ? मतलब जिस जाति की संख्या कम आएगी , क्या उसकी सुविधाएं घटा दी जाएंगी ? ज्यादा संख्या वाली जाति को क्या संसाधनों का प्रतिशत बढ़ा दिया जाएगा ?
वर्तमान संविधान के रहते क्या यह संभव है कि राष्ट्र के संसाधनों का अनियमित भेदभावपूर्ण बंटवारा कर दिया जाए । संविधान इजाजत नहीं देगा तो क्या अधिक जातीय प्रतिशत वाला समाज संविधान को उसी तरह जला देगा जैसे कुछ लोगों ने भृगु संहिता जलाई थी , रामचरितमानस के पन्ने जलाए थे ?
क्या मिलेगा पहले से जातियों में बंट गए समाज को और टुकड़ों टुकड़ों में बांटकर ?
आज मोदी उसी ढांचे को बदलने में लगे हैं और यही कुछ भाई लोगों की पीड़ा है । उन्हीं लोगों ने प्रस्तावित जनसंख्या जनगणना की जगह जातीय जनगणना का शोर मचा रखा है । बाबा साहेब ऐसी कोई व्यवस्था नहीं कर गए तो रुदन जारी है । सरकार अब कोरोना के कारण के कारण रुक गई जनगणना शुरू कराए । देश को कुछ और अधिक बांटने वाली जातीय जनगणना कराने की जिद देश और खण्ड खण्ड करेगी , यह बात तय है । अफसोस कि राष्ट्रीय संदर्भों वाली सबसे पुरानी पार्टी भी बहती नदी में डुबकी लगाने को तैयार हो गई है ?
