हिंदी : आह एनटीपीसी का “आलू डालो सोना निकालो”.. सर्वश्रेष्ठ बालको, सीएसईबी, जिला प्रशासन.. वाह गेंदलाल शुक्ल..
हिंदी दिवस के बाद..
हिंदी के रक्षकों के संग..
हिंदी की बात..
कोरबा में अनेक सार्वजनिक-निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठानों का पूर्व में प्रयास रहता था कि हिंदी में कार्यसाधक ज्ञान न रखने वाले कर्मचारियों को आवश्यक प्रशिक्षण देकर हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान दिया जाए किन्तु यह लक्ष्य पूरा होने के बाद भी कार्यालयों में सारा कामकाज हिंदी में होता हुआ नहीं दिखता। केवल खानापूर्ति होती रही है।
आज की स्थिति में हिंदी अधिकारी तेजस्वी हुआ तो वह एक वातावरण जरूर बनाए रखता है किन्तु जहां थोड़ी भी ढिलवाही हुई वहां हिंदी का वातावरण भी बनता हुआ नहीं दिखता।
दुःखद है कि इस वर्ष किसी सार्वजनिक-निजी प्रतिष्ठानों में हिंदी दिवस पर किसी कार्यक्रम के औपचारिक आयोजन की भी बात सामने नहीं आई।
एक प्रकार से सबने हिंदी दिवस के सुअवसर पर मौन धारण कर हिंदी को श्रद्धांजलि अर्पित कर दी है।
NTPC का जनसंपर्क विभाग तो जब भी मन करता है विज्ञप्ति बांचकर जब तब हिंदी की बिंदी, शब्दावली, व्याकरण सबकी बलि चढ़ाकर श्रंद्धाजलि अर्पित कर ही देता है।

प्रेस जगत में बहुतायत पोर्टल है और सभी सीधे विभिन्न संस्थाओं से प्राप्त समाचारों को, सूचनाओं को सीधे कॉपी कर पेस्ट ही मारते हैं। दाएं-बाएं भी कतई नहीं देखते कि उसकी शब्दावली, व्याकरण में क्या खामियां हैं ?
एक समय था जब विज्ञप्ति आने पर एक आकर्षक इंट्रो बनाया जाता था ताकि पठन-पाठन में सरसता, सरलता, सहजता और सुबोधता का समावेश हो ताकि पाठकों को रुचि कर लगे। समाचार जगत में वास्तव में यह इंट्रो एक प्रकार से किसी पुस्तक की भूमिका या प्रस्तावना की तरह होता है जो पाठकों को भीतर के समाचारों को पूरा पढ़ने के लिए विवश कर देता है।
अब इंट्रो बनाने की परंपरा लगभग समाप्त होने को है बस सीधे कॉपी कीजिए और पेस्ट मारिए। कॉपी पेस्ट का सीधा सा अर्थ है “नकल बिना अक्ल”
एनटीपीसी का आलू डालो सोना निकालो कार्यक्रम
14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने यह निर्णय लिया कि हिन्दी केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा होगी।

वैसे तो केंद्र सरकार की नवरत्न कंपनी एनटीपीसी में हिंदी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं, हिंदी को लेकर आकर्षक नारों से NTPC अटा पड़ा है लेकिन विगत लंबे समय से एनटीपीसी का हिंदी विभाग आलू डालो सोना निकालो की तर्ज पर एनटीपीसी की विज्ञप्तियां संवाद विभाग द्वारा जारी किया जा रहा है, उसे देखने-पढ़ने से समझ में आता है कि हिंदी पर कोई पकड़ नहीं है या सार्थक प्रयास /मेहनत नहीं करना चाहते।
सीधे अंग्रेजी में विज्ञप्तियां टाइप करते हैं और गूगल में ट्रांसलेट कर सीधे पत्रकार बंधुओ को मेल या व्हाट्सएप कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। यह नहीं देखते कि यह सोना 24 कैरेट का है या हिंदी की बिंदी में जंग पड़ चुका है।


एनटीपीसी के संवाद विभाग को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। एनटीपीसी प्रबंधन द्वारा जारी विज्ञप्तियों के कुछ स्क्रीनशॉट इस लेख में है। पढ़कर सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि किस तरह से एनटीपीसी में हिंदी को लेकर जागरूकता है !! लगता तो यही है की हिंदी की चिंदी-चिंदी एनटीपीसी का संवाद विभाग करके ही मानेगा।
वैसे अच्छा किया कोरबा एनटीपीसी के संवाद विभाग ने जो हिंदी दिवस नहीं मनाया। मनाते तो वही आलू डालो और सोना निकालो की शैली में विज्ञप्ति बांची जाती।
बालको, सीएसईबी व जिला प्रशासन का जनसंपर्क विभाग है जागरूक
जिले के कुछ संस्थान ऐसे हैं जिनकी हिंदी में जारी सूचना, विज्ञप्तियों की प्रशंसा करनी होगी। भले ही यह अलग से हिंदी बचाओ के नाम से कोई विभाग नहीं चलाते लेकिन शब्दों के चयन को लेकर भाषा पर उनकी पकड़ स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है, चूंकि इनके द्वारा जारी सूचनाएं, विज्ञप्तियां सामाजिक सरोकारों से संबंधित होती हैं सो आमजनमानस के स्मृति पटल पर चुने हुए हिंदी के शब्द गढ़ कर आने वाली पीढ़ियों के लिए “गढ़े” जातें हैं।



हिंदी ही है जिसने हाथों से समाचार बनाने वाले स्व. प्रवीण जयसिंह जैसे एक मुद्रणकार (कंपोजिटर) को तब जब कंप्यूटर आम नहीं हुआ था, तब स्व. प्रवीण जयसिंह लोहे के खांचों में बने हुए शब्दों को बिना देखे पिरोकर वरिष्ठ पत्रकार जयप्रकाश टमकोरिया के दैनिक सांध्य समीक्षक में काम करते-करते अपनी हिंदी भाषा में पकड़ के कारण देशबंधु रायगढ़ के ब्यूरो चीफ के रूप में चयनित किए गए। कोरबा में मनोज शर्मा (दैनिक भास्कर) की पत्रकारिता की शुरुआत तरुण छत्तीसगढ़ से हुई, तब उनका साप्ताहिक कॉलम “नगर के चौराहे से” की लोगों को आतुरता से प्रतीक्षा रहती थी, इसमें उनका भाषा ज्ञान स्पष्ट झलकता था।
यहां यह सब बताने का उद्देश्य किसी को अपमानित करना नहीं है। बल्कि यह बात सामने रखना है कि बड़े संस्थान, बड़े लोग, समाचार पत्रों के बड़े बैनर पर जो लोग होते हैं पाठक उनकी ही हिंदी को शुद्ध हिंदी मानकर उसका अनुसरण करते हैं इसलिए प्रयास यही होना चाहिए कि शुद्ध, सार्थक, सरल, सुबोध हिंदी परोसें।

हिंदी को लेकर मेरे अनेक अनुभव रहे हैं।
निष्पक्ष वार्ता आरंभिक प्रकाशन के दौरान एक कॉलम वर्तमान राज्य सूचना आयुक्त धनवेंद्र जायसवाल और मैं लिखते थे, तब छेदीलाल अग्रवाल जी से बहुत कुछ सीखने को मिला। कोरबा में बिलासपुर संभाग के सर्वश्रेष्ठ समृद्ध वाचनालय में तत्कालीन प्रभारी एस.एन. के मार्गदर्शन में सार्थक पुस्तकों के अध्ययन का सुअवसर मिला।
किशोर शर्मा जी देशबंधु में थे तब स्वर्गीय मित्र रमेश पासवान के साथ देर रात तक रुकना होता था। वहां का कंप्यूटर ऑपरेटर किशोर भैया को फोन कर बताता था प्रकाश भैया ने चेक कर लिया है, तब जवाब मिलता था भेज दो।
हरिभूमि में काम करने के दौरान मैंने देखा था कि वर्तमान प्रेस क्लब अध्यक्ष राकेश श्रीवास्तव हिंदी को लेकर बेहद सजग रहतें हैं। उन्होंने रात के कोरबा पन्ने में शब्दों में कोई त्रुटि न रहे इसका जिम्मा मुझे सौंप दिया था।
मेरा सौभाग्य था कि वीर छत्तीसगढ़ का प्रकाशन जब मैंने आरंभ किया तब बालको प्रबंधन से जुड़े दीपक पाचपोर, प्राणनाथ मिश्रा अपना लेख मुझे प्रकाशन के लिए देते थे, जो क्रमशः “आसपास” व “फुर्सतनामा” शीर्षक से प्रकाशित होता रहा, इनका उल्लेख इसलिए कि इन्होंने स्थानीय स्तर पर कभी किसी समाचार पत्र को अपना लेख नहीं दिया लेकिन “वीर छत्तीसगढ़” को यह सौभाग्य मिला।
हिंदी दिवस पर पर्यावरण की अनकही बात…
हिंदी दिवस के सप्ताह बीतने के बाद इस विषय पर लिखा क्योंकि पहले ही लिखा होता तो विज्ञप्तियों की बाढ़ आ जाती कि भई हम तो हिंदी सप्ताह मना रहे थे। अभी भी मौका है कह सकते हैं कि हम तो हिंदी पखवाड़ा मनाते है सो 15वें दिन ही विज्ञप्ति जारी करेंगे।
पर्यावरण की बात कुछ ऐसी है कि विगत पर्यावरण दिवस पर सभी संस्थाओं, विद्यालयों,गांवो से पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता दिखाते हुए अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए लेकिन विश्व के सबसे चर्चित संस्थान में पर्यावरण दिवस पर कोई कार्यक्रम नहीं किया गया और 4थे दिवस जब लगा कि हम तो विज्ञप्ति जारी करना भूल गए हैं। तत्काल पौधों के साथ हॉट पोज दिए गए, सुंदर वाक्य विन्यास के संग पर्यावरण संरक्षण की भीष्म प्रतिज्ञा के साथ विज्ञप्ति जारी की गई।
