पवन विजय : महाराणा की पीढ़ी.. 200 करोड़ मोदी सरकार ने व्यवस्था की

कोविड के समय मेरे पास फोन आता है कि डीएलएफ के आस पास लोहारों की एक बस्ती है जिनके पास खाना नही है, मैंने तुरंत यह सुनिश्चित किया कि कोई भूखा न रहे। कुछ दिन बाद उनकी बस्ती में गया तो एक बुजुर्ग ने मुझे जो बात बताई वह सुनकर मैंने उनके पैर छुए।

-पवन विजय

ये लोग मेवाड़ सेना के राजपूतों/लोहारों/सोनारों/कुम्हारों समेत तमाम कामगार जातियों के वंशज थे जो समय की मार सहते यायावर जनजातियों में बदल गए थे। जब महाराणा प्रताप और मुगलों का संघर्ष चल रहा था तो मेवाड़ का जन जन अपने नायक के पीछे खड़ा हो गया। तमाम राजघरानों ने राणा का साथ छोड़ दिया पर आम जनता उनके साथ डटी रही। राणा को मेवाड़ छोड़कर जंगल में रहना पड़ा। उनके साथ उनकी सेना के लोग भी जंगल चले गए। महाराणा की सेना के इन्हीं इस्पाती जवानों ने कसम खाई कि जब तक मेवाड़ और चित्तौड़ पर फिर से महाराणा प्रताप सिंह सिसौदिया का राज नहीं हो जाता तब तक वे अपने घर मेवाड़ नहीं लौटेंगे। बस तभी से यह घुमंतू जीवन में लगातार चल रहे हैं।

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दशकों बीते, शताब्दियां बीतीं पर इन्होंने प्रतिज्ञा नहीं तोड़ी। यही प्रतिज्ञा इनके समुदाय की पहचान बन गई है। वे गाड़ी में अपनी गृहस्थी जमाते हैं और निकल पड़ते हैं अनजान राह की ओर। राजस्थान के मेवाड़ से निकले गाड़िया लोहार अब देश के कई राज्यों तक पहुंच गए हैं। इनकी गाड़ी में लगी कील इनकी शपथ है।

यह जीवन निर्वाह के लिए लोहे का काम करते हैं। तवा कड़ाही हंसिया फावड़ा बेलचा बनाकर अपना जीवन काट रहे हैं। गाड़ी पर रहने के कारण उन्हें गाड़िया कहा जाने लगा है। विडंबना यह है कि जिन्होंने अकबर का साथ दिया था आज वह महल में हैं और जो महाराणा के साथ थे उनकी पीढियां आज भी दाने दाने इकट्ठा कर के जीवित हैं।

कोविड के बाद मैंने अपने विश्वविद्यालय में हुए कांफ्रेंस पर इन्हे लेकर एक शोध पत्र बनाया। ब्रिटिश सरकार ने इन्हे अपराधी जातियां घोषित कर रखा था। मोदी सरकार से पहले तक ये सरकारी उपेक्षा के शिकार रहे, पहली बार मोदी सरकार ने इनके आवास, पढ़ाई और अन्य जरूरतों के लिए दो सौ करोड़ रुपए की व्यवस्था की।

आज महाराणा की जयंती है। जो लोग महाराणा के कठिन व्रत, संघर्ष और तप को नही देख पाए वो लोग इन्हें देखें। जो लोग महाराणा को समझ नही पाए वो लोग इन्हें देखें। महाराणा के नाम पर अपनी कुर्सी, अपनी जाति को चमकाने वाले, आज भी मुगलों का साथ देने वाले उन्हे देखें और यदि मनुष्यता बाकी है तो कुछ लज्जित भी होवे।

महाराणा प्रताप शब्द के अर्थ को एक जाति में समेटने का अपराध करने वाले लोग इन यायावरों की गाड़ियों की कील देखें और उसके मानी जानें। महाराणा हिंदुत्व के शीश थे, सभी जातियों पंथों के गौरव थे।

महाराणा भगवान राम की परंपरा से हैं, उनका वनवास जनकल्याण के लिए था। भारत के गौरव और स्वाभिमान के प्रतीक महाराणा प्रताप को उनकी जन्म जयंती पर कृतज्ञ नमन है।

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