कौशल सिखौला : रोदी मीडिया की धज्जियां उड़ा रहा सोशल मीडिया.. मोदी के 10 वर्षो को सिरे से नकारने वाले सच्चे पत्रकार..!
इधर कुछ वर्षों में देश की पत्रकारिता भी विभाजित हो गई है । चुनावी वर्ष आते आते यह विभाजन काफी बढ़ गया है । प्रिंट मीडिया तो बहुत पीछे रह गया , सर्वत्र टीवी मीडिया का बोलबाला है । जिन लोगों ने ईर्ष्यावश टीवी और प्रिंट मीडिया को गोदी मीडिया कहना शुरू किया , सच कहें तो लोग उन्हें रोदी मीडिया कहने लगे हैं । ये रोदी मीडिया वाले सभी लोग यू ट्यूब चैनलों की मार्फत अच्छा कमा रहे हैं।
एक विशेष लॉबी अजित अंजुम , रवीश कुमार , अभिसार , पुण्य प्रसून , बरखा दत्त आदि पत्रकारों की है । ये पत्रकार कभी जिस टीवी मीडिया पर छाए हुए थे आज खुद उसी टीवी पत्रकारिता को गोदी पत्रकारिता कहने में जुटे हुए हैं । खैर ! यह उनके सीने की चीख है जो चैनलों से निकालने के साथ निकलनी शुरू हुई । यह दर्द अब कभी भी या एक बार भी थमने वाला नहीं हैं । इस रोदी मीडिया का एक ही लक्ष्य वर्तमान सत्ता को लगातार नकारना भर रह गया है।
दूसरी ओर टीवी चैनलों पर अंजना ओम कश्यप , रोमाना ईसारखान , चित्रा त्रिपाठी , सुधीर चौधरी , रूबिका लियाकत , अर्णब गोस्वामी , रजत शर्मा , श्वेता सिंह आदि पत्रकार हैं , जिनका तमाम टीवी चैनलों पर बोलबाला है । एक विशेष लॉबी इन पत्रकारों को गोदी मीडिया बताती है , जबकि रोदी वालों को असली पत्रकार मानती है । मतलब मोदी सरकार के दस वर्षों को सिरे से नकारें , एक भी काम की सराहना न करे , वही सच्चा पत्रकार , वही असली मीडिया । बाकी सब भक्त और गोदी।
अभी एक और श्रेणी बाकी है । वह है सोशल मीडिया । सोशल मीडिया आजकल सभी को पीछे छोड़ रहा है । सच कहें तो टीवी मीडिया और इंटरनेट मीडिया दोनों ही सोशल मीडिया के प्रभाव से डरे हुए हैं । सोशल मीडिया घर घर में घुस चुका है , जन जन में प्रवेश कर चुका है । कलम दवात की जगह उंगलियों और अंगूठों ने ले ली है । यह मीडिया “चिर स्वतन्त्र नहीं सिर पर कोऊ” की नीतियों पर काम कर रहा है । प्रिंट और टीवी मीडिया से इतर सोशल मीडिया ने बड़े बड़े राजनेताओं को हिला डाला है ।
सोशल मीडिया टीवी पत्रकारिता पर भी सवाल खड़े करता है और उन छद्म पत्रकारों की भी धज्जियां उड़ाता है जो यू ट्यूब और इंस्टाग्राम आदि पर अपने एजेंडे चला रहे हैं , विदेशी ताकतों के हाथों में खेल रहे हैं । गौर कीजिए आम जनता और आम मतदाता सोशल मीडिया के माध्यम से राजनीति का पर्दाफाश करने में जुटा हुआ है । घर घर मीडिया के प्रभाव से राजनीति भी अब डरी हुई है ।
पिछले दो लोकसभा चुनाव में जनता ने राजनीति को अपनी अपार शक्ति का दर्शन कराया है । उसी का प्रभाव है कि अब सभी दल सोशल मीडिया का इस्तेमाल सुनियोजित ढंग से अपने एजेंडे चलाने के लिए कर रहे हैं । इसके बावजूद जनता की अपनी सोच का दायरा अब कितना बड़ा हो चुका है , एक बार फिर पता लगाने का समय नजदीक आ गया है । एक जमाना था जब ” मौत मुकाबिल हो तो अखबार निकालो ” की सीख दी जाती है । आज हम कहते हैं ” परदे पर उंगलियां चलाइए , सार्थक विचारों का संसार बसाइए ” । जनतंत्र को जन जन की सख्त जरूरत है ।