‘आर्य” पर बाबासाहेब के विचार

भारतीय राजनीति की विडंबना है कि राजनीति ने व्यवस्था परिवर्तन के संघर्ष को जाति के दायरे में समेट कर रख दिया। विशेष रूप से डॉ. अम्बेडकर के योगदान को एक तरह से कम करके आंकना एक बड़ा षड्यंत्र है। डॉ. अम्बेडकर जिस व्यवस्था परिवर्तन की बात करते थे, वह सामंतवाद, पूंजीवाद, छुआछूत और पुरुषप्रधान समाज के विरूद्ध संघर्ष करने का आह्वान करता है।
डॉ. अम्बेडकर को लेकर हमारे समाज में कई तरह के भ्रम फैलाए जाते हैं, जबकि उनका देश से संबंधित कई विषयों पर स्पष्ट मत है। राष्ट्रवाद की अवधारणा उनके रग-रग में थी।
आर्यों पर डॉ. अम्बेडकर का मत स्पष्ट रूप से भारतीय जनमानस के सामने नहीं लाया गया।
‘डॉक्टर अम्बेडकर राइटिंग एंड स्पीचेस’ खंड – 7 में बाबासाहेब ने माना है कि आर्यो का मूलस्थान (भारत से बाहर) का सिद्धांत वैदिक साहित्य से मेल नहीं खाता। वेदों में गंगा, यमुना, सरस्वती के प्रति आत्मीय भाव है। कोई विदेशी इस तरह नदी के प्रति आत्मस्नेह संबोधन नहीं कर सकता।
उन्होंने अपनी पुस्तक ‘Who were shudras’ में पृष्ठ संख्या-80 में स्पष्ट रूप से कहा है कि ‘शूद्र’ दरअसल क्षत्रिय थे और वे लोग भी आर्यो के समाज के ही अंग थे। उन्होंने विदेशी लेखकों की आर्यो के बाहर से आकर यहां पर बसने सम्बंधित मान्यताओं का खंडन किया है।

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