चंदर मोहन अग्रवाल : अमेरिका और अमेरिका का डॉलर बर्बाद होने के कगार पर है?
ना जाने मेरे को यह क्यों लग रहा है कि अमेरिका भी उसी तरह अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार रहा है जिस तरह से 2 वर्ष पहले चीन ने अहंकार में आकर अपने पैर पर मारी थी।
जब चीन में भारतीय सरहदों का अतिक्रमण करना शुरू किया तो भारत ने भी चीनी आर्थिक क्रियाकलापों पर प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए। सबसे पहले चीनी एप्स पर चोट करने के बाद धीरे-धीरे भारत ने चीन की मैन्युफैक्चरिंग शक्ति पर सेंध लगानी शुरू कर दी और चीन में स्थित मैन्युफैक्चरिंग कर रहे वैश्विक प्रतिष्ठानों को भारत की तरफ मुड़ने के लिए आमंत्रित किया। फॉक्सकॉन, सैमसंग, आईफोन, और इसी तरह के हजारों कंप्यूटर, कंप्यूटर पार्ट्स, इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल सामान बनाने वाली कंपनियों को भारत में मैन्युफैक्चरिंग करने के लिए पीएलआई स्कीम के अंदर न्योता दे दिया और कहने की जरूरत नहीं इन हजारों कंपनियों ने अपना चीन की तरफ से मुंह मोड़कर भारत को अपनाना शुरू कर दिया और भारत में इन कंपनियों ने अपनी इकाइयां स्थापित करके प्रोडक्शन भी चालू कर दिया। जिसका असर भारतीय और चीन की अर्थव्यवस्था पर अगले आने वाले 2-4 वर्षों में नजर आना चालू हो जाएगा।
अब आते हैं अमेरिका पर
अमेरिका ने भी ठीक उसी तरह रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है। जैसे ही अमेरिका ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए तो रूस, अमेरिका की स्विफ्ट सिस्टम से बाहर हो गया और उसके लगभग 500 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा का भंडार अमेरिका ने जप्त कर लिया। यह देखकर विश्व के अनेक अमीर देश सकते में आ गये। उन्हें डर लगने लगा कि अमेरिका उनके द्वारा अर्जित किया हुआ फॉरेक्स रिजर्व फंड कभी भी जप्त कर सकता है और ऐसे में उनका देश भी एक ही दिन में ओंधे मुंह नीचे जमीन पर आ गिरेगा जैसा कि वेनेजुएला, क्यूबा, ईरान, नॉर्थ कोरिया और मिडल ईस्ट के कई देशों के साथ हो चुका है या हो रहा है ।
ऐसे में भारत ने आगे आकर रूस, जापान, यूएई, सऊदी अरेबिया, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, सिंगापुर, फ्रांस आदि विभिन्न देशों के साथ रुपए में व्यापार करने की पेशकश की जिसे धीरे-धीरे दुनिया के 50 से भी ज्यादा देशों ने सहमति जता दी। 50 से भी ज्यादा देशों के साथ भारतीय रिजर्व बैंक ने nostro and vostro अकाउंट खोलना शुरू भी कर दिया है। भारत का यूपीआई भी इस समय कई देशों में प्रचलन में आना शुरू हो गया है यानी कि डॉलर और पेट्रोडॉलर दोनों के साम्राज्य पर विश्व के कुछ चुनिंदा देशों ने प्रहार करना शुरू कर दिया है। अगर अमेरिका ने अपनी दमनकारी और दादागिरी वाली इमेज ना बदली तो बहुत जल्द अमेरिका और खुद अमेरिकी अर्थव्यवस्था जमीन सूंगती नजर आएगी।
वैसे भी अमेरिका ने पहले ही रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते यूरोप के लगभग सभी देशों को बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान पहुंचाया है जिसके कारण इन देशों जी डी पी बुरी तरहा से त्रस्त है और इन देशों की जनता पहले से ही अमेरिका से खफा है।
बस अब डॉलर पर आखिरी चोट ही बाकी है और इस जंग की अगुवाई भारत कर रहा है। हो सकता है अमेरिका कभी भी भारत पर भी प्रतिबंध लगाने की सोचे लेकिन ऐसा होने पर भारत तत्काल बहु प्रतीक्षित ब्रिक्स करेंसी का अनुमोदन कर देगा और यह बात अमेरिका भी अच्छे से जानता है शायद इसीलिए भारत को अभी तक छेड़ने का साहस नहीं जुटा पा रहा है।
हालांकि मेरे द्वारा डॉलर के नेस्तनाबूद होने का यह आकलन समय से बहुत पहले किया गया है पर फिर भी दोस्तों आपका क्या ख्याल है इस बारे में, क्या अमेरिका और अमेरिका का डॉलर बर्बाद होने के कगार पर है?