राजीव मिश्रा : चुनाव 2024… लेकिन विपक्ष इस पिच पर है ही नहीं. वह किसी और पिच पर कोई और खेल खेलने की तैयारी में…
2024 के चुनावों के परिणामों के बारे में कोई शर्त नहीं लगाऊंगा. कोई नहीं लगा रहा… परिणाम पता हैं.
पर हम जिस परिणाम की बात कर रहे हैं वह है लोकसभा में भाजपा के सीटों की संख्या. भाजपा इस पिच पर जम कर प्रैक्टिस कर रही है और एक अच्छा स्कोर देने की तैयारी में है.
लेकिन विपक्ष इस पिच पर है ही नहीं. वह किसी और पिच पर कोई और खेल खेलने की तैयारी कर रहा है. उसकी नजर किसी और ही परिणाम पर है.
विपक्ष के लिए ये चुनाव सबसे पहले अव्यवस्था फैलाने का एक अवसर हैं. चुनाव जीतने के लिए आपको मेजोरिटी चाहिए होता है, लेकिन अव्यवस्था फैलाने के लिए कम संख्या में हिंसक काफी है… और विपक्ष के पास यह है.
विपक्ष का दूसरा सबसे बड़ा गोल है इस चुनाव के मुद्दे डिक्टेट करना. वे सरकार की उपलब्धियों पर सवाल खड़े करने और उसकी विफलताओं को रेखांकित करने की स्थिति में नहीं हैं… वह मुद्दा ही नहीं है. वे अधिक से अधिक विभाजनकारी मुद्दे उठाने का प्रयास कर रहे हैं… जाति, भाषा, क्षेत्रीयता का मुद्दा… अलगाववादी राजनीति का मुद्दा.
ये ऐसे मुद्दे हैं जिनपर जीतना जरूरी नहीं होता, सिर्फ उन्हें उठा देने भर से उनका काम चल जाएगा. अलगाववादी मुद्दों पर आपको मेजॉरिटी नहीं चाहिए होती है. अलगाववाद मेजॉरिटी का मुद्दा नहीं होता, वह हमेशा एक छोटी सी माइनॉरिटी का मुद्दा होता है. अगर आपने 10 या 20% लोगों को भी कन्विंस कर लिया तो आपका काम बन जाता है. आपने जितने भी लोगों को समाज की मुख्य धारा से अलग कर लिया, वही आपकी सफलता है.
तो इन चुनावों में भाजपा के प्रचारकों का काम और महत्व का हो जाता है. आपको सिर्फ अपने प्रतिद्वंद्वी को हराना भर नहीं हैं, आपको उनके मुद्दों को हराना है. आपको विमर्श का विषय डिक्टेट करना है.
जो भाजपा के वोटर हैं वे मेजॉरिटी हैं. वे चुनाव जिता देंगे. लेकिन वह इस चुनाव में हमारा मुख्य टारगेट ऑडिएंस नहीं हैं. जो निरपेक्ष हैं, जिन्हें किसी के जीतने हारने से फर्क नहीं पड़ता, जिन्हें लगता है कि किसी की सरकार आए, हमारा तो ऐसा ही चलता रहेगा, जो चुनावों को एक असुविधा गिनते हैं, या फिर छुट्टी का एक और दिन… जो इस विमर्श में कहीं नहीं हैं… उन्हें विमर्श में लाना है. यह चुनाव पहली बार प्रचार की नहीं, विचार की लड़ाई बनेगी.
