भारत का कड़ा संदेश.. संयुक्त राष्ट्र सहित इनको फंडिंग में भारी कटौती..

भारत ने कठोर कदम उठाते हुए यूएनएससी की फंडिंग में भारी कटौती कर दी है।

संसद में पेश किए गए 2024-25 के अंतरिम बजट में, भारत की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 2023-24 के संशोधित अनुमान की तुलना में संयुक्त राष्ट्र सहित अलग अलग अंतरराष्ट्रीय निकायों के लिए फंडिंग में 35.16 प्रतिशत की कटौती का प्रस्ताव रखा था।

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2024-2025 के लिए, अंतरिम बजट में बिम्सटेक, सार्क और संयुक्त राष्ट्र सहित अंतरराष्ट्रीय निकायों पर खर्च करने के लिए विदेश मंत्रालय के लिए 558.12 करोड़ रुपये का अनुमान लगाया गया था।

भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक वरिष्ठ सदस्य ने भी भारत से विश्व स्तर पर शांति मिशनों से हटने का फैसला किया है, क्योंकि, भारत लगातार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए प्रयास कर रहा है, लेकिन परमानेंट5 सदस्यों, जो यूएनएससी के स्थायी सदस्य हैं, वे बार बार अड़ंगा लगा देते हैं, जिनमें चीन और जर्मनी प्रमुख हैं।

ग्लोबल सॉफ्टवेयर एज अ सर्विस (सास) की दिग्गज कंपनी ज़ोहो कॉर्पोरेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रीधर वेम्बू ने 15 फरवरी को ट्वीट किया कि, संयुक्त राष्ट्र की फंडिंग को कम करने का भारत का कदम एक स्वागत योग्य कदम है और उन्होंने भारत से संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशन का हिस्सा न बनने की अपील की है।

उन्होंने यह भी कहा, कि जब संयुक्त राष्ट्र की शक्तियां दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश को मान्यता नहीं देती हैं तो भारतीयों को इस निकाय के साथ अपना समय और पैसा बर्बाद नहीं करना चाहिए।

आपको बता दें, कि श्रीधर वेम्बू को 2021 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया गया था और फरवरी 2021 में प्रतिष्ठित राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) में नियुक्त किया गया था। NSAB राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के तहत एक सलाहकार निकाय है और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल को अपनी रिपोर्ट करता है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के 78वें सत्र के अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस ने जनवरी 2024 में अपनी भारत यात्रा के दौरान, यूएनएससी के स्थायी सदस्य होने के लिए दक्षिण एशियाई दिग्गज की स्थिति और पात्रता को स्वीकार किया था, क्योंकि, सबसे ज्यादा आबादी वाला देश होने के बाद भी भारत इसका स्थाई सदस्य नहीं है।

भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान, ये चारों मिलकर जी4 का निर्माण करते हैं और लगातार यूएनएससी में तत्काल सुधारों की मांग करते आए हैं, ताकि मौजूदा जियोपॉलिटिकल हकीकतों का समाधान किया जा सके। इसके बावजूद भी इन देशों को यूएनएससी में स्थायी जगह नहीं मिल पा रही है। ये G4 देश, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीटों के लिए एक दूसरे के दावों का समर्थन करते हैं, जो अभी सिर्फ पांच देशों अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस और चीन को हासिल है।

भारत ने पिछले 70 सालों में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में 2 लाख से ज्यादा सैन्य और पुलिस कर्मियों का योगदान दिया है। 30 नवंबर 2023 तक, भारत 6073 कर्मियों के साथ वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र शांति प्रयासों में तीसरा सबसे बड़ा सैन्य योगदानकर्ता है। केवल नेपाल, 6247 कर्मियों के साथ, और बांग्लादेश, 6197 सैनिकों के साथ, भारत से ज्यादा संख्या में सैन्य योगदान दे रहे हैं। जबकि पाकिस्तान 4164 कर्मियों के साथ पांचवें स्थान पर है, वहीं, चीन के 2267 सैनिक, फ्रांस के 587 सैनिक यूएन शांति सैनिकों में शामिल हैं।

संयुक्त राष्ट्र के तहत कुल 66,839 शांति सैनिकों में से भारत का कार्मिक योगदान लगभग 10 प्रतिशत है, फिर भी भारत स्थाई सदस्य नहीं है, लिहाजा अब भारत ने सख्त रूख अपनान शुरू किया है। जिसका असर संयुक्त राष्ट्र के सभी संगठनों पर पड़ना तय है।

-साभार

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