सुरेंद्र किशोर : मोदी सरकार के 10 वर्षों में प्रत्यक्ष कर संग्रह तीन गुना होने के मायने

‘‘मोदी सरकार के 10 वर्षों में प्रत्यक्ष कर
संग्रह तीन गुना होने की उम्मीद’’
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आज के दैनिक ‘प्रभात खबर’ में इसी शीर्षक के अंतर्गत नई दिल्ली से एक खबर छपी है।
खबर एजेंसी की है,पर किसी अन्य अखबार में मैं नहीं देख पा रहा हूं।

खबर के अनुसार प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के 10 वर्षों के कार्यकाल में व्यक्तिगत आयकर तथा काॅरपोरेट कर संग्रह में बड़ी वृद्धि हुई है।
चालू वित्तीय वर्ष के अंत में इसके 19 लाख करोड़ रुपए से अधिक होने की संभावना है।
वित्त वर्ष 2013-14 में 6.38 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 2022-23 में 16.61 लाख करोड़ रुपए हो गया था।
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जानकार लोग बताते हैं कि आय बढ़ेगी तो विकास,कल्याण और आंतरिक -बाह्य सुरक्षा के काम बेहतर होंगे।
काम होंगे तो जनता खुश होगी।
जनता खुश होगी तो सरकार चुनाव जीतती जाएगी।
यानी, मोदी धार्मिक भावना उभार कर वोट नहीें ले रहे हैं बल्कि ठोस आर्थिक काम करके वोट ले रहे हैं।
याद रहे कि टैक्स चोरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई से राजस्व बढ़ता है।
वह कार्रवाई भरसक तेजी से बेलाग लपेट हो रही है।
उस कार्रवाई से दुखी कौन-कौन लोग हो रहे हैं ?
कौन लोग ‘‘पिता-पुकार’’ कर रहे हैं ?
यह सब यहां बताने की जरूरत नहीं है।
सब लोग जान रहे हैं।
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कहते हैं कि प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल में करीब 20 लाख करोड़ रुपए के घोटाले हुए।
नीतीश कुमार जैसे इक्के -दुक्के नेताओं को छोड़कर गैर भाजपा दलों के अधिकतर शीर्ष नेतागण घोटालों के गंभीर आरोपों में कोर्ट व जांच एजेंसियों के चक्कर लगा रहे हैं।
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भ्रष्टाचार के आरोप में आने वाले हफ्तों में अनेक नेता लोग जेल जा सकते हैं।
भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने और सजा होने पर वोट नहीं बढ़ते।हाल का इतिहास इसका सबूत है।
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उससे पहले सन 1985 में तब के प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि हम दिल्ली से 100 पैसे भेजते हैं, किंतु गांवों तक उसमें से सिर्फ 15 पैसे ही पहुंच पाते हैं।
(यह सब एक दिन में नहीं हुआ था।आजादी के तत्काल बाद से ही लूट शुरू हो गयी थी।समय के साथ लूट बढ़ती गयी।
100 पैसे के घिसकर 15 पैसे होने में समय तो लगता ही है।
ध्यान में लाइए कि उस बीच हमारे देश को कौन-कौन ‘महारथि’ चला रहे थे ! किस तरह से चला रहे थे !
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एक तरफ घोटालों पर नियंत्रण करके कोई सरकार अपनी आय तीन गुनी बढ़ा लेती है।
दूसरी तरफ कोई सरकार 100 पैसे में से 85 पैसे छोटे-बड़े घोटालों को जाने-अनजाने समर्पित कर देती है।
जनता इन में से किसे पसंद करेगी ?
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कल्पना कीजिए कि एक किसान अपने पूर्वज की सौ एकड़ जमीन में से 85 एकड़ बेच कर ऐय्याशी कर लेता है।
दूसरा किसान अपनी मेहनत व उद्यम से कमा कर और अधिक जमीन खरीदता है और अपनी पुश्तैनी जमीन की अपेक्षा उससे तीन गुनी जमीन का मालिक बन जाता है।
लोगबाग किसे सफल किसान कहेंगे ?
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पुनश्चः
कई दशक पहले मैं पटना सचिवालय में वाणिज्य कर विभाग के मंत्री के पास बैठा था।
मैंने पूछा कि आपकी सरकार को इस मद में सिर्फ करीब 2 हजार करोड़ रुपए ही मिलते हैं जबकि आंध्र प्रदेश सरकार को 6 हजार करोड़ रुपए मिलते हैं।इतना अंतर क्यों ?
उस मंत्री ने ,जो मेरे पुराने परिचित रहे हैं,कहा कि यदि हमारा यह सचिवालय ठीक हो जाए तो एक हजार करोड़ रुपए की आय अगले साल से ही बढ़ जाएगी।

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