हर्षिल खैरनार : विपक्षी दलों ने माना संगठन के तौर पर भी भाजपा बाकी दलों से बहुत ज़्यादा अनुशासित और मज़बूत

सौरव गांगुली से पहले भारतीय क्रिकेट टीम उतनी आक्रामक नहीं हुआ करती थी, कई बारी जीतते जीतते मैच हार जाती थी, ऑस्ट्रेलियाई टीम के स्लेजिंग हथियार की काट सबसे पहले गांगुली ने ही निकाली थी। उन्होंने ही भारतीय टीम को आँख में आँख डालकर खेलना और जवाब देना सिखाया था।

सौरव गांगुली की आक्रामकता को धोनी ने भी आगे बढ़ाया और उन्होंने भारतीय टीम को कई लगभग हारे हुए मैच भी जिता दिए थे।

अभी पिछले माह ही क्रिकेट विश्वकप का समापन हुआ है, एक फाइनल को छोड़ दिया जाये तो पूरे टूर्नामेंट में भारतीय टीम एकतरफा मैच जीती थी। हर खिलाड़ी अपना अपना दायित्व बखूबी निभा रहा था, रोहित शर्मा कप्तान थे लेकिन वो अपने हर फैसले में विराट कोहली और के एल राहुल को अवश्य शामिल करते थे।

तीन मुख्यमंत्रियों के चयन से हर कोई अचंभित और विस्मित है, भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने तीन ऐसे लोगों को मुख्यमंत्री बनाया है जिनके बारे में किसी ने सोचा तक नहीं था, यहाँ तक कि मुख्यमंत्री बनने वाले इन तीनों लोगों ने ही कभी कल्पना नहीं की होगी कि वो मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं।

लेकिन यही भाजपा जैसे संगठन की कार्यशैली है, किसका ट्रैक रिकॉर्ड कब चेक हो जायेगा और कब वो उच्च पद को हासिल कर लेगा कोई नहीं जानता है लेकिन इन तीन मुख्यमंत्रियों के चयन ने भाजपा के सभी छोटे बड़े कार्यकर्त्ताओं, नेताओं को साफ संदेश दे दिया है कि भाजपा में कोई भी व्यक्ति मुख्यमंत्री या कोई और मंत्रीपद पा सकता है बस वो निष्ठापूर्वक पार्टी के प्रति अपना योगदान देता रहे।

पिछले दिनों कई चर्चित सोशल मीडिया चैनल्स, ट्विटर हैंडल्स विशेषकर वो जो भाजपा के मुखर विरोधी रहे हैं उन्होंने भी मान लिया कि एक संगठन के तौर पर भी भाजपा बाकी दलों से बहुत ज़्यादा अनुशासित और मज़बूत है।

हमने पहले भी कई अवसरों पर देखा है जब कांग्रेस या दूसरे दलों को अपने विधायकों को किसी फाइव स्टार होटल में कैद करके रखना पड़ता है, यहाँ तक कि उनके फोन भी जप्त कर लिये जाते हैं वहीं भाजपा के विधायक खुलेआम घूमते रहते हैं।

क्षेत्रीय दलों की बात करना इस समय ज़रूरी नहीं है क्योंकि वो एक राज्य तक ही सीमित रहती हैं और उनमें मुख्यमंत्री की कुर्सी परिवार की बपौती है वहाँ योग्यता कोई मायने नहीं रखती है।

जब नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया था तब भी वो चौंकाने वाला निर्णय था, जब शिवराजसिंह चौहान को मप्र का मुख्यमंत्री बनाया गया तब वो भी एक सामान्य कार्यकर्त्ता ही थे।

गुटबाजी का सबसे ज़्यादा शिकार कांग्रेस ही रही है और कांग्रेस में उच्च पद उसी को मिलता है जो गाँधी परिवार का नज़दीकी है या जिसके नंबर गाँधी परिवार की नज़र में ज़्यादा हैं।

किसी भी कांग्रेस प्रवक्ता को टीवी डिबेट्स में देख लीजिये बेसिरपैर की बात करते हुए कुतर्क करते हुए, चीखते चिल्लाते हुए उसकी कोशिश यही रहती है कि वो कैसे गाँधी परिवार की गुड बुक्स में शामिल हो जाये।

कांग्रेस में आलाकमान का मतलब ही गाँधी परिवार है वहीं भाजपा में ये शीर्ष नेतृत्व कहलाता और शीर्ष नेतृत्व हमेशा वही करता आया है जो देश, राज्य और पार्टी के हित में होता है। अपनी गलतियों से सबक सीखने और उसे सही करने में भाजपा जैसा कोई अन्य दल नहीं है।

जब नरेंद्र मोदी को भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने 2013 में प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित किया उस समय भी पार्टी में लालकृष्ण आडवाणी जी, स्व. अरुण जेटली जी, स्व. सुषमा स्वराज जी, राजनाथ सिंह जी जैसे अनेक वरिष्ठ नेता थे लेकिन इन सबसे ऊपर उठकर पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया और मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से तो शीर्ष नेतृत्व और भी ज़्यादा अनुशासित और मज़बूत ही हुआ है।

मीडिया में जिन लोगों के नाम उछाले जाते हैं या जिन्हें कुर्सी की दौड़ में बताया जाता है उन सबसे हटकर एक नया नाम सामने आता है और वो नाम अपने कार्यों से अपनी पहचान बना ले इसका उसे पूरा पूरा अवसर दिया जाता है।

विपक्षी अक्सर आरोप लगाते हैं कि आज देश और पार्टी को केवल दो ही लोग चला रहे हैं लेकिन ये भी सत्य है कि ये दो लोग भी स्थायी नहीं है, एक दिन आएगा जब ये ज़िम्मेदारी भी कोई और उठाएगा जैसे इनके पहले भी दूसरे लोग उठाते आए हैं और वो भी इसी तरह से सामान्य कार्यकर्त्ताओं को बड़े अवसर प्रदान करते आए हैं।

भाजपा भी एक टीम की तरह ही आजतक चुनाव लड़ती आई है, हार जीत अपनी जगह है। मोदी शाह के पहले भाजपा उतनी आक्रामक नहीं थी लेकिन मोदी का विज़न और मिशन अलग है उन्हें भारत को विश्व का सिरमौर बनाना है और वो ये भी जानते हैं कि अगर पार्टी को लंबे समय तक सत्ता में रहना है तो नए चेहरों को अवसर देना होंगे, नई पीढ़ी को सामने लाना होगा।

इस मोदी सरकार और शीर्ष नेतृत्व की एक और विशेषता है कि हर फैसले के पीछे इतनी गोपनीयता बरती जाती है कि किसी को कानोंकान खबर नहीं होती है कि सरकार या शीर्ष नेतृत्व क्या करने जा रहा है। सारे विश्वसनीय सूत्र (?) यहाँ अविश्वसनीय होकर रह जाते हैं।

मोदी ने एक बात ज़रूर सबके लिये तय कर दी है कि अगर ज़िम्मेदारी दी है तो काम करना पड़ेगा, रात दिन खपना पड़ेगा, जनता का सेवक बनना होगा। जनता की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को मोदी ने इतना ऊपर उठा दिया है कि अब काम नहीं करने पर जनता किसी भी नेता, पार्टी को घर बिठा देगी।

अब नज़रें 2024 के आम चुनावों के ऊपर है, अपने काम के दम और भरोसे पर मोदी अभी से खम्भ ठोंक रहे हैं कि हम तीसरी टर्म में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहे हैं।

विपक्ष रात दिन केवल मोदी को गाली देने और नीचा दिखाने में लगा है वो अपनी लकीर बड़ी करने की बजाय उसे छोटी करता चला जा रहा और मोदी की लकीर अपने आप बड़ी होती चली जा रही है।

गाली मोदी का गहना है, जिसे वो सहर्ष पहनकर रात दिन केवल काम करते हैं और विपक्ष यहीं से जनता की नज़रों में गिरता चला जा रहा है गोयाकि विपक्ष के पास मोदी की कोई काट अब है भी नहीं और उसने केवल गालियों के ज़रिये अपनी भड़ास निकालने की सोच रखी है।

2024 में प्रभु श्रीराम के मंदिर का लोकार्पण होने जा रहा है और खेल तो कहीं ना कहीं प्रभु श्रीराम ही खेल रहे हैं, जिन लोगों ने प्रभु को वर्षों तक तम्बू में रखा प्रभु अब उन्हें तम्बू में रख रहे हैं और जिन्होंने उनके मंदिर निर्माण का मार्ग साफ किया, भव्य मंदिर निर्माण करवा रहे हैं उन्हें देश और जनता की सेवा का अवसर दिए जा रहे हैं।

आखिर होई वही जो राम रचि राखा 🚩

साभार – हर्षिल खैरनार

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