राजीव मिश्रा : ..लेकिन किसी एक दिन अगर चमत्कार छुट्टी पर हो तो सौ पचास का टिकट आसानी से कट जाएगा

वर्ष 2008 था. पुरी जगन्नाथ मंदिर जाने का अवसर मिला था. संयोग से पूर्णिमा की शाम थी. तो मंदिर में विशेष भीड़ थी.
मन्दिर के मुख्य भाग में प्रवेश करने के लिए हजारों की भीड़ थी. इतनी भीड़ कि देख कर ही पल्लवी की हिम्मत छूट गई. उसे यूँ ही भीड़ और तंग जगह में क्लॉसट्रोफोबिया होता है. उसने बाहर से ही प्रणाम कर लिया.

मुझे पता नहीं क्या भाव जागा, मैंने अंदर जाकर दर्शन करने की हिम्मत की… आखिर इतने हजार लोग तो जा रहे हैं. जय जगन्नाथ बोलती भीड़ में मै भी घुस गया. इतनी भीड़ और धक्का धुक्की में धीरे धीरे रेंगते हुए लगभग पैंतालीस मिनट में प्रभु जगन्नाथ जी के सामने पहुंचा. आधे सेकंड के लिए भी दर्शन नहीं हुए, पुजारी ने धक्का मार कर आगे बढ़ाया और बाहर निकले.

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बाहर निकल कर खुद मुझे भी समझ में नहीं आया, इतनी भीड़ में मै घुसा कैसे और घुसा क्यों? इतनी तंग जगह में इतने सारे लोग एक साथ दर्शन के लिए घुसते हैं, और प्रेम से दर्शन करके निकल आते हैं, कोई भगदड़ नहीं मचती, कोई दुर्घटना नहीं होती यह एक चमत्कार ही है. लेकिन किसी एक दिन अगर चमत्कार छुट्टी पर हो तो सौ पचास का टिकट आसानी से कट जाएगा.

उस दिन को याद करता हूँ तो एक तरफ यह सोच कर रोमांच सा आता है कि ऐसी एक स्थिति में खुद को जानबूझ कर डाला जिसमें सोच समझ कर कभी नहीं डालता. और हजारों लाखों लोग हर रोज वही करते हैं. बिना किसी भय के… यह आस्था की शक्ति है कि वह भय हर लेती है.

लेकिन आस्था भय के साथ साथ बुद्धि के अन्य कई फंक्शन भी हर लेती है. और हमारे देश को एक ऐसी व्यवस्था में बदल देती है जो चमत्कारों के भरोसे चल रहा है.

-श्री राजीव मिश्रा जी के पोस्ट से साभार।

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