NRI अमित सिंघल : नैरेटिव माइंड वाले इसे कभी नहीं समझ सकते…
नैरेटिव वाली दुनिया में रहने वाले लोग इस मनोवैज्ञानिक सशक्तिकरण को कभी नहीं समझ पाएंगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने 4 नवंबर को हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट में कहा कि अनेक तरह के मानसिक बंधनों में बंधा हुआ भारत उस स्पीड से आगे नहीं बढ़ पाया, जितना उसका सामर्थ्य था। 2014 के बाद से ही भारत, लगातार इन बंधनों को तोड़ने के लिए मेहनत कर रहा है।
इसी माइंडसेट की वजह से हमें सुनने को मिलता था कि इस देश का कुछ हो ही नहीं सकता…इस देश में कुछ बदल ही नहीं सकता…अपने यहां सब ऐसे ही चलता है….अगर लेट आए तो बड़े गर्व से कहते थे – Indian Time। करप्शन का, अरे उसका तो कुछ हो ही नहीं सकता है, जीना सीख लो…कोई चीज सरकार ने बनाई है तो उसकी क्वालिटी खराब ही होगी ही होगी, ये तो सरकारी है।
कुछ लोग कहते थे कि लाल किले से पीएम का स्वच्छता की बात करना, टॉयलेट की बात करना, इस पद की गरिमा के खिलाफ है। सैनिटरी पैड, ऐसा शब्द था जिसे लोग, खासकर पुरुष सामान्य बोलचाल की भाषा में भी बोलने से बचते थे। मैंने लालकिले से ये विषय उठाए। और वहीं से माइंडसेट बदलने की शुरुआत हुई। आज स्वच्छता एक जन-आंदोलन बन गया है।
खादी को कोई पूछता तक नहीं था। हम जैसे नेताओं का विषय रह गया था, वो भी चुनाव में जरा लंबा कुर्ता पहनकर पहुंच जाना यहीं हो गया था। लेकिन अब पिछले 10 साल में खादी की बिक्री तीन गुना से ज्यादा बढ़ गई है।
हमारे सामने एक बहुत बड़ा और Real Barrier रहा है- गरीबी का। गरीबी को नारे से नहीं, नीति और नीयत से ही हराया जा सकता है। पहले की सरकारों की जो सोच रही उसने देश के गरीब को सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे नहीं बढ़ने दिया। मैं मानता हूं, गरीब में खुद इतना सामर्थ्य होता है कि वो गरीबी से लड़ सके और उस लड़ाई में जीत सके। हमें उसे सपोर्ट करना होता है, उसे मूलभूत सुविधाएं देनी होती हैं, उसे Empower करना होता है। हमने ना सिर्फ लोगों का जीवन बदला, बल्कि गरीबों को गरीबी से उबरने में मदद भी की। परिणामस्वरूप 5 वर्षों में 13 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी से बाहर आए हैं। यानि 13 करोड़ लोगों ने अपनी गरीबी के Barrier को तोड़ा और देश के Neo Middle Class में शामिल हुए हैं।
जब हम जनधन बैंक अकाउंट्स को लेकर आए थे, तो कुछ एक्सपर्ट्स ने कहा था कि ये अकाउंट खोलना संसाधनों की बर्बादी है, गरीब इनमें एक पैसा भी नहीं डालेगा। बात केवल पैसे की नहीं थी। बात थी मेंटल बैरियर तोड़ने की, माइंडसेट बदलने की। ये लोग गरीब के उस अभिमान को, उस स्वाभिमान को, कभी समझ ही नहीं पाए, जो जनधन योजना ने उस गरीब में जगाया। आज वो बड़े अभिमान से अपनी जेब में से रूपे कार्ड निकालता है, रूपे कार्ड का इस्तेमाल करता है।
पहले बड़े लोग जब बटवा निकालता था तो चाहता था कि वो देखें कि उसके बटवे में 15-20 कार्ड हैं, कार्ड दिखाना भी फैशन था, कार्ड की संख्या status विषय था। मोदी ने उसको गरीब की जेब में डालकर के रख दिया। मेंटल बैरियर ऐसे तोड़े जाते हैं।
भारत के विकास के सामने एक बहुत बड़ा Real Barrier रहा है, परिवारवाद और भाई-भतीजावाद का। वही आदमी आसानी से आगे बढ़ पाता था जो किसी खास परिवार से जुड़ा हो या फिर किसी शक्तिशाली आदमी को जानता हो। लेकिन कुछ सालों में देश का सामान्य नागरिक अब Empowered और Encouraged feel करने लगा है। अब उसे इसकी चिंता नहीं होती कि उसे किसी ताकतवर आदमी के यहां चक्कर लगाने होंगे, उसकी सहायता लेनी होगी।
हमारे देश में कुछ बाधाएं, कुछ समस्याएं ऐसी भी रही जिन्हें पहले की सरकारों द्वारा अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए बड़ा बना दिया था। उदाहरण के लिए, जब भी कोई आर्टिकल 370 को जम्मू-कश्मीर से हटाने की बात करता था तो एक मनोवैज्ञानिक दबाव बना दिया था कि अगर ऐसा हुआ तो आसमान जमीन पर आ जाएगा। लेकिन 370 की समाप्ति ने उस पूरे इलाके में समृद्धि और शांति और विकास के नए रास्ते खोल दिए हैं। आज वहां Terrorism का अंत हो रहा है, Tourism लगातार बढ़ रहा है।
पहले आतंकी हमला होता था, तो हमारी सरकारें दुनिया से अपील करती थीं कि हमारी मदद करिए, आतंकियों को रोकिए। हमारी सरकार में आतंकी हमला हुआ, तो हमले का जिम्मेदार देश दुनिया भर से खुद को बचाने के लिए गुहार लगाता है। भारत के एक्शन ने दुनिया का माइंडसेट बदला।