स्थायित्व, सम्मान..गधे से सीखिए

शारदा विहार में अचानक मेरा ध्यान शोर के साथ भीड़-भाड़ को नजरअंदाज करते हुए रेत से भरे हुए भागते हुए लगभग लोगों को रौंद देने के अंदाज में चिंघाड़ मारते हुए ट्रैक्टर पर पड़ी। तब याद आया की इस शहर में कभी गधे भी गली-गली बालू और अन्य भारी सामान लेकर घूमा करते थे। पुरानी बस्ती कोरबा जैसा कि नाम से ही महसूस हो जाता है कि पुराना शहर बेहद अव्यवस्थित, अस्त-व्यस्त सा बसा होता है। जहां पर कहीं गली चौड़ी है, कही तंग और कहीं बिल्कुल गली की सीमा ही समाप्त और ऐसे ही पुरानी बस्ती में जहां हमारी करीब तेरहवीं पीढ़ी आज निवास कर रही है। उस निवास में जब मकान का नवीनीकरण 1991-92 में हुआ, तब ट्रैक्टर के घर तक आने की सुविधा नहीं थी ।अक्सर गधे के माध्यम से रेत,बालू घर तक आता था और लगभग पूरे पुरानी बस्ती का यही हाल था।

गधों की याद इसलिए आई की जब यह गांव (अब कोरबा शहर लेकिन अक्सर गांव ही मुंह से निकलता है क्योंकि हम पैदा ही इस गांव में हुए थे और बैल गाड़ी में बाबूजी की बारात गई,जिस गली में हमारा पुराना घर है, वहां कई टन वजनी पत्थर गलियों में जगह-जगह पड़े थे) वास्तव में गांव था।पंचायत भवन पुराने यूको बैंक के सामने जहां गीतांजली भवन है वहां पर स्थित हमारे गंगा पान भंडार से ट्रांसफार्मर तक था और उसकी छत खपरे की थी।हमारे घर बनने के उस दौर में से लेकर वर्ष 2000 तक यदा-कदा गधे दिख जाते थे।गधे जो बोझ लादे भीड़ देखकर थम जाते थे।

अब मुझे याद नहीं पड़ता कि शहर में पिछले 10 वर्षों से कहीं पर मैंने गधा देखा हो। अब तो सड़क को रौंदते हुए बड़े-बड़े 20 चक्का,40 चक्का हाईवा और ट्रैक्टर ही दिखाई देते हैं। गधों का पलायन छत्तीसगढ़ में लगभग लंबे समय से जारी है। वैसे इसी बात से याद आया कि जीवन में गधा बनना ही सबसे मुश्किल काम है। गधा मतलब सहज, सरल जिसे सुख में सुख और दुख में दुख का अनुभव बिल्कुल ना हो।ऐसी स्थिति में रहने वाला आदमी ही आज के दौर में सुखी रह सकता है। ऊपरी दिखावे के लिए लोन लेकर बनावटी जीवन जीने वालों का जीवन अशांति से भरा होता है। चापलूसी करके जीने वाले भी आशंकित रहते हैं कि पता नही कब कृपादृष्टि हट जाए। वैसे इस तरह का जीव पूरे संसार में एक ही होता है। पति अगर पति नाम की जीव ने गधे से घोड़ा बनने की थोड़ी भी कोशिश की तो उसकी खैर नहीं, पत्नी की दुलत्ती से मिला जख्म लोगो को बता भी नही पाएगा। अभी तक की राजनीति में देखा जाए तो युवा पलायन कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है की उनकी पार्टी को तो आगामी 10 वर्षों तक हाशिए पर ही रहना है सो अपनी जवानी गधा बन कर पड़े पड़े क्यों बताएं चलो जोश में कुछ कर जाए।

गधे को स्कंद पुराण में आदिशक्ति मां शीतला का वाहन बताया गया है, ये एक तस्वीर नेट पर मिली जिसमें मां शीतला की सवारी गधे को humility यानि विनम्रता का प्रतीक माना गया है। सच भी है क्योंकि मेरा अपना अनुभव रहा है कि झूठे ही क्रोधी,कठोर होते हैं और जीवन में तेज रफ्तार से भागने के कारण चोट भी खाते हैं।

मानव जीवन के संदर्भ में गधा अक्सर उन लोगों को बोला जाता है जो अपने लाभ के लिए कभी किसी का नुकसान नहीं करते। किसी का नुकसान अगर हो रहा हो तो उस नुकसान से अपना लाभ कमाने की कोशिश भी नहीं करते। मेरा मानना है की भले ही लोगों की नजरों में हम गधे रहें लेकिन ऐसा जीवन ही ज्यादा उत्तम है।

गुरुजी चाहे अंग्रेजी के हो,संस्कृत भाषा के हो लेकिन उनकी परंपरागत संस्कृति-संस्कार है कि वे डांटते समय english का donkey या और कुछ नही कहते, परंपरागत एक ही शब्द मुंह से निकलेगा ” गधा कही का” और ही हिंदुस्तान में ऐसा कोई भाषा-भाषी नही जिसने किसी न किसी तौर पर, चाहे परिवार में मां-बाप से ये गाली (!) या कहें कि गधा/गधी की उपाधि न मिली हो।

जीवन में दाग कभी अच्छे नही होते चाहे वो कपड़ो पर लगा दाग या जीवन में लगा धब्बा। कई बीमारियों की तरह चेचक के कारण भी शरीर में दाग रह जाता है और आधुनिक डॉक्टरों का तो पता नहीं लेकिन मेरे नानाजी जो अच्छे वैद्य और ज्योतिषी थे, वे गधे की लीद लगाकर इस दाग को दूर करने के लिए लगाने की सलाह देते थे।

गधा जीवों में सबसे सीधा,सरल जीव है और गाय भी इसी श्रेणी में गाय पर सबसे ज्यादा इस दुनिया में लिखा गया है। गाय सीधी होती है या यू कहें कि गधी होती है लेकिन उससे लोगों का जीवन यापन होता है। इसलिए उसकी उपयोगिता समाज में आज भी है और सम्मान भी, ये अलग बात है कि बूढ़ी होने पर दूध न मिलने पर सड़क पर उसे छोड़ दिया जाता है, वृद्धाश्रम में पड़े मां-बाप की तरह।

गधा भारी भरकम बोल उठाने क्या अलावा और कुछ दे नहीं पाता। शायद इसीलिए स्वार्थ के इस दौर में उसके विकल्प के तौर पर छोटे मालवाहक ऑटो रिक्शा आ जाने से उसकी पूछताछ लगभग बंद होने के कगार पर है। गधे काम करते हैं, बोझा ढोते हैं लेकिन शिकायत नहीं करते और व्यक्तिगत जीवन में जिंदगी में यही काम लगभग पति भी करता है।

वैसे मेरा एक अनुभव और है कि जो लोग गधे की तरह लगातार भिड़कर काम करते हैं, समाज उन्हीं की इज्जत करता है और जिम्मेदारियों से भी नवाजता है।गधे ऊंचाई पर,पहाड़ पर चढ़ने में काफी मददगार होते हैं।आड़े-तिरछे रास्तों पर बड़ी ऊंची चढ़ाई सरलता से चढ़ जाते हैं और जीवन में भी यही होता है क्योंकि गीता में श्रीकृष्ण के कहे गए भाव की तरह स्थिति प्रज्ञ रूप से सुख दुख इन सब चीजों से परे होकर लगातार कर्म निर्विकार भाव से बिना फल प्राप्ति की इच्छा किए जो मनुष्य सही दिशा में कर्म करता जाता है, वह धीमी गति से ही सही लेकिन ऊंचाई पर पहुंचता है और उसका कद,पद, प्रतिष्ठा, हासिल, मंजिल सब ठोस होता है।