सुरेंद्र किशोर : कांग्रेस शासन काल में दो अवसरों पर सुप्रीम कोर्ट ने खुद को लाचार पाया था

कांग्रेस शासन काल में दो अवसरों पर सुप्रीम
कोर्ट ने खुद को लाचार पाया था।
कोर्ट जस्टिस नहीं कर सका।
नतीजतन शीर्ष कांग्रेसी नेता भ्रष्टाचार के आरोपों से साफ बच निकले।

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इमरजेंसी (1975-77)में और उसके बाद नब्बे के दशक में भी सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के सामने खुद को लाचार पाया और जस्टिस नहीं कर सका।
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दोनों अवसरों पर केंद्र में कांग्रेस की सरकारें थीं।
तब क्रमशः इंदिरा गांधी और पी.वी.नरसिंह राव प्रधान मंत्री थे।
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दोनों अवसरों पर सत्ताधारी नेताओं के भ्रष्टाचार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट कुछ नहीं कर सका।जबकि, सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट की कड़ी निगरानी में जांच करने के लिए सी.बी.आई.को आदेश दे सकता था जिस तरह उन्हीें दिनों उसने चारा घोटाले की जांच का आदेश दिया था।

चुनावी भ्रष्टाचरण के आरोप में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सन 1975 में प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की लोक सभा की सदस्यता समाप्त कर दी थी।
अपनी गद्दी बचाने के लिए इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगा दी।
अनेक उत्पीड़नों के साथ -साथ इंदिरा गांधी सरकार ने जनता के ‘‘जीने का अधिकार’’ तक भी छीन लिया था।सुप्रीम कोर्ट ने जीने का अधिकार छीनने के सरकार के घोर अपराध के काम पर भी अपनी मुहर लगा दी।
क्या सुप्रीम कोर्ट ने उस समय सरकार से डर कर ऐसा कर दिया।
हालांकि इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने बाद के वर्षों में प्रायश्चित किया।
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दूसरा मामला जैन हवाला कांड का था।यह देश द्रोह का मामला बनता था।
जो हवाला व्यापारी कश्मीर के आतंकियों को पैसे देते थे,उन्हीं राष्ट्रद्रोही लोगों से
इस देश के एक पूर्व राष्ट्रपति ,दो पूर्व प्रधान मंत्री, कई पूर्व मुख्य मंत्री व पूर्व-वत्र्तमान केंद्रीय मंत्री स्तर के अनेक नेताओं ने भारी धन राशि ली।
हवाला कारोबारियों ने उन्हें ‘‘संरक्षण मनी’’ दिए।वह बहुदलीय घोटाला था।
पैसे पाने वालों में खुफिया अफसर सहित 15 बड़े -बड़े अफसर भी थे ।
आरोप लगा था कि पैसे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आई.एस.आई.ने भिजवाए थे।
उन 55 लाभुक लोगों में से शरद यादव व राजेश पायलट सहित कुछ लाभुकों ने स्वीकार किया था कि किसी जैन ने आकर पैसे दिए थे।और हमने स्वीकार कर लिए।
सवाल है कि कोई भी व्यक्ति आकर आपको पैसे दे देगा और आप ले लेंगे ?
एक बड़े भाजपा नेता को मिले पैसों के बारे में मदन लाल खुराना ने 1994 में कहा था कि वह चंदा था।
एक अखबार की खबर के अनुसार तब अटल बिहारी वाजपेयी ने नरसिंह राव द्वारा 3.50 करोड़ रुपए स्वीकारने के सबूत भी दिए थे।
हालांकि तहलका मामले में बंगारू लक्ष्मण को भी भाजपा ने पहले चंदा बताया,पर जब बंगारू को कोर्ट से सजा हो गई तो पार्टी ने चंदा की बात को गोल करते हुए कहा कि यह उनका व्यक्तिगत मामला था।


जैन हवाला कांड की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जे.एस.वर्मा ने इस बात पर सख्त अफसोस जाहिर किया था कि सी.बी.आई. ने तो इस मामले की जांच ही नहीं की।
यदि उसने जांच नहीं की तो कोर्ट तो जांच का आदेश दे ही सकता था।
पर,जस्टिस वर्मा ने स्वीकारा कि जजों पर इस बात के लिए भारी दबाव था कि हवाला मामले में कड़ाई न की जाए।
अब भला उस कांड की सही जांच कैसे होती
जिस कांड में इतने बड़े -बड़े नेता व अफसर फंसे हों ?
55 लाभुकों की सूची देखकर आपको लगेगा कि यह तो इस देश की राजनीति का हू इज हू है।
55 के अलावा 15 बड़े अफसर भी लाभुक थे।उनमें इंटेलिजेंस अफसर भी थे।आरोप लगा कि पैसे आई.एस.आई.ने भिजवाए थे।
जांच होती और सबूत ढूंढ़ लिए जाते तो उनके नाम मैं भी यहां लिख देता।
इस कांड पर विनीत नारायण की किताब में सबके नाम राशि के साथ उपलब्ध हैं।

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