स्वतंत्रता संग्राम का सच

सच तो यह है कि पूरे स्वतंत्रता संग्राम किसी बड़े कांग्रेसी नेता को फांसी की सजा नहीं हुई, किसी बड़े कांग्रेसी नेता को काला पानी नहीं भेजा गया और कोई बड़ा कांग्रेसी नेता पुलिस की गोली से नहीं मरा।

सच तो यह है कि मदन लाल ढींगरा

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से लेकर सुभाष चंद्र बोस तक जिसने अंग्रेजों से लड़ने के लिए सशस्त क्रांति की बात की उसने अंग्रेजों के साथ-साथ कांग्रेसियों से भी वैचारिक यु्द्ध लड़ा।

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सच तो यह है कि मदन लाल ढींगरा द्वारा कर्जन वायली की हत्या के बाद भरी सभा में निंदा प्रस्ताव की खिलाफत करने के साथ ही सावरकर आजीवन क्रांतिकारियों अघोषित प्रवक्ता बन गए।

वो मदन लाल ढींगरा के लिए लड़े, लाला हरदयाल के मृत्यु पर छठे पन्ने पर एक कॉलम भर की न्यूज पर संपादकीय लिखा, भगत सिंह के पक्ष में लेख लिखने पर अपना अखबार जब्त कराया और सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर लगाकर भाषण दिए।

और जब वो ये सब कर रहे थे तब कांग्रेसी खेमा क्रांतिकारियों का आत्याचारी आतंकवादी साबित करने के लिए मुहीम में लगा हुआ था। सावरकर स्वतंत्रता संग्राम की क्रांतिकारी धारा के नायक हैं लेकिन बेहद चतुराई से उन्हें अछूत बनाने के लिए उन्हें सांप्रदायिक घोषित करके अलग-थलग कर दिया गया और वो सारे लोग जो सारी जिन्दगी वैचारिक विरोधी रहे। लेख लिख-लिखकर एक दूसरे का विरोध करते रहे एक साथ बता दिए गए।

गांधी और सावरकर दोनों ने अपने जीवन का सबसे बड़ा साहित्य एक दूसरे के वैचारिक जवाब में लिखा है। गांधी ने 1908 में हिन्द स्वराज लिखी जो उन्होंने अपनी लंदन यात्रा से लौटते समय पानी के जहाज में लिखी थी। इस किताब में खुद गांधी जी ने लिखा कि वो दक्षिण अफ्रीका और लंदन में रहने वाले उग्रवादियों से मिले हैं उन्हें शांत करने और अहिंसा का मार्ग समझाने के लिए ये किताब लिख रहे हैं यानि हिन्द स्वराज का मुख्य लक्ष्य ही क्रांतिकारियों को अहिंसा का मार्ग समझाना था। इसलिए हिन्द स्वराज कांग्रेस के जन्म को सेलिब्रेट करती है और उदारवादी कांग्रेसी नेताओं को नायक की तरह दिखाती है।

वहीं सावरकर ने अपना सबसे बड़ा साहित्य ‘हिन्दुत्व’ रत्नागिरी की जेल में लिखा। जब उन्होंने खिलाफत के नाम पर तुर्की के खलीफा के लिए भारत में चलाए जा रहे आंदोलन और उसके भयंकर परिणाम देखे। ऐसे में उन्होंने हिन्दूत्व लिखकर भारत की भागौलिक और राष्ट्रीयता निर्धारण करने का प्रयास किया जिसमें किसी तुर्क देश की स्वतंत्रता के लिए मलाबार में नरसंहार को चुनौती की तरह लिया गया। गांधी जी ने जहां कांग्रेस के जन्म को भारत की स्वतंत्रता आंदोलन का मुख्य पड़ाव माना तो सावरकर ने 1857 की क्रांति को भारत की आजादी का सूत्रपात माना ।

साभार-अविनाश त्रिपाठी

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