सुरेंद्र किशोर : शरद पवार -सुप्रिया सुले.. जब राजनीति ‘उद्योग’ का स्वरूप ग्रहण कर ले तो उत्तराधिकार भतीजे को कैसे मिलेगा ?

कुछ लोगों को इस बात पर अचंभा क्यों हो रहा है कि शरद पवार ने अपने अधिक अनुभवी भतीजे अजित पवार को दरकिनार करके कम अनुभवी बेटी सुप्रिया को पार्टी की कमान क्यों सौंपी ?
अरे भई,कोई व्यापारी अपने कारखाने का उत्तराधिकारी अपनी संतान को दरकिनार करके अपने भतीजे को तो नहीं सौंपता !

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आजादी की लड़ाई के दिनों और उसके बाद के कुछ वर्षों तक भी राजनीति ‘सेवा’ थी।
सन 1976 में जब इंदिरा सरकार ने पूर्व सांसदों के लिए पेंशन का प्रावधान किया तो अपवादों को छोड़कर राजनीति ‘नौकरी’ हो गयी।
नब्बे के दशक में जब, तब के प्रधान मंत्री पी.वी.नरसिंह राव ने सांसद क्षेत्र विकास फंड का प्रावधान किया तो अपवादों को छोड़कर राजनीति ‘वाणिज्य’ हो गयी।
मनमोहन सिंह के शासनकाल में जब अनेक नेताओं पर अरबांे-अरब रुपए के घोटाले के आरोप लगने लगे तो लोगों को पता चला कि राजनीति तो अब उद्योग हो चुकी है।
अब जब अपवादों को छोड़कर बड़े- बड़े “सुप्रीमो” तरह -तरह के ‘उपायों’ से ‘उद्योग’ खड़ा करते हैं तो क्या वे भतीजे के फायदे के लिए ऐसा करते हैं ?
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इंदिरा की वसीयत नजरअंदाज
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4 मई, 1981 को तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी वसीयत में अन्य बातों के अलावा यह भी लिखा कि
‘‘मैं यह देखकर खुश हूं कि राजीव और सोनिया ,वरुण को उतना ही प्यार करते हैं जितना अपने बच्चों को।
मुझे पक्का भरोसा है कि जहां तक संभव होगा,वो हर तरह से वरुण के हितों की रक्षा करेंगे।’’
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क्या सोनिया गांधी वरुण के हितों की रक्षा कर रही हैं ?
जबकि, यह कटु सत्य है कि यदि वरुण के हाथों कांग्रेस का नेतृत्व रहा होता तो आज की अपेक्षा कांग्रेस की हालत बेहतर होती।
क्योंकि वरुण के दिमाग में जो भी विचार आते हैं वे ‘सुलझे’ हुए होते हैं।
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पुनश्चः
मैंने सांसद फंड के साथ वाणिज्य शब्द क्यों जोेड़ा ?
इसका कारण है।
अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान मंत्रित्व काल में 40 भाजपा सांसद अटल जी से मिले।
उन्होंने कहा कि सांसद फंड से संघ के कुछ लोग भी गड़बड़ा रहे हैं।
इसके साथ ही,अपवादों को छोड़कर निचले स्तर के अफसर व आम राजनीतिक कार्यकर्ता भी गलत धंधों में लग गए हैं।
अपवादों को छोड़कर सांसद भी उन धंधों का विरोध करने की नैतिक शक्ति खो चुके हैं।
संघ के जो लोग पार्टी में डेपुटेशन पर आते हैं,उनमें से कुछ लोग सासंद फंड के ठेकेदार बन जा रहे हैं।नतीजतन उनकी आंखों में पहले जो ‘सेवा भाव’ दिखाई पड़ता था,वाणिज्य भाव ने अब उसका स्थान ले लिया है।
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चिंतित अटल जी ने सांसद फंड खत्म करने का उपक्रम शुरू ही किया कि 100 सांसदों ने मिलकर उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।
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ताजा हाल यह है कि मोदी सरकार ने एक आंतरिक सर्वे कराया।
पता चला कि करीब 800 में से सिर्फ 3 सांसद इस फंड की समाप्ति के पक्ष में हैं। ऐसे में बेचारे मोदी भी क्या करेंगे ?
जब देश की राजनीति ऐसी हो चुकी है, तो शरद पवार के वंशवाद पर बोलने का हक किस राजनीतिक दल,नेता या बुद्धिजीवी को है ?

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