कौशल सिखौला : क्षेत्रीय दलों ने शायद कांग्रेस को बच्चा समझ लिया है…

ममता चाहती हैं बंगाल में केवल वे ही वे रहें , कांग्रेस चुनाव न लड़े !
अखिलेश का कहना है यूपी में केवल हम , केजरीवाल कहते हैं दिल्ली और पंजाब में लड़ेंगे हम ही हम !
नीतीश और तेजस्वी की तमन्ना बिहार में छा जाने की है , बशर्ते कांग्रेस वहां न लड़ें !
मतलब जहां क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत , वहां से दूरी बनाए कांग्रेस!

बात साफ है । तमाम विपक्षी दल चाहते हैं कि जिन राज्यों में क्षेत्रीय दल प्रभावशाली हैं , वहां केवल वे चुनाव लड़ें , बाकी दल उन्हें समर्थन दें । मसलन तमिलनाडु में डीएमके लड़े , महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी आदि । या फिर जिस सीट पर कांग्रेस , वहां सारे विपक्षी दल कांग्रेस के पीछे । बंगाल में हर सीट पीआर ममता लड़ें और कांग्रेस उसके समर्थन में खड़ी हो । विपक्षी एकता के फॉर्मूले में सोच को राष्ट्रवादी बनाने के बजाय प्रांतवादी बनाने का प्रयास।

क्षेत्रीय दलों ने शायद कांग्रेस को बच्चा समझ लिया है। मतलब कांग्रेस इतनी भोली है कि राज्यों में क्षेत्रीय दलों को जिता देगी और खुद उन कुछ राज्यों के भरोसे रहेगी , जहां मुकाबला ही भाजपा बनाम कांग्रेस है ? कांग्रेस से दोस्ती गांठने निकले केजरीवाल को अजय माकन और संदीप दीक्षित ने ऐसा तमाचा जड़ा कि बिलबिला के रह गए । माकन ने कहा कि नरसिंहा राव के जमाने में भी ट्रांसफर पोस्टिंग के अधिकार एलजी के पास थे । उन्होंने कहा कि दिल्ली ना तो राज्य है और न केंद्रशासित प्रदेश । दिल्ली कोई विशेष राज्य भी नहीं , सदा से केंद्र की कठपुतली रहा है । लीजिए अजय माकन ने तो केजरीवाल का पानी ही उतार दिया।

देखिए बन्धु , यह लोकसभा है । लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों में सदा फर्क होता आया है । फिर अब तो मतदाता और भी ज्यादा समझदार हो गया है । लोकसभा में मोदी को हराना आसान नहीं । एक बात और । राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव यदि मोदी बनाम राहुल न हुआ तो भाजपा खासी आगे निकल जाएगी । राहुल जैसे भी हों , ममता , नीतीश , केजरी , अखिलेश से स्वीकार्यता के मामले में कहीं आगे हैं।

या यह कहें कि विपक्ष ने यदि राहुल के नेतृत्व में चुनाव लडा तभी बड़ा चुनाव हो पाएगा । यदि चुनाव टुकड़े टुकड़े लड़ा गया तो यकीन मानिए विपक्ष के लिए दिल्ली अभी बहुत दूर है । ममता और नीतीश बेशक कितना भी राज्य राज्य भाग लें , विपक्षी गठबंधन तब तक नहीं बन पाएगा , जब तक सब मिलकर कांग्रेस को नेतृत्व न सौंप दें । विपक्ष में जितने खेमें बनें हैं , ऐसा हो पाना संभव नहीं लगता । आश्चर्य की बात है कि भाजपा ही कांग्रेसमुक्त सत्ता नहीं चाहती , आधा विपक्ष भी यही चाहता है । जबकि हकीकत दूसरी है । जब तक विपक्ष कांग्रेस के झंडे तले खड़ा नहीं होता , तब तक दिल्ली दूर ही नहीं , सचमुच बड़ी दूर है।

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