पंकज कुमार झा : सनातन, अवतारवाद और लोकतंत्र..शक्ति रूपेण संस्थिता.. ‘नमो’ नमः
अवतारवाद ने हमें राम/कृष्ण दिए हैं। ऐसे नायक सृष्टि ने और कहीं नहीं देखे हैं, न युगों ने देखा है। राम वो है जो रोम-‘रोम’ सिहरा दे। और कृष्ण तो कृष्ण ही हैं। दोनों हर उपमा हर अलंकारों से परे…
किंतु प्राकट्यों की अधूरी समझ ने हममें कायरता भी भर दी है। हम हर ज़ुल्म सहते हैं यह सोच कर कि जल्द ही ईश्वर अवतार लेंगे और पापियों का संहार कर देंगे। इस सनक में अक्सर हम पैदा हुए किसी अपनों में ही/भी अवतार तलाशने लग जाते हैं।
अगर यह महज़ आस्था और विश्वास के रूप में हो तो इससे अच्छी कोई बात नहीं। लेकिन यह अगर अन्धविश्वास या हमारी कायरता का बहाना हो, तो संकट है। सनातनी अक्सर इस संकट का शिकार हुए हैं।
हमारी कायरता न केवल हमें पीड़ित अपितु स्वार्थी भी बना देता है। हम अक्सर यह आशा करते हैं कि सत्यनारायण भगवान को आपने रम्भा फलं, घृतं क्षीरं… का भोग लगा कर पंडीजी को 51 रुपया दक्षिणा दिया नहीं कि आपकी सारी समस्याओं का समाधान हो गया।
निस्सन्देह उस पवित्र अनुष्ठान से अगाध लाभ है। किंतु दुनियावी लाभों के लिये स्वयं का उद्यम चाहिये। प्रभु सत्यनारायण पड़ोस के आपके दुश्मनों का संहार नहीं कर सकते। बेटी के लिए अच्छा वर, परीक्षा में फ़र्स्ट क्लास से पास, प्रेमिका से शादी.. आदि नहीं करा सकते। हां, इन चीज़ों के लिये उद्यम का विवेक वे अवश्य दे सकते हैं।
ठीक यही बात ‘वोट’ से सम्बंधित भी है। आप किसी मंदिर में चढ़ाये लड्डू की तरह यह मान बैठते हैं कि एक वोट दिया और सारा संकट छू मन्तर। आपका प्रतिनिधि सीधे ईश्वर का प्रतिनिधि होगा और आपको सारे संकटों से निजात दिला देगा। ऐसा नहीं होता।
वोट से फ़र्क़ पड़ता है। अगाध अंतर आता है अगर आपने सही चयन किया तो। लेकिन पांच वर्ष में एक वोट डाल देने के बाद आप सारी असुरक्षाओं से मुक्त हो गये, वह वोट पोलियो के टीके की मानिंद काम कर आपको खड़ा कर देगा, ऐसा नहीं होता।
उद्यम अपनी सुरक्षा का सबसे पहले आप करेंगे। आपका सही वोट आपको वह उद्यम करने का उत्साह और उसकी ताक़त देगा। परंतु तय मानिये, अपने लिये और अपनी नस्लों की सुरक्षा हेतु ब्रम्हाण्ड का सबसे बड़ा अवतार आप स्वयं हैं।
…. सनातन और लोकतंत्र, दोनों का यही संदेश है। अगर नहीं है, तो ऐसा हो जाना चाहिये। ऐसा नहीं होगा तो भी आप अपने लिये ऐसा ही कर लीजिए। ध्यान रखिये…
ईश्वर उन्हीं की सहायता करते हैं जो स्वयं तैयार हों अपनी सहायता स्वयं करने हेतु। जय श्रीराम। हर हर महादेव। शक्ति रूपेण संस्थिता… ‘नमो’ नमः।