सुरेंद्र किशोर : अदाणी-मोदी के संबंधों पर केजरीवाल के ताजा आरोप सही..? इसे कहते हैं इमरजेंसी !!
दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल ने आदाणी -नरेंद्र मोदी को लेकर ऐसी चैंकाने वाली बातें कही हैं,वैसी बातें आज तक किसी ने नहीं कही।
यदि वह बात सच है और उसके कागजी सबूत है तब तो सन 2024 के चुनाव में मोदी की सत्ता चली जाएगी।
यदि सच नहीं है तो केजरीवाल दुनिया का सबसे बड़ा झूठे साबित होंगे।
इस झूठ की सख्त सजा उसे मिलनी चाहिए।
केजरीवाल ने वह सनसनीखेज बात कहने के लिए दिल्ली विधान सभा का मंच चुना है।
सदन में कहीं गई बातों पर किसी के खिलाफ मुकदमा नहीं हो सकता।
फिर नरेंद्र मोदी के खिलाफ केजरीवाल के सनसनीखेज आरोपों की जांच के क्या उपाय हैं ?
आज इस पर सुप्रीम कोर्ट को विचार करना चाहिए।
आज सुप्रीम कोर्ट सत्ता से जितना स्वतंत्र है उतना इससे पहले कभी नहीं था।
केजरीवाल के ताजा रहस्योद्घाटन की सच्चाई की जांच के लिए S C कोई भी उचित कदम वह उठा सकता है।
संविधान के अनुच्छेद-142 में सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार हासिल है अन्यथा सदन के विशेषाधिकार का फायदा उठाकर कोई भी गैर जिम्मेदार व्यक्ति कोई भी अनर्गल व सनसनीखेज आरोप आगे भी लगाता रहेगा।
यदि केजरीवाल को छूट मिल गई तो वह एक दिन सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ भी दिल्ली विधान सभा में कुछ अनर्गल भी बोल देगा जब उसका मामला कोर्ट में जाएगा।
याद रहे कि सदन के बाहर दिए गए अपने अनर्गल बयानों के लिए केजरीवाल कई मुकदमे झेल चुके है।
कई नेताओं से वह माफी मांग चुके है।इस बार उनने जानबूझ कर ऐसा मंच चुना जिस पर कही गई बातों पर मुकदमा नहीं हो सकता है।
इसे कहते हैं इमरजेंसी !!
इमरजेंसी (1975-77) के दिनों की बात है।
पूर्व मुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर भूमिगत थे।
पटना के वीरचंद पटेल पथ स्थित कर्पूरी जी के सरकारी आवास को उन्हें नियमतः खाली कर देना था।वे खाली नहीं कर सके थे कयोंकि भूमिगत थे।
पटना जिला प्रशासन ने कर्पूरी ठाकुर का सामान उनके आवास से निकाल कर सड़क पर रख दिया।वहां तक तो ठीक था।
पर, तब की इमरजेंसी के आतंक की झलक उसके बाद मिली।
कर्पूरी जी के ही दल के एक एम.एल.सी.से कहा गया कि आप कर्पूरी जी का सामान अपने अवास में रख लें।
उनका सरकारी आवास भी बड़ा था।
वे कर्पूरी जी के काफी करीबी भी थे।
पर,उन्होंने सामान रखने से साफ मना कर दिया।
उन्हें डर था कि सामान रख लेने पर उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
याद रहे कि कर्पूरी जी ने कहीं अपना कोई आवास नहीं बनाया।
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फिर क्या हुआ ?
मांडु से कांग्रेस विधायक बीरेंद्र कुमार पांडेय ने कर्पूरी जी का सामान अपने आवास में रखवा दिया।
पांडेय को इस कारण अपनी गिरफ्तारी का कोई भय नहीं था।क्योंकि वे सरकारी पार्टी में थे।
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1977 में जब कर्पूरी ठाकुर एक बार फिर मुख्य मंत्री बने तो उन्होंने एक बार फिर उस एम.एल.सी.को फिर से एम.एल.सी.बनवा दिया।
क्योंकि कर्पूरी जी उस एम.एल.सी. के भय की गंभीरता को समझ गए थे।
हर व्यक्ति की लड़ने की क्षमता अलग अलग होती है।
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मेरा भी नाम बड़ौदा डायनामाइट षड्यंत्र केस में आया था।मैं भी फरार था।
सी.बी.आई.मुझे बेचैनी से खोज रही थी।
भूमिगत जीवन में जहां कहीं मेरे पुराने परिचित मुझे नजर आ जाते थे तो वे अपना मुंह फेर लेते थे।
न तो कोई शरण देने को तैयार था और न ही दो पैसे की मदद करने को।
अंततः मेरे मित्र राम बिहारी सिंह ने मुझे अपने एक सचिवालय कर्मी के यहां रखवा दिया।
पटना में दिक्कत होने लगी तो मैं मेघालय अपने बहनोई के यहां चला गया।मेघालय में तब कांग्रेस की सरकार नहीं थी।इसलिए वहां इमरजेंसी का अत्याचार नहीं था।
उसे कहते हैं इमरजेंसी।
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इन दिनों जो ट्रेन में बिना टिकट यात्रा करते हुए भी पकड़ा जाता है तो तुरंत कह देता है कि देश में इमरजेंसी का माहौल है।
फिर तो जो नेता सत्ता में रहकर नाजायज तरीके से अरबों रुपए कमा चुका है और उसकी संपत्ति जब्त हो रही है और उसे जेल जाने की नौबत है तो वह तो ‘इमरजेंसी’शब्द का उच्चारण करेगा ही।यह भी कहेगा कि अब इस देश में लोकतंत्र कहां रहा?
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उसकी दृष्टि में लोकतंत्र ऐसा होना चाहिए जिसमें मुगल व ब्रिटिश आक्रांताओं की तरह ही इस देश को लूटने की पूरी छूट मिले।
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