हरेश कुमार : सन्त तुलसीदास को अपमानित करने के लिए फैलाया गया झूठ

एक सन्त को उस बात और वाक्य के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है जिसे उसने कभी लिखा ही नहीं था। एक झूठ जो पिछले एक शताब्दी से प्रचारित किया जा रहा कि सन्त तुलसीदास ने स्त्री और शुद्र को ढ़ोल और पशु के श्रेणी में रखा और जनमानस को इन्हें तथाकथित प्रताड़ित करने के लिए कहा।

शूद्र गँवार ढ़ोल पशु नारी
सकल ताड़ना के अधिकारी

सन्त तुलसीदास आज इस धरती पर मौजूद नहीं हैं जो मूल रामचरित मानस की पांडुलिपि सबको दिखाते चलें कि उन्होंने ऐसा कभी लिखा था।
बड़े तरीके से तुलसीदास रामायण के मूल रचना में कुछेक वर्तनी बदल कर उन्हें दलितों और नारियों का विरोधी बना दिया गया।
मूल पाठ यह है–
“ढ़ोल गँवार छुद्र पशुमारी, सकल ताड़ना के अधिकारी”
छुद्र अर्थात संस्कारहीन न की शूद्र पशुमारी का अर्थ पशुओं को मारने वाला जबकि इसे पशु और नारी दो अलग शब्द से परिवर्तित कर दिया गया।
सन 1767 में जन्मे भारतीय बांग्मय के विद्वान् पंडित सदल मिश्र द्वारा सम्पादित रामचरित मानस को पढ़िए उसमें आपको मूल पाठ देखने को मिल जाएगा। आरा निवासी विद्वान सदल मिश्र फोर्ड बिलियम में संस्कृत के शिक्षक थे।
कालक्रम में अंग्रेजों ने बड़े तरीके से भारतीय समाज मे फुट डालने के लिए मूलपाठ में हेरफेर कर यह प्रपंच रचा। बाद में उन कपटी अंग्रेजों के जारज बौद्धिक संतान इस झूठ को बारम्बार दुहरा कर उस रामसीता भक्त हनुमान भक्त सन्त को अपमानित करते आ रहे हैं।
आश्चर्य है कि आम जनमानस भी उतना ही बड़ा बुद्धि बैल है जितना कि गीताप्रेस गोरखपुर वाले। उसी झूठ को सच मानकर पढ़ रहे हैं पढा रहे हैं उसे छाप रहे हैं। इस कलिकाल में दुष्ट, लम्पट, दुष्चरित्र, कपटी राक्षसों का बोलबाला है, जहाँ सन्त ऐसे ही प्रताड़ित होते हैं।
”बून्द आघात सहहिं गिरी कैसे। खल के बचन संत सेह जैसे।।”

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