त्याग व वैराग्य भाव जागरण – 24

योगाभ्यास विधि

योगवाटिका I : आत्मोथान

Veerchhattisgarh

आत्मोत्थान के लिये त्याग व वैराग्य के भावों को अपने व्यक्तित्व में उभारना अत्यन्त आवश्यक है । मनुष्य के दुःख का कारण है तृष्णा, सुखप्राप्ति की तृष्णा । वास्तव में जीव की मूल तृष्णा है आनन्द की प्राप्ति जो कि केवल आनन्द के स्रोत्र सच्चिदानन्द परमात्मा की शरणागति से बुझाई जा सकती है । जीव अज्ञानवश प्रकृति पदार्थों से मिलने वाले इन्द्रिय सुख (Sensory Pleasure) को आनन्द (Bliss) समझ बैठता है । यह इन्द्रिय सुख क्षणिक है ; एक बार के रसास्वादन से बार-बार इसे भोगने की इच्छा होती है । यही तृष्णा है, वासना है जो दुःख का कारण बनती है ।

तत्त्वदर्शियों का कथन है कि यदि संसार के समस्त धन-धान्य एवं ऐश्वर्य-पदार्थ किसी एक व्यक्ति को उपलब्ध करा दिये जाएँ तो भी उसकी तृष्णा नहीं बुझ सकती । वास्तव में यह तृष्णा बुझाने के प्रयास से और अधिक भभक उठती है जैसे अग्नि में तेल डालने से अग्नि और अधिक भभक उठती है ।

आध्यात्मिक उन्नति का मूल मन्त्र है – निवृत्ति । शास्त्रों का कथन है ‘तत्र सुखं यत्र निवृत्तिः’ अर्थात् सुख वहीं है जहाँ निवृत्ति है । अतः प्रकृति पदार्थों एवं इन्द्रिय जनित सुख से साधक को अपने आपको निवृत्त करने का प्रयास करना चाहिये ।

इस प्रयास में सन्तोष एक अमोघ बाण है । मनुष्य सारा जीवन सुख-सुविधा के सामान को बटोरने में व्यस्त रहता है और दुःखी होता है। अवांछित सामग्री का न बटोरना, जो उपलब्ध है उसी में सन्तुष्टि (Contentment) रखना, मनुष्य को मानसिक तनाव से बचाता है और सुखशान्ति प्रदान करता है ।

तदर्थ मनुष्य को, विशेष कर साधक को, त्याग और वैराग्य का भाव अपने जीवन में लाना चाहिये । पुत्र, कलत्र (पत्नी) आदि की आदि की सुख – सुविध का ध्यान रखना, उनकी उचित आवश्यकताओं को पूरा करना , मनुष्य का कर्तव्य है। परन्तु उन के प्रति मोहवश, अनुचित मांगों को पूरा करने के लिए, अनुचित कार्य करना, उसके बन्धन का कारण बनते हैं । इसलिये मोह (अनुचित लगाव) को त्यागना चाहिये ।

वैराग्य का अर्थ है राग (मोह) का त्याग । हमें जीवन से मोह है, सगे सम्बन्धियों से मोह है, संसार के पदार्थों एवं विषयों से राग है, लगाव है । वैराग्य उत्पन्न करने के लिये हमारे धर्म ग्रन्थों में कई उपाय बतलाए गये हैं । महात्मा बुद्ध ने जीवन के निम्न पाँच तथ्यों पर, जो अति सरल और सटीक हैं, मनन करने का उपदेश दिया है:

1- कभी न कभी मुझ में बुढ़ापा आएगा, मैं उसे टाल नहीं सकता ।
2- कभी न कभी बीमारी मुझे घेरेगी, मैं उसे टाल नहीं सकता ।
3- कभी न कभी मृत्यु मेरा ग्रास बनाएगी, मैं उसे टाल नहीं सकता ।
4- वे सभी वस्तुएँ जो मुझे प्रिय हैं, परिवर्तनशील हैं, मरणशील है, मुझ से छिन जाने वाली हैं, मैं इस तथ्य को टाल नहीं सकता ।
5- मैं अपने कर्मों का प्रतिरूप हूँ, चाहे वे अच्छे हो या बुरे । मैं उन कर्मों का उत्तराधिकारी हूँ, उत्तरदायी हूँ । मैं इसे टाल नहीं सकता ।

उपरोक्त पाँच तथ्यों पर मनन करने से जीवन के प्रति राग, व्यक्तियों या पदार्थों के प्रति राग एवं उनको पाने की तीव्र इच्छा तथा निकृष्ट कर्मों को करने की वृत्ति पर अंकुश लगता है, अर्थात् वैराग्य की भावना जागृत होती है ।

आत्म साक्षात्कार एवं परमात्म-साक्षात्कार के पथ पर चलने वाले साधक के लिये सांसारिक प्रलोभनों और सांसारिक मोह को त्यागना अनिवार्य है । रामकृष्ण परमहंस का साधकों के लिये निर्देश हैः ” अपने और अपने परमात्मा के बीच में अपनी बिल्ली को मत आने दो “। ‘बिल्ली’ सांसारिक पदार्थों और जीवों का प्रतीक है, जिन से आपको लगाव है । सन्देश है कि मोह को, राग को, पदार्थों के परिग्रह की लालसा को त्याग दो । तभी ईश्वर भक्ति और उसकी प्राप्ति की साधना में आप का मन टिक पाएगा । अन्यथा ये सभी आप के मन को विचलित करती रहेंगी और ध्यान में मन नहीं लग पाएगा ।
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पादपाठ

1) यत्पृथिव्यां व्रीहियवं हिरण्यं पशव: स्त्रय:।
एकस्यापि न पर्याप्तं तदित्यतितृषं त्यजेत्।।
— विष्णु पुराण

पृथ्वी पर जो भी खाद्य, स्वर्ण, पशुधन, स्त्रियां हैं,
एक व्यक्ति की तृप्ति के लिए पर्याप्त नहीं हैं,
इसलिए अति तृष्णा का त्याग कर देना चाहिए।

Whatever eatables, gold, animal- wealth, women are on earth are not enough to satisfy one person, therefore one must leave excessive attachment.
— Vishnu Purana

2) Do not let you cat come between you and your God.
— Ramakrishna Paramhans

3) If a man owns land , the land owns him.
— Ralph Waldo Emerson

यदि कोई व्यक्ति किसी ज़मीन का मालिक है , वह ज़मीन उसकी मालिक बन जाती है।
— राल्फ वल्डो एमर्सन

4) Who is rich ? He that is content.
— Benjamin Franklin.

अमीर कौन है? जो सन्तुष्ट है।
— बेंजमिन फ्रैंकलिन

5) The Bird of Paradise elights only upon the hand that does not grasp.
— John Berry.

स्वर्गीय पक्षी उसी हाथ पर बैठता है जो पकड़ता नहीं है।
— जाहन बैरी
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YOGA LESSONS
Step I : Moral Discipline
24) Inculcate Feelings of Detachment
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शुभकामनाएँ
विद्यासागर वर्मी
पूर्व राजदूत
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