सुप्रीम कोर्ट जस्टिस एस. अब्दुल नजीर.. “भारत को मनु, चाणक्य, कात्यायन और बृहस्पति वाली न्यायव्यवस्था चाहिए, औपनिवेशिक न्यायव्यवस्था देश के लिए घातक”

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस अब्दुल नजीर ने कहा था कि कानून के छात्रों को औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर निकालने के लिए आवश्यक है कि उन्हें मनु, चाणक्य एवं बृहस्पति की विकसित की गई न्याय प्रणाली के बारे में पढ़ाया जाए।

क्यों सुप्रीम कोर्ट और कानून मंत्री के बीच तनातनी चल रही है? यह समाचार सुर्खियों में है, इसके बाद अब कुछ दिनों पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC Act) अधिनियम को रद्द करने पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने कहा था कि संसद में इसे लेकर कोई चर्चा नहीं हुई।

वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव भारत की कानून व्यवस्था को लेकर कहतें हैं “भारत की न्याय प्रणाली ब्रिटिश साम्राज्यवादियों की देन है। इसमें न्यायप्रियता कम और पद्धति पर बल ज्यादा दिया गया है। प्राचीन भारतीय न्याय व्यवस्था पर गौर करें। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में ढाई हजार वर्ष पूर्व लिखा था कि न्यायमूर्ति लोकास्था को ध्यान में रखकर आदेश पारित करेंगे। नीतिशास्त्र में शुक्राचार्य ने स्पष्ट किया है कि न्यायाधीश अत्यंत ईमानदार लोग ही नामित हों। आचार्य बृहस्पति ने अपनी स्मृति में उनको निजी हितों से ऊपर उठने का आग्रह किया था।”

हमारे देश में हमेशा एक बात कही जाती है कि न्याय यदि समय पर ना मिले तो वह न्याय नहीं होता। इसके अलावा देश में न्यायालय की स्थिति पर देखा गया है कि हजारों-लाखों मामले लंबित पड़े हैं जिन पर सुनवाई भी ठीक से नहीं हो पाती।

इन सब मामलों के पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस अब्दुल नजीर ने कुछ समय पूर्व एक ऐसा बयान दिया था जो मीडिया में चर्चा का विषय बना रहा था। न्यायधीश एस अब्दुल नजीर ने अपने बयान में भारतीय न्याय प्रणाली की वकालत की थी।

बीते दिसंबर अखिल भारतीय अधिवक्ता महासंघ के राष्ट्रीय परिषद के द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में संबोधन करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस अब्दुल नजीर ने कहा था कि कानून के छात्रों को औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर निकालने के लिए आवश्यक है कि उन्हें मनु, चाणक्य एवं बृहस्पति की विकसित की गई न्याय प्रणाली के बारे में पढ़ाया जाए।

देश की मौजूदा न्याय प्रणाली पर उंगली उठाते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने कहा थाकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि औपनिवेशिक न्याय व्यवस्था भारत की जनता के लिए उपयुक्त नहीं है।

उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि अब समय की मांग है कि न्याय व्यवस्था का भारतीय करण किया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर ने इस मामले में आगे कहा था कि यह एक बड़ा काम है और इसमें समय भी काफी लगेगा लेकिन भारतीय समाज विरासत और संस्कृति के अनुरूप न्याय व्यवस्था को ढालने के लिए यह कार्य किया जाना चाहिए।

उन्होंने प्राचीन भारतीय न्याय व्यवस्था एवं परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा था कि महान वकील और न्यायधीश पैदा नहीं होते, लेकिन उचित शिक्षा और महान कानूनी परंपराओं से बने होते हैं, जैसे मनु, कौटिल्य, कात्यायन, ब्रहस्पति, नारद, पराशर, याज्ञवल्क्य और प्राचीन भारत के अन्य कानूनी दिग्गज थे।

विवाह के मामले में भी उन्होंने प्राचीन भारतीय संस्कृति की वकालत की थी कि प्राचीन भारतीय न्याय व्यवस्था में विवाह एक सामाजिक दायित्व है जिसका निर्वाह हर किसी को करना होता है। लेकिन पाश्चात्य न्याय प्रणाली में विवाह एक ऐसी साझेदारी बना दिया गया है जिसमें हर कोई जीतना वसूल सकता है वसूलने की कोशिश करता है।

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