ऋषभ भरावा : रामसेतु

भारत के दक्षिण में स्थित रामसेतु के बारे में आज कौन नहीं जानता। भगवान राम को जब माता सीता को रावण की कैद से छुड़ाने के लिए भारत के दक्षिण में स्थित रामेश्वरम से श्रीलंका जाना था ,तो इन दोनों जगहों के बीच स्थित समुद्र के बीच एक पुल वानर सेना की मदद से बनाया गया। जिस पर चलकर भगवान राम ने समुद्र पार किया ,लंका गए ,रावण का वध कर माता सीता को लेकर पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे।

-ऋषभ भरावा

देवताओं के शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा जी के पुत्र ‘नल’ और ‘नीर’ जो कि वानर थे , उन्ही के छूने से हर पत्थर पानी पर तैरता रहा ,डूबा नहीं।इसीलिए इस पुल को नलसेतु भी कहा जाता हैं।यह सब बाते वाल्मीकि रामायण में वर्णित हैं। पश्चिमी मान्यताओं में इसे ‘एडम ब्रिज’ कहा गया हैं लेकिन मैं यहाँ रामसेतु ही इसे कहूंगा ना कि ‘एडम ब्रिज’।

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वक्त के साथ-साथ वातावरण का तापमान बढ़ता गया ,ग्लेशियर्स पिघलते गए और समुद्र में पानी का लेवल बढ़ता रहा। इस कारण आज रामसेतु का अधिकतर हिस्सा पानी के अंदर कई फ़ीट गहरा डूबा हुआ हैं।लेकिन यह इतना भी गहरा नहीं डूबा हैं कि इस पर से जहाज गुजर जाए।अब जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारत के एक तरफ हैं बंगाल की खाड़ी ,उधर ओडिशा।,पश्चिम बंगाल आदि के तट हैं। वही इनके एकदम दूसरी तरफ हैं अरब सागर ,जहाँ गुजरात ,दमन दीव आदि के तट हैं। तो बंगाल की खाड़ी से अगर किसी जहाज को अरब सागर की तरफ जाना होता हैं तो उन्ही श्रीलंका की परिक्रमा करके जाना पड़ता हैं। क्योंकि इनके बीच का जो सबसे छोटा रूट हैं वहाँ रामसेतु बना हुआ हैं और उस पर से जहाज गुजर नहीं सकते हैं। इस से जहाजों का काफी समय (करीब 36 घंटे ) ,ईंधन (800 किमी का ईंधन )ज्यादा लगता हैं।यूँ समझिये कि भारत से भारत ही पहुंचने में हमे दूसरे देश को क्रॉस करना होता हैं और बहुत ज्यादा संसाधन उपयोग में लेना होता हैं। आज ही रिलीज हुई अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म ‘रामसेतु ‘ इसी तथ्य को केंद्र में रख कर बनी हैं।

2005 में कांग्रेस सरकार के समय एक प्रोजेक्ट को अनुमति मिली। प्रोजेक्ट का नाम था -सेतुसमुद्रम शिपिंग केनाल प्रोजेक्ट।इसके तहत रामसेतु का तीन सो मीटर चौड़ा एवं बारह मीटर गहरा भाग तोडना था। जिससे बने रास्ते से जहाज गुजरने लगे और भारतीय जहाजों को श्रीलंका की परिक्रमा ना करनी पड़े।बीजेपी लीडर ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और मांग कि इस विरासत को ना तोडा जाए ,क्योंकि यह हिन्दू मान्यताओं को जीवित रखे हैं। साथ ही साथ रामसेतु को नेशनल हेरिटेज बना कर इसे संरक्षित करने की मांग की। हालाँकि यह मामला कोर्ट में चल रहा हैं लेकिन इस प्रोजेक्ट पर रोक लग गयी।

अब आते हैं फिल्म ‘रामसेतु’ पर। इसमें अक्षय कुमार का रोल एक पुरातात्विक वैज्ञानिक का होता हैं।फिल्म में भी सेतुसमुद्रम प्रोजेक्ट को लेकर रामसेतु को तोड़ने के लिए कोर्ट से आदेश माँगा जाता हैं। अब रामसेतु को क्षति से बचाने के लिए यह साबित करना होता हैं कि यह वाकई में मानव निर्मित पुल हैं जिसे करीब 7000 साल पहले प्रभु श्रीराम ने बनवाया था। अक्षय कुमार को इस चीज की पुरातात्विक तरीके से जांच के लिए भेजा जाता हैं ,जिसके कई उतार चढ़ाव इस फिल्म में बताये गए हैं।

फिल्म शुरू होती हैं अफगानिस्तान की उस बौद्ध मूर्ति से जिसे तालिबान ने 2001 में तोड़ दिया था।अक्षय कुमार वहां मूर्ति के टूटने के बाद रिसर्च करने जाते हैं और वहां काफी कुछ अच्छा सा एक्शन वगैरह बताया जाता हैं। रामसेतु में सीधा बौद्ध धर्म दिखा कर ,एक बार तो लगा कि फिल्म जबरदस्त होने वाली हैं लेकिन फिर फिल्म ने आधे से ज्यादा समय बोर ही किया।आज सुबह से इस फिल्म की साड़ी स्क्रीन्स हाउसफुल ही थी।लेकिन फिल्म देखकर लगा कि फिल्म अगर चलेगी तो सिर्फ भगवान श्रीराम से जुड़े विषय के कारण। इतने अच्छे टॉपिक पर बनी इस फिल्म में एक प्रॉपर कहानी या यूँ कहां कि जुड़ाव की पूरी कमी थी।इस तरह की फिल्म रिसर्च और डेडिकेशन मांगती हैं लेकिन अक्षय कुमार ने तो फिल्म तीन महीने में ही निपटा दी। शुरू के 15 से 20 मिनट बाद फिल्म कही उठी ही नहीं ,मेरे पीछे कुछ सीनियर सिटीजन इसे देखने आये वो तो नींद निकालने लग गए थे।कही कही हलके फुल्के कॉमेडी डायलॉग से इसे उठाने का प्रयास किया गया लेकिन फिल्म से कोई जनता जुड़ नहीं पायी।

फिल्म में काफी कुछ एडवेंचर यात्रा को डालने का भी प्रयास किया गया। जैसे तूफ़ान में डूबती नाव से अक्षय को बचकर भागना हो ,या घने जंगलों में दुश्मन की बंदूकों से बचना हो। सब कुछ फेक सा लग रहा था।श्रीलंका के भी काफी टूरिस्ट डेस्टिनेशन जो रामायण से जुड़े हैं उन्हें फिल्माया गया।इसीलिए कई जगह प्राकृतिक दृश्य,समुद्री दृश्य काफी अच्छे लगेंगे लेकिन कहानी में ऐसा कुछ नहीं होगा जिस से आपको गूसबम्प्स आ जाए। हर चीज आप पहले से ही अनुमान लगा लेंगे कि आगे क्या होने वाला हैं। काफी चीजे इल्लॉजिकल लगेगी जैसे कि श्रीलंका की सिविल वॉर के समय खतरनाक इलाकों में इनका आराम से बिना डाक्यूमेंट्स के घूमना ,मगरमच्छ पाए जाने वाली नदी में यूँ ही कूद जाना ,श्रीलंका और भारत आराम से बिना दस्तावेजों के आराम से आना जाना। हालाँकि हर फिल्मों में ऐसे इल्लॉजिकल सीन होते हैं ,उन्हें इग्नोर करना होता हैं तब फिल्म अच्छी लगती हैं। लेकिन यह युक्ति भी यहाँ काम ना आएगी।फिल्म में जैकलीन ,नुसरत भरुचा ,सत्यदेव आदि अच्छे रोल लिए हुए हैं।

फिल्म में सबसे अच्छी चीज जो थी वो केवल अंत के 15 मिनट में ही आयी। उस समय जो डायलॉग्स आये ,वो सब दिल छू गए। डायलॉग कुछ इस तरह के थे -”अगर सरकार ताजमहल को साफ़ रखने के लिए उसके आस पास की फैक्ट्रियां हटवा सकती हैं ,कुतुबमीनार को बचाने के लिए मेट्रों को लम्बा रूट दिया जाता हैं तो क्या रामसेतु के लिए ऐसा कोई अच्छा कदम उठाने में क्यों हमे यह साबित करना पड़ रहा हैं कि यह भगवान श्रीराम ने ही बनवाया हैं ?” एक डायलॉग में रामसेतु तोड़ने की बात करने वालों को तालिबानी सोच वाला बताया गया हैं। असल में ऐसे कुछ कुछ डायलोग फिल्म्स में अगर जगह जगह आते रहते तो शायद फिल्म थोड़ी अच्छी लग सकती थी। अंतिम के 15 मिनट यह फिल्म आपको बहुत पसंद आएगी।थिएटर में ‘जय श्री राम’ के नारे गूंज उठेंगे।इस से पता पड़ता हैं कि फिल्म मेकर्स का इरादा एक अच्छी दिशा में था लेकिन फिल्म में वह जान ना डल पायी।अंत में हनुमान जी का भी शानदार रेफेरेंस इस फिल्म में देखने को मिलेगा।

और हाँ , रामसेतु का चाहे अधिकांश भाग समुद्र में डूबा हुआ हैं लेकिन आप गूगल मेप पर ‘इंडिया’ लिख कर सेटेलाइट मोड में इसे देख सकते हैं। आप ज़ूम श्रीलंका के पास ज़ूम करेंगे तो आपको पूरा रामसेतु का दर्शन हो जाएगा।

my rating :5 /10 ,वो भी इसीलिए क्योंकि इन्होने एक अच्छा टॉपिक लिया ,फ़ालतू के गाने नहीं डाले ,ना कोई मसाला लव स्टोरी इसमें डाली और फिल्म परिवार के साथ देखने लायक हैं। आशा हैं भविष्य में बॉलीवुड इसी तरह के विषय पर अच्छी फिल्मे बनाये।

जुड़े रहिये ,पढ़ते रहिये।

-ऋषभ भरावा (लेखक :चलो चले कैलाश )

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