रक्षा क्षेत्र में भारत आज आयात नहीं वरन निर्यात कर रहा..

पिछले कुछ वर्षों में भारत दुनिया में एक मजबूत सैन्य, आर्थिक और औद्योगिक शक्ति के रूप में उभरा है। दुनिया में उसका दबदबा बढ़ा है। देश की सरकार ने रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए जिस तेजी से कदम बढ़ाए हैं,उसने दुनिया को हैरत में डाल दिया है। अब हमने कई आधुनिक विमानों और उपकरणों का आयात करने के साथ-साथ देश में ही हथियारों और मिसाइलों के निर्माण का काम तेजी से शुरू कर दिया है। आज भारत दूसरे देशों को अपने बनाए हथियार बेच रहा है। इस दौरान भारत का रक्षा उपकरणों का आयात घटा है और निर्यात में बढ़ौतरी हुई है।

आज रक्षा क्षेत्र में हमारा निर्यात 17000 करोड़ रुपए तक जा पहुंचा है। यह अगले 5 वर्ष में बढ़कर 5 अरब अर्थात 35000 करोड़ रुपए तक जा पहुंचेगा। दुनिया की सबसे ताकतवर और टॉप 10 सेनाओं में भारतीय वायुसेना का तीसरा स्थान है। वह आज चीन, जापान और फ्रांस से आगे हो गया है। वल्र्ड डायरैक्टरी आफ मिलिट्री एयरक्राफ्ट की रैंकिंग  2022 में भारत तीसरे नंबर पर हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सफल नेतृत्व में देश एवं वैश्विक स्तर पर किए जा रहे प्रयासों का ही फल है कि आज वर्तमान भारत नए भारत में बदल रहा है।

भारत के ब्रह्मोस मिसाइल के अलावा आकाश एयर डिफैंस प्रणाली की भी खासी धूम है। भारत का स्वदेशी जैट विमान तेजस पूरी दुनिया में धूम मचा रहा है। दुनिया के बड़े-बड़े देशों ने इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है। डिफैंस इक्विपमैंट का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर अमरीका भी पूरी तरह भारत में विकसित इस लड़ाकू विमान में दिलचस्पी दिखा रहा है।

अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और फिलीपीन्स समेत 6 देशों ने भारत के हल्के लड़ाकू विमान तेजस में रुचि दिखाई है। वहीं मलेशिया पहले ही इस विमान को खरीदने की तैयारी में है। भारत ने मलेशिया को 18 तेजस बेचने की पेशकश की है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा निर्मित तेजस एक इंजन वाला बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान है जिसकी क्षमता अत्यधिक खतरे वाले माहौल में परिचालन की है।

दक्षिणपूर्व एशियाई देश वियतनाम, इंडोनेशिया और फिलीपींस के अलावा बहरीन, केन्या, सऊदी अरब, मिस्र, अल्जीरिया और संयुक्त अरब अमीरात ने आकाश मिसाइल को खरीदने में अपनी रुचि दिखाई है। आकाश मिसाइल के साथ ही कई अन्य देशों ने तटीय निगरानी प्रणाली, राडार और एयर प्लेटफार्मों को खरीदने में भी अपनी रुचि दिखाई है। भारत जल्द ही दुनिया के कई देशों यथा फिलीपींस, वियतनाम एवं इंडोनेशिया आदि को ब्रह्मोस मिसाइल भी निर्यात करने की तैयारी कर रहा है।

कुछ अन्य देशों जैसे सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात एवं दक्षिण अफ्रीका आदि ने भी भारत से ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने में अपनी रुचि दिखाई है। ध्वनि की रफ्तार से तीन गुणा तेज, माक 3 की गति से चलने वाली और 290 किलोमीटर की रेंज वाली ब्रह्मोस मिसाइलें भारत-रूस सैन्य सहयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। दोनों देशों के बीच इसे मिलकर बनाने पर 1998 में सहमति हुई थी। ब्रह्मोस मिसाइल का नाम ब्रह्मपुत्र और मस्क्वा नदियों के नामों को मिलाकर रखा गया है। जमीन, आकाश और समुद्र स्थित किसी भी लांच उपकरण से छोड़े जा सकने वाली ब्रह्मोस की खूबी यह है कि यह अपनी तरह का अकेली क्रूज मिसाइल है।

अब भारत रक्षा उपकरणों के निर्यात के मामले में दुनिया के शीर्ष 25 देशों की सूची में शामिल हो गया है। वर्ष 2019 में रक्षा उपकरणों के निर्यात के मामले में पूरे विश्व में भारत का स्थान 19वां था। 1990 के दशक में जहां भारत हथियारों का पता लगाने वाले राडार को अमरीका और इसराईल से पाने के लिए संघर्ष कर रहा था वहीं, हाल ही में भारत ने यही राडार आर्मेनिया को बेचने में सफलता प्राप्त की है।

भारत के रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी जानकारी के अनुसार भारत ने वित्तीय वर्ष 2017 में 1521 करोड़ रुपए के रक्षा उपकरणों का निर्यात किया था जो वित्तीय वर्ष 2018 में 4682 करोड़ रुपए का रहा और वित्तीय वर्ष 2019 में बढ़कर 10,745 करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच गया था। कुल मिलाकर पिछले 7 वर्षों के दौरान भारत ने 38,000 करोड़ रुपए के रक्षा उपकरणों का निर्यात 75 से अधिक देशों को किया है एवं भारत रक्षा उपकरणों का शुद्ध निर्यातक देश बन जाने की राह पर अग्रसर हो चुका है। आज भारत से 84 से अधिक देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात किया जा रहा है। इस सूची में कतर, लेबनान, इराक, इक्वाडोर और जापान जैसे देश भी शामिल हैं जिन्हें भारत बॉडी प्रोटैक्टिंग उपकरण, आदि निर्यात कर रहा है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि विश्व के दूसरे नंबर के हथियार आयातक भारत को अब मोदी सरकार स्वदेशी के मंत्र से हथियारों का निर्यातक देश बना रही है। सरकार का लक्ष्य है कि 2024-25 तक रक्षा निर्यात को बढ़ाकर 36,500 करोड़ किया जाए। सरकार का ध्यान स्वदेशी हथियार निर्माण पर अधिक है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए केंद्र ने आर्डनैंस फैक्ट्री बोर्ड और 41 आयुध निर्माण फैक्ट्रियों को मिलाकर रक्षा क्षेत्र में सात सार्वजनिक उपक्रम (डी.पी.एस.यू.) बना दिए हैं। इसका उद्देश्य प्रशासनिक चुस्ती के साथ कामकाज में पारदर्शिता और तेजी लाना है।

पिछले 4-5 वर्षों में हमारा डिफैंस आयात लगभग 21 फीसदी कम हुआ है। इतने कम समय में यह सब हुआ है। हमें उन ताकतों के प्रयासों को विफल करना होगा, जो भारत के हितों को नुक्सान पहुंचाना चाहते हैं। खुद पर भरोसा रखते हुए भारत के हितों को हानि पहुंचाने वाली ताकतें चाहे देश में हों या फिर विदेश में, उनकी हर कोशिश को नाकाम करना हर देशवासी का कर्तव्य है।
साभार-निरंकार सिंह

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