1993-94 के दौर में एक समाचार बहुत चर्चित हुआ था “धोतीधारी बच्चाचोर”

1993-94 के दौर में एक समाचार बहुत चर्चित हुआ था – धोतीधारी बच्चाचोर।
लगभग दो वर्ष तक पूरे देश के अखबार इससे सम्बंधित समाचारों से रंगे रहते थे।
कोई धोती धारी व्यक्ति है जिसके बिच्छू डंक नुमा मूंछें हैं, वह नाबालिग बच्चों को उठाकर सुनसान में ले जाता है और मार कर गायब हो जाता है। बच्ची है तो बलात्कार कर भाग जाता है।

आश्चर्यजनक रूप से यह खबर दो वर्ष तक सभी समाचार पत्रों में इतनी घोटी गई कि लोग सुबह अखबार हाथ में आते ही सबसे पहले यह देखते कि आज धोतीधारी चोर के बारे में क्या न्यूज है।

पूरे उत्तर भारत में यह खबर इस प्रकार से चलाई गई थी कि हरेक व्यक्ति को लगता कि धोतीधारी चोर उसी के आसपास विद्यमान है। साधारण आपराधिक अलग अलग घटनाओं को बहुत करीने से जोड़कर ऐसा वातावरण बनाया गया और उनकी व्याख्या भी इसी भांति होने लगी। लोगों ने पुलिस को कोसा। जबरदस्त अविश्वास बढ़ा। पड़ोस में कोई धोती पहनता है तो उसे शक की नजरों से देखा जाता। कोई बच्ची कहीं रोती मिलती तो भी इससे जोड़ा जाता।
हालात यह थे कि किसी स्कूल आदि में यदि किसी लड़की के पहली बार माहवारी आयी है और वह घबराई हुई है तो तुरंत ख़बर बनती लहूलुहान अवस्था में बच्ची को छोड़ धोतीधारी फरार!!
स्थिति यह हो गई कि ग्रामीण लोगों ने मूंछें रखना छोड़ दिया, धोती पहने साधारण मैला कुचैला व्यक्ति देखकर उनकी धुनाई होने लगी।
बच्चों से सम्बंधित सभी अपराध धोतीधारी से जुड़ते चले गये लेकिन आज तक किसी थाने में कथित धोतीधारी न तो पकड़ा गया न ही रेकॉर्ड है, ऐसा ज्ञात हुआ।
इस अफवाह के बाद लोगों को धोती से घोर घृणा हो गई। बच्चियों के मन में धोती और मूंछ के प्रति एक स्थायी भय पैदा कर दिया गया। हिन्दू अपराधी होता है, यह बुरी तरह से स्थापित हुआ, इसी समय फ़िल्म इंडस्ट्री ने चिकने चेहरे हीरो के रूप में उतारे और उनकी छवि चमकाकर  लड़कियों के उस “धोती के प्रति भय” के विपरीत हीरो के कंधे पर सर रखे उसे सुरक्षित दर्शाया गया।
लोगों ने सार्वजनिक धोती पहनने और मूंछ रखने से मारे भय के किनारा कर दिया। फ़िल्म बेटा में अनिल कपूर धोती पहनकर आता है, उसके बाद किसी भी तरह से धोती को उत्तम अथवा सभ्य नहीं दिखाया गया।
रामजन्म भूमि आंदोलन, 1992 में जो थोड़ा बहुत हिन्दू गौरव जागृत हुआ था, उसकी भ्रूण हत्या हो गई।
यह ट्रिक इतनी सटीक और हिट रही कि बाद में ऐसे षड्यंत्रों का बार बार प्रयोग हुआ, यहाँ तक कि दो वर्ष पूर्व पालघर के साधुओं की हत्या भी इसी “बच्चा चोरी” की अफवाह से ही करवाई गई।

– साभार

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