अमेरिकावासी अमित सिंघल के सहपाठी मित्र माक्रों बने फ्रांस के राष्ट्रपति
“फ्रांस के राष्ट्रपति, मित्र एवं क्लासमेट एमानुएल माक्रों को चुनाव में जीत के लिए हार्दिक बधाई एवं नए कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं। आशा है प्रधानमंत्री मोदी एवं आप के मध्य का तारतम्य भारत-फ्रांस मित्रता एवं साझेदारी को नयी ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।”
प्रथम बार 2017 में क्लासमेट एमानुएल माक्रों के निर्वाचन पर अमित सिंघल जी का लेख..
Ecole nationale d’administration (राष्ट्रीय प्रशानिक विद्यालय) या ENA फ्रांस का सबसे प्रतिष्ठित विद्यालय है.
इस विद्यालय ने फ्रांस को कई राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, वित्त, विदेश मंत्री इत्यादि दिए है. इस देश के सारे प्रिफे (Prefet) जो हर जिले के मुखिया होते है, ENA के ग्रेजुएट्स होते है. सिर्फ यह कह देना कि आप ENA के पूर्व छात्र है, फ्रांस और यूरोप में सफलता के दरवाजे खोल देता है.
इसी ENA में सन 2002 में फ़्रांसिसी भाषा में एक लिखित परीक्षा और दो साक्षात्कार (दुसरे साक्षात्कार के लिए एक प्रोफेसर ENA से भारत आये थे) के बाद मुझे एडमिशन मिला. उस समय ऐना के दो कैंपस पेरिस और स्त्रासबूर्ग (Strasbourg) में होते थे (अब केवल स्त्रासबूर्ग में है). सितम्बर 2002 के पहले सप्ताह में मैं पत्नी और चार वर्ष के पुत्र के साथ फ्रांस पहुँच गया. सारा खर्चा फ्रांस की सरकार वहन कर रही थी और व्यक्तिगत खर्च के लिए मासिक भत्ता मिलता था.
स्त्रासबूर्ग में अकाउंट खोलने के लिए एक दिन सुबो-सुबो बैंक पहुंच गया. मुझे बतलाया गया कि अकाउंट खोलने के लिए rendez-vous या अपॉइंटमेंट लेना होगा और अगला rendez-vous एक सप्ताह बाद मिलेगा. किसी भी पब्लिक या प्राइवेट सर्विस – जैसे कि मेडिकल अपॉइंटमेंट – के लिए rendez-vous आवश्यक था. आप मुँह उठाये किसी भी जगह बिना rendez-vous के पहुँच जाए तो आप को वापस भेज दिया जायेगा. बेटे के एडमिशन के लिए स्कूल में सिर्फ उसके टीकाकरण का रिकॉर्ड और होम एड्रेस का प्रूफ माँगा गया और उसका एडमिशन बिना एक यूरो खर्च करे हो गया.
मुझे याद है कि हम स्त्रासबूर्ग शनिवार दोपहर को पहुंचे थे. कुछ देर होटल-अपार्टमेंट में आराम करने के बाद जब दूध, ब्रेड खरीदने गए तो पाया कि बाजार शनिवार को दोपहर की शुरुवात में ही बंद हो जाता है और रविवार भी बंद रहेगा. लोगो ने बतलाया कि स्टेशन के पास एक-आध दुकाने खुली मिल जाएगी और ऐसे हम दूध, दही, ब्रेड, बटर इत्यादी कुछ मॅहगा खरीद के लाये. हर वस्तु का दाम सुनकर हालत ख़राब हो जाती थी.
मेरे लिए ऐना की दुनिया एकदम अनोखी थी. लगभग 190 छात्रों के बीच मैं अकेला भारतीय था. सब कुछ अजूबा था. उस समय इंटरनेट पे ज्यादा सूचनाएं उपलब्ध नहीं थी; फ़्रांसिसी भाषा केवल भारत में पढ़ी थी, दैनिक जीवन में प्रयोग नहीं किया था. अतः थोड़ा नर्वस भी था. हमारे बैच को स्वास्थ्य से सम्बंधित रिपोर्ट लिखने के लिए १५-२० लोगो के ग्रुप में बाँट दिया था.
हमारे ग्रुप को स्वास्थ्य बीमा के क्षेत्र में पेशेंट के निजी भुगतान का विषय दिया गया. दुसरे शब्दों में, एक पेशेंट – जिसके पास हेल्थ इन्स्योरेन्स है – को स्वास्थ्य सेवाओं के लिया कितना भुगतान करना चाहिए और कैसे? अब, मुझे तो हेल्थ इन्स्योरेन्स के बारे में कुछ पता नहीं था क्योकि भारत में ऐसा कोई बीमा उस समय नहीं था. मेरी मनोस्थिति और उलझन को भापकर उमर में कम हमारे ग्रुप के एक छात्र मेरे पास आये और स्वयं ही हेल्थ इन्स्योरेन्स का कांसेप्ट एक्सप्लेन किया और बतलाया कि इस विषय में हमें यह छान-बीन करनी होगी कि पेशेंट से डॉक्टर या हॉस्पिटल की हर विजिट के समय ही उससे एक निर्धारित रकम – कुछ यूरो, जैसे कि एक, दो या तीन यूरो – रखवा लिया जाए या फिर पेमेंट का कोई अन्य मॉडल सोचा जाए.
इस मॉडल में हमें या यह जांचना होगा कि पेशेंट स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ भी उठाये, लेकिन उन सुविधाओं का दुरुपयोग भी ना कर, जैसे कि बेमतलब की विजिट या दवाये ना खाना. इस तरह, उस छात्र से मेरी मित्रता हुई. बाद में, उनके साथ काफे में बैठकर घंटो गप्प लगती थी, दुनिया भर की बाते होती थी. उनकी विद्वता, मिलनसार और हसमुँख स्वाभाव ने मुझे काफी प्रभावित किया था.
फिर जब हम एक वर्ष बाद पेरिस पहुंच गए, तो हमने उन्हें अपने घर डिनर पे बुलाया. सामान्यतः, हम फ्रेंच मित्रो के लिए दाल मखनी, भिन्डी एवं आलू की मसालेदार सब्जी और चावल बनाया करते थे. उनका भी हमने उसी भोजन और वाइन से सत्कार किया था.
चूंकि उस समय डिजिटल कैमरा नहीं था, और फिल्म रोल वाले कैमरे की फोटो बहुत मॅहगी होती थी, अतः मैं फोटो के मामले में कंजूसी कर जाता था. इसलिये, मेरे पास फ्रांस में ऐना की बहुत कम फोटो है.
आज मेरे वह मित्र – एमानुएल माक्रों – फ्रांस के राष्ट्रपति निर्वाचित हो गए है. उनको मेरी तहेदिल से बधाई.