निखिल त्रिपाठी : सरकारों का कार्य इंफ़्रा स्ट्रक्चर देना है, नौकरियाँ उद्यमी अपने आप व्यवसाय कर..

भारत सरकार जब दसियों हज़ार करोड़ एयर इंडिया पर फूंक रही थी, चीन सरकार ने वह पैसे गाँव गाँव तक शानदार सड़कें बनाने में खर्च किए. भारत सरकार जब दसियों हज़ार करोड़ bsnl में सब्सिडी पर खर्च कर रही थी, चीन सरकार इंटेरनेट नेट्वर्क पर वह पैसा खर्च कर रही थी. भारत सरकार पोस्ट ऑफ़िस में मुफ़्त तनख़्वाह देने पर जो पैसे खर्च कर रही थी चीन सरकार ने पोस्टल शिपिंग नेट्वर्क बनाया.

 

Veerchhattisgarh

सरकारों का कार्य इंफ़्रा स्ट्रक्चर देना है, नौकरियाँ उद्यमी अपने आप व्यवसाय कर दे लेते हैं.

एक बड़ा उदाहरण है आज की तारीख़ में अमेरिका में बिकने वाला अधिसंख्य माल चाइना से आता है. इस लिए नहीं कि चाइना सबसे सस्ता बना कर बेंचता है. इस लिए भी नहीं कि वह चीजें केवल चाइना में बनती हैं – बड़े आइटम मोबाइल आदि छोड़ दिए जाएँ तो छोटे घरेलू आइटम जैसे रिमोट रखने वाली डलिया, मोबाइल कवर, साबुन दानी आदि रोज़ मर्रा की लाखों वस्तुवें हैं जिनको बनाने में कोई विशेष टेक्नॉलजी नहीं लगती. अमेरिका में ऐसा हर सामान चीन से आता है, चीन के दसियों करोड़ लोगों की नौकरी केवल और केवल यही सामान बनाने के कारख़ानों में है.

ऐसा नहीं है कि भारत में यह सामान बन नहीं सकता या महँगा बनता है. उल्टे भारत में हाथ की कारीगरी और टेक्निकल माइंड चीन से बेहतर है. यह सब सामान भारत में चीन से बेहतर बनता था और बनता है.

अंतर बस यह रहा कि चीन सरकार ने इंफ़्रा स्ट्रक्चर ज़बर्दस्त बनाया. भारत सरकार जब दसियों हज़ार करोड़ एयर इंडिया पर फूंक रही थी, चीन सरकार ने वह पैसे गाँव गाँव तक शानदार सड़कें बनाने में खर्च किए. भारत सरकार जब दसियों हज़ार करोड़ bsnl में सब्सिडी पर खर्च कर रही थी, चीन सरकार इंटेरनेट नेट्वर्क पर वह पैसा खर्च कर रही थी. भारत सरकार पोस्ट ऑफ़िस में मुफ़्त तनख़्वाह देने पर जो पैसे खर्च कर रही थी चीन सरकार ने पोस्टल शिपिंग नेट्वर्क बनाया.

आज आपको जान कर आश्चर्य होगा कि अमेरिका में बैठ कर एक उपभोक्ता चीन से अधिसंख्य सामान फ़्री शिपिंग में मँगा सकता है. बड़ी चीजें छोड़िए एक usb केबल अमेरिका में मंगाना है तो डेढ़ डालर में अली इक्स्प्रेस से चाइना से ऑर्डर कर देंगे फ़्री शिपिंग में आ जाएगा. भारत में यह केबल बनता तो हाफ़ डालर में है लेकिन इसे अमेरिका भेजने में इससे दस गुणे पैसे लग जाएँगे. भारतीय पोस्ट ऑफ़िस तो खैर सीधे मना कर देगा कि कपड़े में पैक कर लाओ परसों आना तब बात होगी. प्राइवट कूरियर सर्विस भी अंततः सरकारी नेट्वर्क ही इंफ़्रा में यूज़ करती हैं.

चीन ने शिपिंग नेट्वर्क बनाया, अली बाबा जैसी कम्पनियों ने प्लेट फार्म दिया, आज चीन में दसियों हज़ार छोटी छोटी कम्पनियाँ हैं जो भारत की कुल इकॉनमी से ज़्यादा का माल विदेश निर्यात करती है इस इंफ़्रा स्ट्रक्चर का इश्तेमाल कर.

उल्लेखनीय है कि चीन कॉम्युनिस्ट राज है. वहाँ भी शाशकों के अंततः समझ आ गया कि व्यापार करना, नौकरी देना सरकार का काम नहीं. सरकार माहौल बना देगी, सुरक्षा इंफ़्रा दे देगी बाक़ी काम जनता कर लेगी.

भारत का दुर्भाग्य यह है कि भारत की राजनीति की ज़्यादातर पार्टियाँ और जनता समाजवाद में पली बढ़ी है. उसकी सोंच का विकास मॉडल इतने में सीमित हो जाता है कि सरकार पोस्ट ऑफ़िस में बैठने की सरकारी नौकरी दे दे, बस यही विकास है. मुख्य बात यह भी है कि इस अप्रोच से केवल उनको दिए गए पैसे का ही नुक़सान नहीं होता बल्कि उन्होंने दसियों उद्योगों को पैदा होने से पहले और सैकड़ों नौकरियों को सृजित होने से पहले ही समाप्त कर दिया.

भारत का जितना नुक़सान समाजवाद ने सत्तर साल में किया, उतना सात सौ वर्षों की ग़ुलामी ने नहीं किया.

साभार : निखिल त्रिपाठी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *