‘हुस्न’ वाली ही बात क्यों याद आई ?…मेरी सरकार का एक ही धर्म, भारत सबसे पहले…मातृ भाषा में संवाद की विशिष्टता ने ब्रांड मोदी को विदेशों में भी स्थापित किया
ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज एक प्रकार से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी में बोलकर हिंदी को ऊंचाइयों पर ले जाने का प्रयास कर रहे थे। तब live telecast में कुछ लोगों के बकवास कमेंट आ रहे थे कि कैसा प्रधानमंत्री है जो विश्व में सबके सामने इंग्लिश के स्थान पर हिंदी में बोलकर देश की नाक कटवा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में सबसे पहले 1977 में हिंदी में भाषण दिया था अटल बिहारी बाजपेयी जी ने विदेश मंत्री रहते हुए दिया था और इसके बाद वर्ष 2002 में भी संयुक्त राष्ट्र संघ के सहस्राब्दी वर्ष में भाषण हिंदी में दिया था। तब सम्मान स्वरूप सभी सदस्यों ने उठकर भारत के प्रतिनिधियों का तालियों से स्वागत किया था।
इसके बाद नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193 सदस्य देशों के सामने हिंदी में भाषण दिया था।
मातृभाषा में किया गया संवाद सार्वजनिक जीवन, खासकर राजनीति में व्यक्ति को लोकप्रियता के शिखर पर ले जाता है।
मातृ भाषा में सीधा संवाद कर जनता से जुड़ पाने की कला सबको नही मिल पाती। वर्तमान में नरेंद्र मोदी इसी कद के नेता हैं। पब्लिक से सीधे संवाद की बेहद सहज लेकिन उतनी ही प्रभावपूर्ण शैली के वे धनी हैं। यह एक ऐसी विशेषता है, जिसने ब्रांड मोदी की लोकप्रियता को देश से बाहर विदेशों में भी स्थापित कर दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी के गौरवमयी व्यक्तित्व को हिंदी में उनकी संवाद शैली ने सभी मंचो पर विशिष्ट श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है। राजनीति के मैदान में लालू यादव भी अच्छे से बोल जाते हैं लेकिन अंतर बिकाऊ मसाला फिल्मों और ठेठ क्लासिक फिल्मों में करने वालों को साफ नजर आ जाता है।
जनता से सीधे – प्रभावी संवाद की लगातार कोशिश राहुल गांधी ने भी की, लेकिन परफॉरमेंस में फेल हो गए। वही ओवैसी भी बोलने में आगे रहते हैं, लेकिन उनकी बातों में सबसे ज्यादा नकारात्मकता नजर आती है। उनकी नकारात्मक बातें लोगों को कुछ समय के लिए उत्तेजित जरूर कर जाती है लेकिन स्थायी प्रभाव नहीं छोड़ सकती।
नियोजित पहले से तैयार कर लिखे गए भाषण को भी पढ़ने की कला भी सभी नेताओं को नहीं आती है। असल कला है प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति और यह सबके बूते की बात नहीं। मातृभाषा में संवाद की यह कला सीखने से नहीं बल्कि है। यह सिर्फ और सिर्फ़ परवरिश से आती है। जनता के बीच से जनमे नरेंद्र मोदी जैसे खांटी जमीनी नेता ही इस स्तर तक पहुंच सकतें हैं।
प्रधानमंत्री मोदी को सुनने वालों की लिस्ट में अमीर-गरीब हिंदू-मुसलमान भी। गांव का पंच-शहर का पार्षद, देश के लोग भी हैं और दुनिया के भी। उनकी सहजता भाषण के मध्य उनकी बॉडी लैंग्वेज से भी स्पष्ट नजर आती है। सहजता इसलिए झलकती है क्योंकि बिना किसी लागलपेट के बात रखते हैं। यह जितनी सहजता जितनी सरल होती है, उससे ज्यादा आक्रामक भी। विरोधियों को उन्हीं की बात पर घेरना हो या मन की बात रखनी हो, हर बात फिट निशाने पर पड़ती है।
पुलवामा कांड के बाद उन्होंने जब कहा कि “घर में घुसकर मारेंगे..” और तब उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि यह मात्र भाषणबाजी नहीं है। विपक्षी दलों के नेता भले ही इसे जुमलेबाजी कहें, लेकिन भारत की जनता प्रधानमंत्री मोदी की बातों को जुमलेबाजी नहीं मानती। ये तय है कि अगर जुमलेबाजी मानती तो मोदी का नाम ब्रांड मोदी नहीं बन सकता था।
राष्ट्रीय मंच हो या अंतरराष्ट्रीय..कोई भी मंच हो, प्रधानमंत्री के आने से पूर्व ही मोदी..मोदी… का गूंजता शोर उनकी लोकप्रियता की गाथा कह जाता है। उनके नाम के शुरू के 2 अक्षरों को मिलाकर बना ” नमो-नमो ” आज भी लोकप्रियता के शीर्ष स्तर पर है।
आज तक किसी नेता को यह अपनत्व जनता से नहीं मिला है। मोदी की भाषण शैली की जनता दीवानी है। चाहे वह भाषण के दौरान बीच में पॉज लेना हो या जनसमुदाय को देखते हुए पानी पीना। स्थिति यह हो जाती है कि भाषण के दौरान प्रधानमंत्री अगर ब्रेक लेटें हैं तो जनता मोदी की ओर से संवाद करने लगती है। पीएम मोदी के सोउद्देश्य भाषणों में शब्दों का अद्भुत चयन के साथ ही संस्कृत के श्लोकों का वर्तमान स्थिति में उस श्लोक का आशय के साथ ही विश्व की सबसे पुरातन भारतीय संस्कृति के दर्शन का समावेश मिलता है। इस बात को उनके धुर राजनीतिक विरोधी भी समय-समय पर सार्वजनिक जीवन में स्वीकार भी करते हैं।
जिन्होंने देश को लूटा है, उन्हें डरना ही होगा…
संसद के शीतकालीन सत्र में 7 फरवरी 2019 को प्रधानमंत्री मोदी का यह भाषण अद्भुत माना गया है। यहां मोदी का आत्मविश्वास और विपक्ष पर हमला इतना तेज था कि विपक्ष को भागने के लिए रास्ता बंद मिला। इस दिन कांग्रेस और विपक्ष पर मोदी का रुख बेहद आक्रामक रहा था और विपक्ष सिर्फ मुंह फाड़े बैठा था। प्रधानमंत्री मोदी कहा – ” जिन्होंने देश को लूटा है, उन्हें डरना ही होगा।”
कांग्रेस नेता मणिकार्जुन खड़गे ने कविता ” हुस्न-ओ-आब तो ठीक है लेकिन गुरूर क्यों तुमको इस पर है, मैंने सूरज को हर शाम इसी आसमान में ढलते देखा है।’ ‘ इस पंक्ति से खड़गे ने पीएम मोदी पर निशाना साधा था। जिस पर कांग्रेस के सांसदों ने खूब तालियां बजाईं थी।
इस पर प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस के कार्यकाल के कामकाज पर सवाल उठाकर कांग्रेस को घेरते हुए कहा था कि ” मुझे नहीं समझ नहीं आता, खड़गे को ‘हुस्न’ वाली ही बात क्यों याद आई? उन्हें आगे की लाइनें क्यों नहीं याद आईं।”
इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भी उसी कविता के आगे अंश को पढ़कर बताया – ” जब कभी झूठ की बस्ती में सच को तड़पते देखा है? तब मैंने अपने भीतर किसी बच्चे को सिसकते देखा है ? “
इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ और विकास के समर्थन में अपने मजबूत इरादे जाहिर करते हुए कांग्रेस के साथ समूचे विपक्ष को आईना दिखाती और आत्मविश्वास व संकल्प को जगाती सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक कविता की पंक्तियां पढ़कर पलटवार किया था – ” ‘सूरज जाएगा भी तो कहां, उसे यहीं रहना होगा। यहीं हमारी सांसों में, हमारी रगों में, हमारे संकल्पों में, हमारे रतजगों में। तुम उदास मत हो, अब मैं किसी भी सूरज को नहीं डूबने दूंगा…।’
उनके एक-एक वक्तव्य के कई अर्थ थे। उदाहरण देखिए- ” अब तो महामिलावट आने वाली है। यह महामिलावट देश ने 30 साल देखी है। स्वस्थ समाज महामिलावट से दूर रहता है। “
मेरी सरकार का एक ही धर्म, भारत सबसे पहले..
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए फरवरी 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने सांप्रदायिकता फैलाने वालों पर जमकर निशाना साधते हुए गरजे थे। स्पष्ट शब्दों में मोदी ने तब कहा था – “मेरी सरकार का एक ही धर्म है, ‘भारत सबसे पहले’, एक ही धर्मग्रंथ है, ‘भारत का संविधान’, एक ही भक्ति है, ‘भारत भक्ति’, एक ही पूजा है, सवा सौ करोड़ देशवासियों का कल्याण।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बच्चों, किसानों, पुलिस, मजदूर, वाहन चालकों, डॉक्टर, टीचर्स, कलेक्टर समाज के हर वर्ग से संवाद स्थापित कर लेतें हैं और साथ ही सबसे बड़ी बात कि उनके ही कार्यक्षेत्र से संबंधित प्रश्न भी पूछ लेतें हैं लेकिन कोई उनसे पूछे तो जवाब भी देतें हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के संवाद के कौशल का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं मन की बात जिसमें अभी तक वे 80 बार देशवासियों से सीधे संवाद कर चुके हैं। मन की बात के हर संस्करण में भी उनका आत्मविश्वास देखने लायक रहता है। लोग भी इस कार्यक्रम का बड़ी उत्सुकता से इंतजार करते हैं। कार्यक्रम में अपने सवाल लोग भेजते हैं। जिनमें से प्रधानमंत्री चुने हुए सवालों का जवाब देते हैं।