टूलकिट के सामने आते ही,केवल सामने आते ही दवाइयों का अभाव समाप्त हो गया, कालाबाजारी समाप्त हो गयी,रेमडिसिविर की माँग समाप्त हो गयी ; यही नहीं , WHO को भी ज्ञान प्राप्त हो गया और WHO ने रेमडिसिविर को कोरोना के इलाज से ही हटा दिया।
...उल्लेखनीय है कि रेमडिसिविर पहले भी कोरोना की दवाई नहीं थी ,फिर ऐसा क्या किया गया कि रेमडिसिविर की लाखों,करोड़ों डोज मुँहमाँगी कीमत पर बिकी और इसी रेमडिसिविर के कारण अनेकानेक लोग मृत्यु को प्राप्त हुए ।
टूलकिट के सामने आते ही,केवल सामने आते ही पूरे देश में ऑक्सीजन की कमी दूर हो गयी।अब ऑक्सीजन की कोई पूछ ही नहीं रहा।
टूलकिट के सामने आते ही,केवल सामने आते ही देश में लगभग 50% ICU बेड खाली हो गये।अभी दस दिन पहले देश में ऐसे 10,000 से अधिक बेड की कमी थी।
टूलकिट के सामने आते ही,केवल सामने आते ही गंगा में लाशें बहनी बंद हो गयीं ; जलती चिता की चर्चा पर विराम लग गया ; श्मशान से हो रही पत्रकारिता खो गयी ; कोरोना से हुई मौत का दिन-रात का प्रसारण बन्द हो गया ; मौत पर अनवरत चल रही राजनीति शांत हो गयी।
टूलकिट के सामने आते ही,केवल सामने आते ही देश की लगभग सभी मीडिया-संस्थानों की रुचियाँ बदल गयीं,उनके लक्ष्य बदल गये ; वैक्सीन पर ज्ञान देने वाले मर गये ; लगातार नकारात्मक संदेश देने वाले छिप गये ; सारे आमी,वामी,कामी बिल में चले गये।
एक बात तो स्पष्ट है कि जब तक टूलकिट सामने न था,संकट चरम पर था ; टूलकिट के सामने आते ही संकट नियंत्रण में है।
अब टूलकिट या तो भगवान है या टूलकिट वाले हैं -
“ मौत के सौदागर "