सुप्रीम कोर्ट का अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम पर विशेष फैसला
किसी भी अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति को लेकर घर के भीतर कही कोई अपमानजनक बात, जिसका कोई गवाह न हो, वह अपराध नहीं हो सकता। अपने एक फैसले में यह बात सुप्रीम कोर्ट ने कहते हुए न्यायालय ने याचिकाकर्ता पर लगा अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम का मुकदमा रद्द करने का आदेश दिया है।
न्यायालय ने कहा कि यह कहा गया था कि यदि भवन के बाहर जैसे किसी घर के सामने लॉन में अपराध किया जाता है, जिसे सड़क से या दीवार के बाहर लेन से किसी व्यक्ति द्वारा देखा जा सकता है तो यह निश्चित रूप से आम लोगों द्वारा देखी जाने वाली जगह होगी। पीठ ने कहा कि प्राथमिकी के मुताबिक, महिला को गाली देने का आरोप उसकी इमारत के भीतर हैं। यह मामला नहीं है जब उस समय कोई बाहरी व्यक्ति सदस्य (केवल रिश्तेदार या दोस्त नहीं) घर में हुई घटना के समय मौजूद था।
उत्तराखंड के इस मामले में एक औरत ने हितेश वर्मा पर घर के भीतर अपमानजनक बातें कहने का आरोप लगाया था। इसी के आधार पर पुलिस ने आदमी के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम के तहत सभी तरह के अपमान और धमकियां नहीं आतीं। अधिनियम के तहत केवल वे मामले आते हैं जिनके चलते पीड़ित व्यक्ति समाज के सामने अपमान, उत्पी़ड़न या संत्रास झेलता है।
अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करने के लिए अन्य लोगों की मौजूदगी में अपराध होना आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा कि तथ्यों के दृष्टिगत अनुसूचित जाति-जनजाति ([उत्पीड़न रोकथाम)] अधिनियम के सेक्शन 3([1)]([आर)] के अनुसार अपराध नहीं हुआ है। इसलिए मामले में दाखिल आरोप पत्र को रद किया जाता है। आरोपित व्यक्ति के खिलाफ अन्य धाराओं में मामला दर्ज कर मुकदमा चलाया जा सकता है। कोर्ट ने 2008 में इस सिलसिले में दिए गए एक अन्य फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उसमें भी सार्वजनिक स्थान और ऐसा स्थान जहां पर लोगों की मौजूदगी हो, को परिभाषिषत किया गया है। अगर कोई अपमानजनक कृत्य खुले में होता है और उसे अन्य लोग देख-सुन लेते हैं, तो वह एससी-एसटी एक्ट के तहत अपराध की श्रेणी में आ जाएगा।
