किसी भी क्षेत्र को जीतने का सबसे अच्छा तरीका है उसकी संस्कृति पर कब्ज़ा कर लिया जाए, उसकी भाषा को नष्ट कर दिया जाए – उपराष्ट्रपति
आक्रमणकारियों ने हमारे दिल पर चोट करने के लिए, हमारे धार्मिक स्थान के ऊपर ही अपना स्थान बना दिया – उपराष्ट्रपति
किसी भी देश की सांस्कृतिक विरासत का प्रामाणिक स्तंभ है भाषा – उपराष्ट्रपति
भाषा साहित्य से परे है क्योंकि वह समसामयिक परिदृश्य को परिभाषित करती है – उपराष्ट्रपति
यदि हमारी भाषा नहीं पनपेगी तो इतिहास भी नहीं पनपेगा – उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने 98वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन की पूर्व संध्या पर प्रतिनिधिमण्डल को संबोधित किया
उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने आज कहा कि “किसी क्षेत्र को जीतने का सबसे अच्छा तरीका यह नहीं है कि उस पर शारीरिक रूप से कब्ज़ा करके उसकी संस्कृति पर कब्ज़ा कर लिया जाए, उसकी भाषा को नष्ट कर दिया जाए।”
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री धनखड़ ने आगे कहा कि, “भाषा साहित्य से परे है क्योंकि वह साहित्य समसामयिक परिदृश्य, तत्कालीन परिदृश्य, तत्कालीन चुनौतियों को परिभाषित करता है और यह ज्ञान और बुद्धिमत्ता पर भी ध्यान देता है।”
मातृभाषा के महत्व पर ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने कहा कि, “हाल के वर्षों में भाषा पर भारी जोर दिया जा रहा है। तीन दशक के बाद एक बहुत अच्छा प्रयास किया गया। बदलाव किया गया, बदलाव की प्रमुखता है मातृभाषा। जिस भाषा को बच्चा-बच्ची सबसे पहले समझते हैं। जिस भाषा में विचार आते हैं। वैज्ञानिक परिस्थितियाँ भी यह इंगित करती हैं कि जैविक क्या है? जो व्यवस्थित रूप से विकसित होता है वह सुखदायक और स्थायी होता है और सभी के कल्याण के लिए होता है।”
“भारत के संविधान के भाग-15 में, जहां चुनाव की चर्चा की गई है, वहां किसका चित्र है? शिवाजी महाराज का। कभी नहीं झुके, इसीलिए संविधान निर्माताओं ने सोचकर, समझकर, दूरदर्शिता दिखाते हुए, चुनाव वाले मामले में शिवाजी महाराज का चित्र रखा है।”
