देवेंद्र सिकरवार : विदेशनीति.. वाक्य एक अर्थ अनेक..ट्रंप ने मोदी को दो टूक उत्तर दे दिया है कि…

जब लोक सेवा आयोग की परीक्षा दे रहा था तब एक बार निबंध लेखन में मैंने जिस टॉपिक का चुनाव किया वह था –

‘भारत की विदेशनीति’

Veerchhattisgarh

उस विस्तृत निबंध में मैंने कौटिल्य के अर्थशास्त्र के आलोक में मौर्य युग से गुप्त युग और 1947 से लेकर तत्कालीन युग तक की विदेशनीति का विस्तृत समाकलन किया था।

उस निबंध में मैंने लिखा था-

“राष्ट्र की विदेशनीति का उद्देश्य राष्ट्र का सम्मान बढ़ाना नहीं होता है बल्कि राष्ट्र के रणनीतिक व आर्थिक हितों की रक्षा करना होता है जिसमें न कोई स्थाई मित्र होता है और न कोई स्थाई शत्रु।”

अटल जी के काल में जसवंत सिंह ने इसी नीति पर विदेशनीति का संचालन प्रारम्भ किया और मोदी जी ने विदेश नीति के उसी मूलभूत कौटिल्य सिद्धांत का अक्षरश अनुकरण किया जिसका विस्तृत विवरण मैंने 2015 के अपने प्रसिद्ध वायरल लेख ‘The Great Game’ में दिया था।
(आप इसे इसी शीर्षक से ढूंढकर पढ़ सकते हैं।)

अर्थनीति के ठीक विपरीत गृह, रक्षा और विदेशनीति में हमें सार्वजनिक रूप से जो दिखाई देता है केवल उतना ही सच नहीं होता है बल्कि आइसबर्ग का ऊपरी सिरा भर होता है और गोपनीयता की लौह दीवारों के पीछे जो कुछ फैसले होते हैं वही आइसबर्ग का असली जल में अदृश्य भाग होता है।

इसीलिये गृह, रक्षा और विदेश बहुत जटिल विषय हैं और राजनीति के विद्यार्थी इनका ‘केवल अनुमान’ से आकलन करते हैं जिनमें मेरे जैसे जियोपॉलिटिक्स के विद्यार्थी से लेकर विरोधी देशों के थिंक टैंक तक शामिल हैं।

ये इतने जटिल और गोपनीय विषय हैं कि परिणामों के बाद ही पता चलता है कि किसका आकलन उचित था।

यही कारण है कि इन विषयों विशेषतः विदेशनीति में राष्ट्रध्यक्ष के व्यक्तित्व, मानसिक स्थिति और यहाँ तक कि उनके फैमिली बैक ग्राउंड तक का आकलन किया जाता है।

यदि आपको ध्यान हो तो अहमदाबाद दौरे के समय शी जिन पिंग के साथ मुलाक़ात के समय बगीचे में शेर छोड़े गये थे। निःसंदेह अधिकतर शावकों से थोड़े बड़े, ट्रेंड और हानिरहित थे लेकिन इनके कारण शी की मनोदशा बिगड गई थी और आत्मविश्वास हिल गया था और इसकी बहुत चर्चा हुई थी।

उसी तरह विदेश नीति में एक-एक शब्द का महत्व होता है और एक वाक्य के कई अर्थ छिपे होते हैं।

मसलन बांग्लादेश के बारे में सवाल पूछने पर ट्रंप ने उत्तर दिया कि यह मसला प्रधानमन्त्री मोदी पर छोड़ दिया है।

अब इस कूटनीतिक वाक्य में दो संभावनाएं हैं–

1)अगर ट्रंप द्वारा मोदी के स्वागत का आत्मीय व्यवहार देखें तो निष्कर्ष निकलेगा कि ट्रंप ने मोदी को बांग्लादेश में ‘फ्री हैंड’ दे दिया है।

2)लेकिन अगर आप पत्रकार द्वारा बांग्लादेश के तख्ता पलट में जॉर्ज सोरोस की भूमिका पर प्रश्न करने पर अपने कट्टर दुश्मन सोरोस का भी बचाव करते (जो कोई भी राष्ट्रध्यक्ष करेगा ही ) ट्रंप को देखकर निष्कर्ष निकलता है कि ट्रंप ने मोदी को दो टूक उत्तर दे दिया है कि ये आपकी समस्या है हमारी नहीं, आप स्वयं निबटिये और हमसे इसी करवाने की उम्मीद तो पालना ही मत।

अब चूँकि हमारे पास बंद कमरों की सूचनाएं तो हैं नहीं तो निर्णय कैसे हो कि कौन सा आकलन सही है?

इसका उत्तर किसी के पास नहीं है और केवल भविष्यगत परिणाम ही बताएँगे कि कौन सा आकलन सही था।

अब अगर आगामी दो तीन महीनों में बांग्लादेश में हसीना ‘लॉन्च’ हो जाती है तो पहला वाला आकलन सही है वरना दूसरा आकलन सही सिद्ध होगा।

अब इतना सा आकलन करने के लिए आपको यदि एस जयशंकर बनने की जरूरत पड़ रही है तो इसका अर्थ सिर्फ इतना ही है कि डिप्लोमैसी पर अपने दिमाग को कष्ट न दें।

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