सुरेंद्र किशोर : सीमाओं की रक्षा के प्रति लापारवाह नेहरू
कई साल पहले की बात है।
एक निजी टी.वी.चैनल पर राजनीतिक चर्चा चल रही थी।
मैं भी उसे सुन रहा था।
एक तरफ तब के शिवसेना सांसद(राज्य सभा)संजय निरुपम थे तो दूसरी तरफ सन 1957 बैच के आई.एफ.एस.नेहरूवादी मुचकुंद दुबे थे।
चर्चा इस बात पर थी कि बांग्ला देश से लगी हमारी सीमा खुली हुई रखी गई है जिसके कारण घुसपैठिए
बड़ी संख्या में भारत में प्रवेश कर रहे हैं।(सन 2024 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2 करोड़ और गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार 5 करोड़ घुसपैठिए काल क्रम भारत में आ चुके हैं।कई दलों के लिए वे बहुमूल्य वोट बैंक बने हुए हंै।
वैसे यूट्यूब पर डा.जाकिर नाइक को यह कहते सुना जा सकता है कि भारत में हिन्दुओं की आबादी अब सिर्फ 60 प्रतिशत ही रह गई है।)
उस पर दुबे जी ने कहा कि सीमा पर बाड़ लगाने से दुनिया में भारत की छवि खराब होगी।
निरुपम का सवाल था–दुबे जी आप भारत के विदेश सचिव थे या बांग्ला देश के ?(बांग्ला देश में वे हाई कमिश्नर थे।)
शालीन दुबे जी इस पर चुप रह गये।
बेचारे दुबे जी का भी क्या कसूर था ?
वे तो सिर्फ नेहरू नीति का बखान कर रहे थे।
उस नीति से हमारे देश को कितना नुकसान हुआ है,वह आज कोई भी देख सकता है।
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अभी करीब 5 करोड़ बांग्ला देश-रोहिंग्या घुसपैठिए भारत की चुनावी राजनीति और अर्थ नीति को बर्बाद कर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल के मंत्री फरहाद हकीम ने हाल ही में कहा है कि पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी अब 33 प्रतिशत है।हम कभी पूरे देश में बहुमत में होंगे।
याद रहे कि 1951 में पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी 20 प्रतिशत थी।
सन 2011 में 27 प्रतिशत और आज 33 प्रतिशत।
बढ़ती ही जा रही है।
कांग्रेस सकार ने सीमा खुली छोड़ी।वाम मोर्चा सरकार ने उन्हें बुलाया–बसाया।
ममता बनर्जी ने यह भी कह रखा है कि यदि केंद्र सरकार बांग्ला देशियों -रोहिंग्याओं को यहां से भगाने की कोशिश करेगी तो खून की नदियां बहेंगी।
इंडी गठबंधन अब ममता को अपना नेता बनाना चाहता है ताकि शेष भारत में भी ममता ऐसा प्रबंध कर दें कि किसी गैर भाजपा दल को मुस्लिम वोट की कमी न पड़े।
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महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी
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आजादी के तत्काल बाद की केंद्र सरकार ने वामपंथी इतिहासकारों को कह दिया था कि महाराणा प्रताप और शिवाजी की वीरता का गुणगान करते हुए कोई पाठ्य पुस्तक न लिखा जाये।
अन्यथा, उससे देश में हिन्दुत्व को बढ़ावा मिलेगा।
नतीजतन हमारी आजाद पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्त्रोत की कमी रही।
उल्टे वामपंथियों ने उस राय को प्रचारित करते हुए मध्य काल का इतिहास लिखा जो नेहरू की राय थी।
महाराणा प्रताप को भगोड़ा और शिवाजी को लुटेरा के रूप में चित्रित किया गया।
नतीजतन आज स्थिति यह है कि महाराणा प्रताप की प्रशंसा
में फेसबुक पर लिखे गये पोस्ट पर सबसे कम लाइक मिलते हैं।
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नेहरू परिवार के सत्ता में रहते इजरायल
के साथ राजनयिक रिश्ता नहीं
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जेहादियों को तीसरी बार सबक सिखाने के लिए चर्चित इजरायल से नेहरू-गांधी परिवार के प्रधानमंत्रियों ने जान बूझकर राजनयिक रिश्ता नहीं जोड़ा।कारण समझ लीजिए।
भारत ने इजरायल से पहली बार पूर्ण राजनयिक संबंध सन 1992 में कायम किया जब पी.वी.नरसिंह राव प्रधान मंत्री थे।
जबकि उससे पहले 1971 के युद्ध के समय भी इजरायल ने हमारी बड़ी मदद की थी।
कारगिल युद्ध के समय तो यदि इजरायल ने हमारी मदद नहीं की होती तो हम युद्ध हार सकते थे।
भारत भी इजरायल की तरह ही अंतरराष्ट्रीय जेहाद की भीषण समस्या से जूझ रहा है।टी.वी.पर एक मौलाना को यह कहते मैंने सुना कि 2047 से पहले ही हम भारत को इस्लामिक देश बना देंगे।याद रहे कि प्रतिबंधित जेहादी संगठन पी.एफ.आई.ने कहा है कि हम सन 2047 तक हथियारों के बल पर भारत को इस्लामिक देश बना देंगे।पुलिस के अनुसार इसके लिए वह कातिलों के दस्ते तैयार कर रहा है।वह कहता है कि जिस दिन इस देश के 10 प्रतिशत मुसलमान हमारे साथ आ जाएंगे,उस दिन हमारा काम हो जाएगा।यानी 10 प्रतिशत भी हथियार उठाने को तैयार नहीं हैं।यह अच्छी बात है।
ऐसे में भारत और इजरायल जैसे देशों के बीच दोस्ती करनी जरूरी होती है किसी भी राष्ट्रभक्त सरकार के लिए।
पर,वोट-भक्त सरकार या पार्टी कुछ और ही करती रहती है।
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मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल की बात है।यह खबर इंडियन एक्सप्रेस ने छापी थी।
खबर के अनुसार रक्षा मंत्रालय ने चीन से भारतीय सीमा पर खतरे को देखते हुए सेना के विस्तार के लिए 65 हजार करोड़ रुपए की एक योजना बना कर वित्त मंत्रालय को भेजा।
इस पर वित्त मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय से अनोखा सवाल पूछा–उसने लिखकर यह पूछा कि क्या चीन से खतरा दो साल बाद भी बना रहेगा ?
यानी, पैसे नहीं मिले।
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एक करोड़ भी देने से मना किया
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1962 के चीनी आक्रमण से पहले की बात थी।
रक्षा मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय से एक करोड़ रुपए की मांग की।सेना के पास न्यूनततम जरूरत की भी चीजें नहीं थीं।फिर भी पंचशील के नशे में मगन नेहरू सरकार के वित मंत्री ने एक करोड़ रुपए भी देने से मना कर दिया।
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जब 1962 में चीन ने हम पर हमला किया तो हमारी सेना का क्या हाल था,उसके बारे में एक युद्ध संवाददाता की रपट पढ़िए-
देश के प्रमुख पत्रकार मन मोहन शर्मा,जो अब भी दिल्ली में मौजूद हैं, के अनुसार,
‘‘एक युद्ध संवाददाता के रूप में मैंने चीन के हमले को कवर किया था।
मुझे याद है कि हम युद्ध के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे।
हमारी सेना के पास अस्त्र,शस्त्र की बात छोड़िये,कपड़े तक नहीं थे।
अंबाला से 200 सैनिकों को एयर लिफ्ट किया गया था।
उन्होंने सूती कमीजें और निकरें पहन रखी थीं।
उन्हें बोमडीला में एयरड्राॅप कर दिया गया
जहां का तापमान माइनस 40 डिग्री था।
वहां पर उन्हें गिराए जाते ही ठंड से सभी बेमौत मर गए।
(लगे हाथ बता दें कि सोवियत संघ की पूर्वानुमति के बाद ही चीन ने 1962 में भारत पर हमला किया था।ए.जी.नूरानी ने इस संबंध में सघन रिसर्च करके इलेस्टेटेड वीकली आॅफ इंडिया में लंबा लेख लिखा था।याद रहे कि हमारे देश के मौजूदा विदेश मंत्री जयशंकर भी जे,एन.यू.से यही पढ़कर निकले हैं कि ‘‘रसिया हैज नेभर हर्ट आवर इन्टरेस्ट।’’जयशंकर वहां एम.फिल और पीएच.डी.के छात्र थे।)
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जिस देश के प्रधान मंत्री पंचशील के नशे में कबूतर उड़ा रहे हों,उस देश का यही होना था जो 1962 में हुआ।
इसके बावजूद नेहरू के अंध भक्त सबूत के साथ भी ऐसी बातें लिखने पर सख्त नाराज हो जाते हैं।हालांकि समय -समय पर मैंने नेहरू की कुछ खूबियों के बारे में भी लिखा है।
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एक बार लोक सभा में सदस्यों ने प्रधान मंत्री नेहरू का ध्यान इस बात की ओर खींचा कि चीन, तिब्बत को हड़पने के बाद हमारी सीमा में घुसता जा रहा है।
नेहरू ने जवाब दिया–जहां चीन घुस आया है,वहां घास का एक तिनका तक नहीं उगता।
उस पर कांग्रेस के ही अदमनीय सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री महावीर त्यागी ने कहा कि मेरे सिर पर तो एक भी बाल नहीं है।
तो क्या मेरा सिर
कटवा दोगे ?